इंटर्नस की आज की ड्यूटी खत्म होने वाली थी। सभी रूम में बैठकर बातें कर रहे होते हैं। तभी नर्स वहां आती है।
नर्स- डॉक्टर गौरव, आज रात आपकी ड्यूटी थी ना?
गौरव- हां मुझे पता है।
नर्स- आप आज जा सकते हैं। डॉक्टर कुमार आज रात रुकेंगे।
नर्स वहां से चली जाती है। सब लोग गौरव को बधाई देने लगते हैं।
गगन- वाह! भाई! आज तेरा पहला दिन था नाइट ड्यूटी का वो भी कैन्सल हो गया।
सब वहां से जाने की तैयारी करने लगते हैं। साक्षी प्रिया को बताती है कि आज वह डॉक्टर अंकुर के साथ रेस्टोरेंट जा रही है।
प्रिया- बढ़िया है। अंकुर गुप्ता ! जा बहन जा।
साक्षी- बहन ऐसा कुछ नहीं है। बस घूमने जा रहे हैं।
प्रिया साक्षी को बेस्ट ऑफ लक बोल वहां से चली जाती है।
वह रिसेप्शन पर पहुंचती है तो आयुष और रिसेप्शनिस्ट बात कर रहे होते हैं।
आयुष- मोनिका, यह कॉफी मशीन आज भी खराब है। आपने डॉक्टर जतिन को बताया था कि नहीं।
मोनिका- सर बताया था। वह कह रहे थे कि दो-तीन दिन लगेंगे। सर, आपको कॉफी चाहिए तो मैं नीचे से मंगवा दूं।
आयुष- (अपना सिर दबाता हुआ) नहीं कोई बात नहीं। आप रहने दें। ( यह कह वह वहां से चला जाता है)
प्रिया यह सब देख लेती है। कुछ समय बाद वह आयुष के कैबिन का दरवाज़ा खटखटाती है। अंदर से कोई आवाज़ नहीं आती तो वह डरते हुए दरवाज़ा खोलती है। रूम में एकदम सन्नाटा था। आयुष अपनी चेयर पर नहीं था।
प्रिया मन ही मन सोचती है," कहां गए मिस्टर खडूस। सुपरमैन बन कर उड़ तो नहीं गये।"
तभी उसकी निगाह सोफे पर पड़ती है। आयुष सोफे पर आंखें बंद किए लेटा था। प्रिया उसे धीरे से आवाज़ देती है पर वह नहीं सुनता। वह थोड़ा पास जाती है तो देखती है कि आयुष ने कानों में ब्लूटूथ इयर डोप्स लगा रखे हैं। सामने टेबल पर उसका फोन पड़ा था जिसमें गाने बज रहे थे।
प्रिया- ओह! तो मिस्टर खडूस गाने भी सुनते हैं।
तभी आयुष की आंख खुल जाती है और वह प्रिया को देख उठ खड़ा होता है।
आयुष- डॉक्टर कपूर आप यहां। सब ठीक है? वो बच्चा ठीक है?
प्रिया- सर, सब ठीक है। सॉरी सर, मैंने दरवाज़ा नॉक किया था पर आपने कोई जवाब नहीं दिया तो मैं अंदर आ गई।
आयुष- कोई बात नहीं। पर आप यहां कैसे?( आयुष फोन पर गाना बंद करते हुए बोला)
प्रिया- सर, आपके लिए कॉफी। और यह सिर दर्द की टेबलेट।
आयुष कुछ पल प्रिया को देखता रहा। उसे प्रिया की आंखों में बहुत अपनापन सा लगा।
आयुष- कॉफी के लिए थैंक्स। आप नीचे से लेकर आई क्या?
प्रिया- येस सर।
आयुष- इतनी तकलीफ़ क्यों की आपने? पर तकलीफ़ के लिए शुक्रिया। और रही बात सिर दर्द की तो मैं ये दवाई नहीं लेता। ये हैल्थ के लिए अच्छी नहीं है। सिर दर्द का इलाज में अपने आप कर लेता हूं। ( आयुष कॉफी उठाकर पीते हुए बोला)
प्रिया- पुराने हिंदी गाने रीमिक्स वर्जन में सुन कर। ( प्रिया ने मासूमियत से कहा)
आयुष- ( हैरान होकर) आपको कैसे पता?
