प्यार - हमारे जीवन का अस्तित्व है। यह एक एहसास है जो दिमाग से नहीं दिल से होता है। सच्चा प्यार वहीं होता है जो अच्छे - बुरे सभी हालातों में हमारा साथ दे। प्यार इंसान को बदल देता है। उसके अंदर एक निर्मल और स्वच्छ भाव पैदा करता है। दुनिया में लोगों ने कितनी नफरतों को प्यार से जीत लिया। तो नफरत प्यार के आगे हमेशा हार जाती है?
शायद! पर क्या हमारे दिल में किसी के लिए इतनी नफ़रत हो सकती है कि किसी का प्यार हमें दिखाई ही ना दे? क्या नफ़रत में इतनी ताकत है कि वह सच्चे प्यार को हरा सके।
ऐसी ही एक कहानी है आयुष और प्रिया की। आयुष के दिल में बसी नफ़रत को प्रिया के निश्छल प्रेम ने हराया ज़रूर पर क्या ख़त्म कर पाई? ऐसा क्या हुआ कि आयुष की नफ़रत प्रिया के मासूम प्यार पर भारी पड़ गई।
भाग - 1
हॉस्पिटल के चिल्ड्रन वॉर्ड में बहुत शोर हो रहा था। एक बच्चा ज़ख्मी हालत में स्ट्रेचर पर पड़ा था। उसके सिर से खून निकल रहा था। उसकी मां का रो - रो कर बुरा हाल था। वह डॉक्टर को पुकार रही थी। नर्स उस बच्चे को ऑक्सीजन चढ़ा रहीं थीं। तभी एक डॉक्टर की आवाज़ आई।
" नर्स ये बच्चा अब तक वॉर्ड में क्यों है? इसे ऑपरेशन थियेटर में मूव क्यों नहीं किया गया? "
नर्स घबरा कर बोली, " डॉक्टर कुमार, ये पुलिस केस है। पहले पुलिस वैरिफिकेशन होगा फिर ही हम कुछ कर पाएंगे। प्रोटोकॉल है यह तो सर।"
" और तब तक यह बच्चा मर जाएगा। इसे अभी के अभी ऑपरेशन थियेटर में ले कर चलिए। आई डोंट केयर अबाउट द प्रोटोकॉल। मूव फास्ट।"
नर्स फटाफट बच्चे को ऑपरेशन थियेटर में ले गयीं।
" डॉक्टर साहब मेरे बच्चे को बचा लो। देखो कितना खून बह गया है उसका।" बच्चे की मां रोते हुए बोली।
" आप घबराइए मत। सब ठीक हो जाएगा।"
लगभग एक घंटे बाद ऑपरेशन थियेटर का दरवाज़ा खुला और नर्स स्ट्रेचर पर उस लड़के को रूम में ले कर जा रही थीं। उसकी मां उसको देखते ही उसकी ओर भागी तो नर्स ने रोकते हुए कहा, " रूम में मिलना। "
तभी उसकी मां ने डॉक्टर को बाहर आते देखा तो वह उनकी तरफ भाग कर गयी और पूछने लगी, " मेरा बेटा अब कैसा है?"
" आप बिल्कुल चिंता ना करें। आपका बेटा बिल्कुल ठीक है। कुछ दिनों में छुट्टी मिल जाएगी। आप जाकर उससे मिल लीजिए।"
वह औरत डॉक्टर का धन्यवाद करती हुई वहां से चली गई।
यह हैं डॉक्टर आयुष कुमार। चाइल्ड स्पेशलिस्ट। बहुत छोटी उम्र में इन्होंने बहुत नाम कमाया है। आज तीस साल की उम्र में इन्हें हॉस्पिटल के चिल्ड्रन वॉर्ड का इंचार्ज बना दिया गया। एक बहुत ही ज़िम्मेदार, असूलों के पक्के, अपने प्रोफेशन से प्यार करने वाले, और मोस्ट एलिजिबल बैचलर इन द हॉस्पिटल। आयुष की शख्सियत ही कुछ ऐसी है कि लोग उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। तकरीबन पांच फुट सात इंच लंबा कद, पतला पर गठीला बदन, सलीके से कटे हुए बाल, चेहरे पर एक गंभीर भाव।
आयुष के लिए उसका प्रोफेशन सिर्फ काम नहीं था बल्कि उसकी ज़िंदगी थी। और यही वह अपने नीचे काम करने वाले हर डॉक्टर से आशा करता था।
शायना- ( आयुष की तरफ मुस्कुराते हुए बोली) तो फिर आज तुमने रूल्स तोड़ दिए?
