आयुष गंभीर मुद्रा में सबके सामने आकर खड़ा हो जाता है।
प्रीति-(घबरा कर पूछती है) सर, ये इतने सारे सीरिंज ? आप किसी को इंजेक्शन लगाएंगे क्या?
आयुष-( गंभीर आवाज़ में बोलता है) आप सब को।
सब लोग चौंक कर खड़े हो जाते हैं। और आयुष से पांच कदम पीछे हो जाते हैं। तभी जतिन वहां हाथ में इंजेक्शन की बोतलें लेकर आता है।
गौरव- जतिन सर, ये... ये किस तरह का इंजेक्शन है। और सर, आप हमें क्यों लगाएंगे।
आयुष- इस इंजेक्शन के लगते ही आप सब परफेक्ट हो जाएंगे। समय कम है और सीखने को बहुत कुछ। हम आपके परफेक्ट होने का कब तक इंतज़ार करेंगे। चलिए आएं सब एक - एक करके।
प्रीति- सर, आप ऐसा नहीं कर सकते। हम...हम ... अरे! बोलो तुम सब भी!"
सब उसको देख रहे थे क्योंकि बोलना क्या था यह किसी को नहीं पता था।
वसुधा- सर, आप सीनियर हैं। पर आप मनमानी नहीं कर सकते।
आयुष- जतिन, सबसे पहले डॉक्टर पाठक को ही लगा दो। ये जितना जल्दी सीखेंगी उतना अच्छा।
तभी वसुधा रो पड़ती है। आयुष और जतिन उसे रोते देख हंसने लगते हैं। सब हैरानी से उन दोनों को देखने लगते हैं।
जतिन- अरे! सर मज़ाक कर रहे थे। ये सब सीरिंज और इंजेक्शन इसलिए लाए हैं ताकि आप सब को एक प्रेक्टिकल कर के दिखा सकें कि बिना दर्द के इंजेक्शन कैसे लगता है।
प्रिया- सर, आपने तो जान ही निकाल दी थी।
आयुष- ( हंसते हुए) ओह! तो अभी भी जान बची है इन सब में डॉक्टर जतिन। चलिए कौन पहले आएगा। और हां, इन शीशियों में ग्लूकोज़ है। तो घबराइएं मत। आईए डॉक्टर अंकुर आप आइए।
अंकुर सोफे पर बैठ जाता है। आयुष अंकुर को इंजेक्शन लगाते हुए सब को सिखाता है कि उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
आयुष- चलिए अब आप सब एक - एक करके एक-दूसरे को इंजेक्शन लगा कर प्रेक्टिकल कर के दिखाएं।
सब प्रेक्टिकल करते हैं। और बहुत तरीके से इंजेक्शन लगाना सीख जाते हैं।
आयुष- हम चिल्ड्रन वॉर्ड के डॉक्टर हैं। हमें हर काम बच्चों को घ्यान में रखकर करना चाहिए। बच्चे उसी डॉक्टर को पसंद करते हैं जिसके इंजेक्शन लगाने पर दर्द नहीं होता।
सब सहमति में सिर हिलाते हैं। आयुष वहां से जाने लगता है तो साक्षी बोलती है,
साक्षी- सर, प्रिया तो रह ही गई। उसने किसी को इंजेक्शन नहीं लगाया।
आयुष- डॉक्टर कपूर काफी अच्छे से इंजेक्शन लगाती हैं। उनको ज़रुरत नहीं है।
अनीता- नहीं सर, नॉट फेयर। प्रिया भी लगाएगी। सर, हम सब को तो लग गया....तो प्रिया आपको लगाएगी। प्लीज़ सर, हमें एक बार और परफेक्शन देखने को मिल जाएगी।
(अनीता ज़िद्द करती है)
आयुष- ( अपना डॉक्टर कोट उतार कमीज़ की बाजू ऊपर करते हुए कहता है) आएं डॉक्टर कपूर। इनकी इच्छा पूरी करें।
प्रिया आयुष के सामने आकर बैठ जाती है और इंजेक्शन सीरिंज में भर लेती है। वह नज़रें उठा कर आयुष को देखती है। आयुष की नज़रें उसी पर थीं। प्रिया अपनी नज़रें झुका लेती है।
आयुष- ( थोड़ा आगे झुक कर बोलता है) प्यार से लगाइएगा डॉक्टर कपूर। पुराने बदले मत उतारिएगा।