प्रिया- सॉरी सर आपके फोन पर नज़र पड़ गई। आप जो सुन रहे थे वो मेरा भी फेवरेट बैंड है।
आयुष- हां, इस बैंड का म्यूज़िक बहुत अच्छा है।
प्रिया- मेरे पास इनकी पूरी कलेक्शन है।
आयुष- प्लीज़ मुझे ज़रुर दीजियेगा। मैं डाउनलोड कर आपको वापस कर दूंगा।( आयुष एक बच्चे की तरह उत्साह में बोला)
प्रिया- ठीक है सर। सर, आप कहें तो मैं आज नाईट ड्यूटी पर रुक सकती हूं। आप रेस्ट रूम में रेस्ट कर लीजिए या घर चले जाइए।
आयुष- थैंक्स डॉक्टर कपूर। पर इसकी ज़रूरत नहीं है। ये थकान और सिर दर्द सब चलता रहता है। मुझे इन सब की आदत है।
प्रिया- सर, इवन बेस्ट डॉक्टर्स नीड रेस्ट।
आयुष- (मुस्कुराते हुए) कॉम्प्लीमेंट के लिए थैंक्स डॉक्टर कपूर। पर मैं ठीक हूं। ( फिर उसने प्रिया की आंखों में देखते हुए कहा) थैंक्स फॉर द केयर डॉक्टर कपूर।
प्रिया का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। आयुष की नज़रों से नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं हुई उसकी।
प्रिया- गुड़ नाईट सर।
आयूष- गुड़ नाईट डॉक्टर कपूर।
प्रिया के जाने के बाद आयुष वापस लेट गया पर अब उसका मन गाने सुनने का नहीं था। उसने आंख बंद कर लीं पर मन बैचेन था। प्रिया का मुस्कुराता हुआ चेहरा बार-बार उसके सामने आ रहा था। क्यों? यह उसे खुद नहीं पता था। बहुत मुश्किल से उसे नींद आई।
उधर प्रिया को भी नींद नहीं आ रही थी। वह भी आयुष के
बारे में ही सोच रही थी। उसे यह एहसास था कि आयुष जितना कड़क अपने आप को दिखाता है उतना वो है नहीं। उसके अंदर एक बहुत मासूम सा बच्चा छिपा है। पर अपने मन के भावों को शायद वह बोल नहीं पाता। आयुष की नज़रें प्रिया को क्यों बेचैन करती हैं? यही सोचते हुए नींद आ गई।
अगली सुबह प्रिया और साक्षी थोड़ा जल्दी हॉस्पिटल पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्होंने जो देखा उससे उनके पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई।
आई. सी . यू. के आगे भीड़ जमा थी। उस बच्चे की मां बिलख रही थी। परिवार के लोग भी रो रहे थे। पुलिस भी वहां पहुंची हुई थी। प्रिया और साक्षी भाग कर रिसेप्शन पर गये।
प्रिया- क्या हुआ मोनिका? वह बच्चा...?
मोनिका रिसेप्शनिस्ट- डॉक्टर कपूर रात को ही उस बच्चे ने दम तोड़ दिया। वो सर्वाइव नहीं कर पाया।
प्रिया और साक्षी एकदम खामोश हो गये। उसकी बॉडी को वहां से ले जाया जा रहा था। साक्षी से यह देखा नहीं गया और वह रेस्ट रूम में चली गई। प्रिया सीधा डॉक्टर आयुष के कैबिन में गयी और बिना दरवाज़ा खटखटाए अंदर चली गई।
आयुष अपनी कुर्सी पर बैठा था। उसने अपना चेहरा हाथों से छुपा रखा था।
प्रिया- डॉक्टर कुमार।
आयुष- ( अपने हाथों से अपने बेहते आंसुओं को पोंछते हुए बोला) गुड़ मॉर्निंग डॉक्टर कपूर। आप इतनी जल्दी?
प्रिया- ( रोंआंसी आवाज़ में बोली) सर, वो बच्चा। उसे बचा नहीं पाए।
आयुष- ( थोड़ी दृढ़ता से बोला) डॉक्टर कपूर, हम सिर्फ डॉक्टर हैं भगवान नहीं। रात को उसकी कंडीशन बहुत नाज़ुक हो गई थी। मैंने बहुत कोशिश करी पर कामयाब नहीं हो पाया। उसे नहीं बचा पाया।
प्रिया- ( रोते हुए) सर, उसकी मां का रो-रो कर बुरा हाल है। वो क्या करेंगी अब? कैसे जीएंगी?