प्रिया- सर, आप मेरा ध्यान मत भटकाइए।
आयुष मुस्कुरा देता है। प्रिया धीरे से आयुष को इंजेक्शन लगा देती है।
प्रिया- सर, दर्द तो नहीं हुआ।
आयुष- ( अपनी कमीज़ की बाजू नीचे करते हुए कहता है) परफेक्ट! दिल से कोई काम करें तो उससे कभी दर्द नहीं होता।
यह कह आयुष सब को आराम करने को कह वहां से चले जाता है।
प्रिया थकी सी घर पहुंचती है तो नेहा उसका वहां इंतज़ार कर रही होती है।
नेहा- जब से तू प्रिया से डॉक्टर कपूर बनी है मुझे भूल ही गई है।
प्रिया- तुझे कैसे भूल सकती हूं मेरी जान। बता क्या मुसीबत आ गई।
नेहा- पापा चाहते हैं कि मैं डिजाइनिंग छोड़ कर उनके ऑफिस में काम करना शुरू कर दूं।
प्रिया-हां, तो कर दे। आर्किटेक्चर का कोर्स तूने अंकल के काम में हाथ बंटाने के लिए ही तो किया था।
नेहा- हां, पर इस शर्त पर कि वह मुझे इंटीरियर डिजाइनिंग करने देंगे। यार,! पापा के साथ काम करना मतलब अपनी आज़ादी खत्म कर देना। मैंने अभी देखा ही क्या है।
प्रिया- और क्या देखना है तुझे!
नेहा- यार! एक बॉयफ्रेंड तक नहीं बना अब तक। पापा के ऑफिस में तो वो भी नहीं हो सकता। बहन तू बात कर ना पापा से। आजकल तेरी बहुत तारीफ करते हैं।
प्रिया- ओहो! मेडम को बॉयफ्रेंड बनाना है। चल ठीक है कल बात करती हूं। बस अब खुश। जा बना ले बॉयफ्रेंड!
दोनों हंसने लगती हैं।
उधर आयुष अपने कमरे में आराम कर रहा था। आज सभी इंटर्नस के साथ किए मज़ाक को सोच हंस पड़ता है। तभी मुरली काका आते हैं।
मुरली काका- बेटा, खाना लगा दूं?
आयुष- जी काका लगा दीजिए। मैं हाथ मुंह धोकर आता हूं।
खाने की टेबल पर काका आयुष को कहते हैं।
मुरली काका- बेटा एक बात कहूं। अब ये घर काटने को दौड़ता है। सारा दिन अकेले मन ही नहीं लगता।
आयुष- अरे! तो आप कुछ दिन गांव हो आइए। आपका मन भी बदल जाएगा।
मुरली काका- बेटा, तुझे नहीं लगता कि तुझे अब घर बसा लेना चाहिए। घर में बहू आएगी तो रौनक रहेगी। मुझे भी कोई बात करने को मिल जाएगा।
आयुष- ( हंसते हुए) काका, मतलब आपके अकेलेपन को दूर करने के लिए मैं अपनी सुख-शांति में आग लगा लूं।
मुरली काका- तू हमेशा हंस कर बात टाल देता है।
आयुष- वैसे काका आपके अकेलेपन के लिए मैंने कुछ सोचा है। वो आ जाएंगी तो आपको साथी मिल जाएगा।
मुरली काका- ( हंसते हुए) बेटा इस उम्र में मैं शादी थोड़े ही करूंगा। किसे बुला रहा है तू?
आयुष- ( हंसते हुए) काका, आपकी शादी की बात नहीं कर रहा। वैसे, आप करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ती नही है। दरअसल, आज एक बच्चे की मौत हो गई। उसकी मां का वही एक सहारा था। उनके पास कुछ काम नहीं था तो मैंने उन्हें कहा कि वह सुबह से शाम तक यहां आकर आपके काम में हाथ बंटाएं। आपका काम भी हल्का हो जाएगा। उनकी परेशानी भी कम हो जाएगी। और आपका खालीपन भी।
अगले दिन वार्ड में मरियम ने हंगामा खड़ा कर रखा था।
वह दवाई नहीं पी रही थी।
शायना- मरियम, दवा तो पीनी पड़ेगी। आपको ठीक नहीं होना क्या?