आयुष- ( उठ कर प्रिया के पास आता है और उसे चेयर पर बैठाते हुए बोलता है) डॉक्टर कपूर, रिलेक्स। आगे इस प्रोफेशन में आपको ऐसा बहुत बार देखना पड़ेगा। आपको स्ट्रोंग बनना है कमज़ोर नहीं।
प्रिया- सर डॉक्टर भी इंसान होते हैं। उनके पास भी दिल होता है।
आयुष- ( थोड़ा मुस्कुराते हुए) जी, और वो भी खूबसूरत दिल।
प्रिया- ( थोड़ा चिढ़ते हुए) सर, मैं अभी...
आयुष- ( प्रिया की बात को बीच में ही काटते हुए) आप मज़ाक के मूड में नहीं हैं, जानता हूं। सॉरी, मैं माहौल को थोड़ा लाइट कर रहा था।
प्रिया- सर, आपको इन सब बातों से क्यों फ़र्क नहीं पड़ता? आप इतने स्ट्रोंग कैसे हैं?
आयुष- फ़र्क पड़ता है बिल्कुल पड़ता है। मैं भी इंसान हूं कोई एलियन नहीं हूं। जब मैं आपकी तरह इंटर्न था डॉक्टर कपूर, तब मेरे सीनियर डॉक्टर से मैंने ज़िन्दगी का बहुत गहरा सबक सिखा।
प्रिया- क्या सीखा?
आयुष- एक दिन उनकी मां को हार्ट अटैक आया। उन्हें हॉस्पिटल लाया गया। 90% ब्लोकेज थी। वो सर्वाइव नहीं कर पाईं। उन्होंने अपने बेटे की बाहों में दम तोड़ दिया। सर ने अपनी फैमिली को इंफोर्म किया। और खुद ओ. पी. डी. में ड्यूटी करने चले गए। जब मैंने उनसे पूछा कि उन्हें इस वक्त अपनी मां के साथ होना चाहिए तो वह बोले कि मां को तो बचा नहीं पाया पर इतने सारे मरीज़ जो मेरी राह देख रहे हैं उन्हें तो बचा लूं। उस दिन मैंने समझा कि मेडिकल प्रोफेशन में स्ट्रोंग होना कितना ज़रूरी है। हम सिर्फ अपना बेस्ट दे सकते हैं। बाकी ऊपर वाले के हाथ में है। यकीन मानिए डॉक्टर कपूर, मैंने मिरेकल होते हुए भी देखे हैं।
प्रिया- सर, आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। थैंक्स।
आयुष- अब जाइए और वॉर्ड के राउंड के लिए तैयार हो जाइए।
तभी वहां शायना आ जाती है और दोनों पर कटाक्ष करते हुए बोलती है।
शायना- वॉट ए टच्ची लिटल सीन। सुना है डॉक्टर कपूर काफी रो रही हैं। कुमार, कुछ टिप्स दीं मिस प्रिया को तुमने।
आयुष प्रिया को वहां से जाने का इशारा करता है। तभी शायना फिर बोलती है।
शायना- अरे! आप क्यों जा रही हैं डॉक्टर कपूर। आजकल तो ये रूम मुझसे ज़्यादा आपका हो गया है।
प्रिया- नो थैंक्स डॉक्टर शायना। मुझे राउंड पर जाना है।
ये कहकर प्रिया वहां से चली जाती है। आयुष शायना को गुस्से से देखते हुए बोला।
आयुष- शायना, बर्दाश्त की एक हद होती है। तुम लिमिट्स पार कर रही हो।
शायना- और भी तो डॉक्टर्स ने आज का सीन देखा। वो तो इस तरह रिएक्ट नहीं कर रहे।
आयुष- शायना, पहली बात डॉक्टर कपूर ऑपरेशन के वक्त मेरे साथ थीं। इसलिए उनका उस मरीज़ के मर जाने पर थोड़ा रोना लाज़मी सी बात है। हम इंसान हैं शायना! इमोशन्स हमारे अंदर भी होते हैं। दूसरा, डॉक्टर कपूर थोड़ा सोफ्ट हार्टिड हैं। इसलिए ऐसे रिएक्ट किया।
शायना- ऑपरेशन तो तुमने किया था। उसके लिए रात तुम रुके थे। तो तुमने ऐसे रिएक्ट क्यों नहीं किया?
आयुष- ( शायना के पास आकर बोला) तुम मुझे आज तक पहचान नहीं पाईं शायना। जब भी मैं अपने किसी मरीज़ को बचा नहीं पाता तो मैं भी ऐसे ही रिएक्ट करता हूं। फर्क सिर्फ इतना है कि डॉक्टर कपूर ने दिखा दिया और मैंने कभी दिखाया नहीं।
यह कह आयुष कैबिन से बाहर चला जाता है।
रेस्ट रूम में सब बहुत परेशान बैठे थे। सबसे ज़्यादा परेशान वसुधा थी। क्योंकि आज उसकी ड्यूटी डॉक्टर कुमार के साथ ओ.पी.डी. में थी।
गगन- परेशान मत हो यार! डॉक्टर कुमार कोई राक्षस थोड़ा ही हैं जो तुझे खा जाएंगे।
प्रिया- और क्या! सही कह रहा है गगन।
प्रीति- तुम तो रहने दो। खुद तो डॉक्टर कुमार के साथ मेडम इतना बड़ा ऑपरेशन असिस्ट कर के आ गई। तुम्हें क्या डर।
प्रिया- तभी तो कह रही हूं कि डर मत। बस गलती मत करना कोई। ध्यान से उन्हें सुनना और फॉलो करना। एक बात, जब वह मरीज़ को देख रहे होते हैं तो एलर्ट रहना। क्योंकि वो उस समय बहुत धीरे बात करते हैं। तो सुनने में प्रोब्लम होता है।
वसुधा- हे भगवान! मुझे तो हल्का सुनने की आदत नहीं है।
अनीता- अब तू जा। वरना लेट हो गई तो ऊंचा भी नहीं सुन पाएगी।
सब हंसने लगते हैं।
ओ.पी.डी. में आयुष और वसुधा मरीज़ों को देख रहे थे।
आयुष- डॉक्टर पाठक, आप इस बच्चे को टेटनेस का इंजेक्शन लगा दीजिए।
वसुधा- मैं? सर, मैं लगाऊं।
आयुष- आप ही डॉक्टर पाठक हैं तो आप ही लगाएंगी। जल्दी करें।( आयुष ने गुस्से से कहा)
वसुधा के इंजेक्शन लगाते ही वह बच्चा रो पड़ता है।
वसुधा- बेटा इंजेक्शन लगेगा तो दर्द तो होगा ही।
आयुष यह सुनता है पर चुप कर जाता है। उसके बाद जितने भी मरीज़ आए उनको आयुष ने ही इंजेक्शन लगाया। ओ.पी.डी. खत्म होने के बाद आयुष ने वसुधा को अपने पास बुलाया।
आयुष- डॉक्टर पाठक, आपको इंजेक्शन लगाना नहीं आता। आप उस बच्चे को कह रहीं थीं कि इंजेक्शन लगेगा तो दर्द होगा। बाकी बच्चों को जिनको मैंने इंजेक्शन लगाया था वह तो नहीं रोए?
वसुधा- सॉरी सर आगे से ख्याल रखूंगी। पर आपको तो बहुत प्रेक्टिस है ना। इसलिए बच्चे नहीं रोए।
रेस्ट रूम में आकर वसुधा परेशान सी बैठ गई।
गौरव- (कॉफी पीते हुए) क्या हुआ? क्यों परेशान हो?
वसुधा- यार! इंजेक्शन लगेगा तो दर्द तो होगा ही। पर डॉक्टर कुमार के हिसाब से दर्द नहीं होना चाहिए।
प्रिया- हां, दर्द नहीं होता।
वसुधा- ( प्रिया पर किताब फेंकते हुए) तू चुप कर मिस परफेक्ट। तुझे तो सब आता है।
प्रिया- यार! इंजेक्शन लगाने की एक टेक्नीक होती है। बस वो आ जाए तो दर्द नहीं होगा। मैं तुझे सिखा दूंगी।
तभी आयुष वहां आ जाता है।
आयुष- बिल्कुल सही कहा आपने डॉक्टर कपूर।
आयुष के हाथ में बहुत सारी सीरिंज थीं। सब देख कर डर जाते हैं कि आखिर वो इतने सीरिंज क्यों लाया है?
क्रमशः