मरियम- आप बहुत कड़वी दवा देतीं हैं। मुझे नहीं पीनी।
शायना- (चिल्लाते हुए) मरियम, दवा पीयो। रोज़ का है तुम्हारा यह।
तभी प्रिया वहां अपने मरीज़ को देखने आती है। मरियम उसे देखकर उसे अपने पास बुलाती है।
मरियम- प्रिया दीदी, इनसे कहो ना कि मुझे यह कड़वी दवा नहीं पीनी। आप मुझे कोई मीठी दवा दो ना।
प्रिया- ( मरियम के पास बैठते हुए) और अगर मैं इस दवा को ही मीठी बना दूं।
मरियम- ( मासूमियत से बोलती है) हैं, सच? तो बना दो।
प्रिया- देखो मैं इसपर जादू करूंगी और यह मीठी हो जाएगी।( टेबल पर दवा रखती है) आबरा का डाबरा, गिली गिली छू। देखो अब यह मीठी हो गई।
प्रिया उसको दवा पिलाती है।
मरियम- ( मुंह बनाते हुए) नहीं हुई। अभी थोड़ी कड़वी है।
प्रिया- ( मासूमियत से बोली) ओह! शायद जादू पूरा काम नहीं किया। कल फिर से करेंगे। शायद हो जाए।
मरियम- हां, कल फिर करेंगे। प्रिया दीदी, आप ये वाले डॉक्टर आंटी से कहो ना कि आप मुझे दवाई दोगे। ये नहीं।
शायना को गुस्सा आ जाता है।
शायना- मरियम, तुम मेरी मरीज़ हो डॉक्टर कपूर की नहीं।
प्रिया- मरियम, डॉक्टर शायना भी जादू जानती हैं। और जो इनके हाथ से दवा पीता है वह जल्दी ठीक हो जाता है। आपको ठीक होना है ना।
शायना- रहने दीजिए डॉक्टर कपूर, मैं अपने मरीजों को खु्द हैंडल कर सकती हूं।
कहकर शायना उसे आयुष के कैबिन में आने को कह कर वहां से चली जाती है।
आयुष कैबिन में अपना काम कर रहा था कि अचानक शायना दनदनाती हुई अंदर आ जाती है।
आयुष- क्या हुआ? बेचारे दरवाज़े पर क्यों गुस्सा उतार रही हो।
शायना- तुम्हारी चहेती डॉक्टर कपूर की वजह से। वह समझती क्या है अपने आप को। तुमने बहुत छूट दे रखी है कुमार।
आयुष-( कुर्सी से उठ कर शायना के पास आकर बोलता है) क्या हुआ शायना? और ये क्या तुम्हारी चहेती, कैसी लैंग्वेज इस्तेमाल कर रही हो।
शायना ने जो हुआ सब बताया। सुन कर आयुष हंस पड़ा।
आयुष- वैसे मानना पड़ेगा डॉक्टर कपूर को। बच्चों को वो बहुत अच्छे से हैंडल करतीं हैं।
शायना- कुमार, मरियम मेरी मरीज़ है। प्रिया को कोई हक नहीं बनता मेरे काम में दखल देने का।
आयुष- ( हैरानी से शायना को देखते हुए) कैसी बातें कर रही हो शायना। यह कोई कहानी घर-घर की सीरियल चल रहा है कि मेरे काम में हाथ कैसे डाला? हम डॉक्टर हैं शायना। हमारा मकसद है मरीज़ को ठीक करना। अब वह तुम्हारी दवा से हो या डॉक्टर कपूर की। क्या फर्क पड़ता है?
शायना- मैं कुछ नहीं जानती कुमार। मैंने डॉक्टर कपूर को बुलाया है। तुम उनसे बात करो।
आयुष कुछ कहता इससे पहले प्रिया ने दरवाज़े पर दस्तक दी।
प्रिया- सर, मैं अंदर आ सकती हूं?
आयुष- जी डॉक्टर कपूर, आइए।
प्रिया अंदर आकर खड़ी हो जाती है। आयुष और शायना एक दूसरे को देखते हैं। प्रिया चुपचाप उन दोनों के कुछ बोलने का इंतज़ार करती है।
आयुष- कहिए डॉक्टर कपूर, कोई काम था?
प्रिया- ( हैरान होकर आयुष को देखती है) नहीं सर।
आयुष- फिर आप यहां घूमते- घूमते आ गई।
प्रिया- ( आयुष की बात से चिढ़ कर बोलती है) मुझे कोई शौक नहीं है सर इन खौफनाक वादियों में घूमने का। डॉक्टर शायना ने मुझे बुलाया इसलिए मैं आई हूं।
आयुष प्रिया के द्वारा दी अपने कैबिन की सोच पर हंस पड़ता है। तभी शायना के बोलने से उसका ध्यान टूटता है।
शायना- जी, डॉक्टर कपूर मैंने आपको बुलाया था। आज जो हुआ.....
आयुष- (शायना को बीच में टोकते हुए) आज आपने जैसे मरियम को हैंडल किया वह बहुत बढ़िया था। मैं आपकी इस टेक्नीक से बहुत इम्प्रेस हूं। गुड जॉब।
प्रिया- थैंक्स सर, तो मैं जा सकती हूं।
आयुष- (मुस्कुराते हुए) जी बिल्कुल। वरना आप इन खौफनाक वादियों में खो जाएंगी।
प्रिया आयुष को गुस्से से देखती है पर आयुष के चेहरे पर हंसी आ जाती है। जिसे देखकर प्रिया भी हंस पड़ती है और चली जाती है।
शायना- तुमने मुझे बोलने क्यों नहीं दिया?
आयुष- ( सोफे पर बैठ शायना को भी बैठने का इशारा करते हुए बोला) पागल मत बनो शायना। तुम्हें पता भी है तुम क्या बवाल खड़ा करने जा रही थीं?
शायना-( आयुष के करीब बैठते हुए) मैं क्या कर रही थी? उसे उसकी औकात दिखा रही थी। वह मुझसे जूनियर है तो वही बनकर रहे। और ऊपर से तुम? तुमको तो उसकी तारीफ करने का बस मौका चाहिए।
आयुष-(शायना की छोटी सोच पर हैरान होते हुए बोला) अगर इंटर्नस को तुम्हारी इस सोच के बारे में पता चलता तो वह क्या सोचते तुम्हारे बारे में। डॉक्टर के प्रोफेशन में सीनियर - जूनियर जैसी छोटी बातें नहीं होती। यहां सिर्फ हुनर देखा जाता है। किस के इलाज से मरीज़ ठीक हो रहा है यह ज़रूरी है।
शायना- पर आज वॉर्ड में बच्चों के सामने मेरा कितना मज़ाक बना। मेरे सारे मरीज़ प्रिया से दवा लेने की ज़िद्द कर रहे थे।
आयुष- बच्चे तो मन के भोले होते हैं। उनके मन को जीतने की कला हर किसी में नहीं होती। और रहा सवाल मज़ाक का है तो शायना मज़ाक तो तुम्हारा इंटर्नस के सामने बनता अगर तुम डॉक्टर कपूर को कुछ कहतीं। हम यहां उन्हें अच्छे डॉक्टर बनने की ट्रेनिंग दें रहें हैं ना कि आपस में लड़ने और मेरा-तेरा करने की। आज ऐसा कुछ भी होता तो उनके सामने तुम्हारी क्या इज़्ज़त रह जाती?
शायना- जैसे तुम्हें बहुत परवाह है मेरी इज़्ज़त की!
आयुष- बिल्कुल है। तुम ना केवल यहां की सीनियर डॉक्टर हो बल्कि मेरी दोस्त भी हो। तो मुझे तुम्हारी परवाह क्यों नहीं होगी।
शायना- ( आयुष के करीब आते हुए) परवाह है तो फिर आज रात डिनर पर चलो।
आयुष- ( शायना के सिर को अपने कंधे से हटा खड़ा होते हुए) ठीक है, फाइनल। चलो मैं राउंड पर जा रहा हूं।
यह कह कर वह कैबिन से बाहर निकल जाता है।
क्रमशः
आस्था सिंघल