आयुष- डॉक्टर शायना, ऐसे रूल्स किस काम के जो किसी की जान ही ले लें।
शायना- ( आयुष के करीब आते हुए बोली) हाय! कभी ऐसा हमारे बारे में भी सोच लिया करें डॉक्टर आयुष। आपकी चुपी हमारी भी तो जान ले रही है।
आयुष- ( शायना को अपने से दूर करते हुए) तुम्हारे पास इस टॉपिक के अलावा और कोई बात नहीं है क्या? चलें जाएं आप, काम करें और मुझे भी काम करने दें। ( आयुष मुस्कुराते हुए बोला)
शायना- (दरवाज़ा खोलते हुए) मेरे अलावा तुम्हें कोई और नहीं मिलेगी। देख लेना। आना मेरे पास ही पड़ेगा।
आयुष- ( हंसते हुए) मुझे कोई नहीं चाहिए। मैं जैसा हूं वैसा ही ठीक हूं।
दूसरी तरफ कपूर हॉउस में ढोल बाज रहे थे। मिस्टर कपूर और नेहा नाच रहे थे। तभी कमला ताई ने उस शोरगुल में चिल्लाते हुए पूछा - अरे! हमें भी कोई बताएगा कि क्या हुआ है। क्यों ये नगाड़े पीट रहे हो दोनों।
मिस्टर कपूर- अरे! कमला ताई, मिठाई बांटों, प्रिया का रिज़ल्ट आ गया है। वो डॉक्टर बन गई। ( तभी उन्होंने मिसेज कपूर को भी नाचने के लिए खींचा) तुम भी नाचो जया, आज हमारी बिटिया डॉक्टर बन गई।
तभी कमला ताई ने ढोल वालों को चुप कराते हुए कहा-
जिसका रिजल्ट आया है वो कहां है। बिना उस के ही सब नाच रहे हैं।
नेहा- कमला ताई वो मंदिर गई है। आज उसकी पांच साल की मेहनत सफल हुई है। तो भगवान को मक्खन लगाने गई है कि किसी अच्छे से हॉस्पिटल में उसे इंटर्नशिप करने का मौका मिल जाए।
जया- ज़रूर मिलेगा। तेरी सहेली इतने अच्छे नम्बरों से पास हुई है।
तभी उन्हें प्रिया की आवाज़ आती है।
" मां-पापा, कमला ताई, नेहा, आप सब मेरे बिना ही नाच रहे थे?"
सबने मुड़ कर उसे देखा। गुलाबी सलवार कमीज़, हवा में लहराते बाल, चेहरे पर भोली सी मुस्कान और हाथों में पूजा की थाली लिए प्रिया खड़ी थी। उसने सब को आकर प्रसाद बांटा।
जया ( प्रिया की मां) - क्या मांगा मेरी गुड़िया ने अपने भगवान से।
प्रिया- एक अच्छे से हॉस्पिटल में इंटर्नशिप मिल जाए बस और क्या।
जया- हां, एक बढ़िया से प्राइवेट हॉस्पिटल में मिल जाए तो किस्मत चमक जाएगी।
प्रिया- नहीं मां, सरकारी हॉस्पिटल में।
मिस्टर कपूर-( प्रिया की तरफ हैरानी से देखते हुए) सरकारी! क्यों?
प्रिया- अरे! आप सब तो ऐसे चोंक गये जैसे कोई बम्ब फटा हो। असली डॉक्टरी तो सरकारी हॉस्पिटल में ही सीखी जा सकती है पापा।
मिस्टर कपूर- ( प्रिया के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए)
मेरी बिटिया ने सोचा है तो कुछ ठीक ही सोचा होगा। चलो आज का डिनर बाहर खाएंगे। नेहा अपने मम्मी पापा को भी बोल देना कि आठ बजे तक तैयार रहें।
नेहा- ठीक है अंकल।
हॉस्पिटल के चिल्ड्रन वॉर्ड में डॉक्टर आयुष बच्चों का चेक अप कर रहा था कि तभी डॉक्टर जतिन उसके पास आया।
जतिन- डॉक्टर कुमार, लीजिए इंटर्नस की लिस्ट आ गई।
आयुष- ( एक बच्चे को इंजेक्शन लगाते हुए बोला) इस बार कितने इंटर्नस भेजें हैं।
जतिन- आठ... मेरे ख्याल से ये भी ज़्यादा हैं।
आयुष और जतिन केबिन की तरफ चल पड़े। वहां पहुंचे तो शायना उनका पहले से ही इंतज़ार कर रही थी।
शायना- बहुत देर कर दी मेहरबान आते- आते।
आयुष-( हंसते हुए) आज बहुत खुश दिख रही हो।
शायना- हां...इंटर्नस की लिस्ट जो आ गई।
तीनों एक साथ हंसने लगते हैं।
आयुष- पिछले साल के बैच ने तो नाक में दम कर दिया था। इस साल पता नहीं क्या होगा?
जतिन- पर सर आपने उन्हें बहुत अच्छे से संभाला था।
आयुष- हां..पर सब ने कितनी गलतियां करीं थीं। और मैडिकल प्रोफेशन में गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती।
शायना- उनमें से किसी को भी यहां नौकरी नहीं मिली।
जतिन- बेचारे...आप लोग थोड़ी अच्छी रिपोर्ट तैयार करते तो कुछ को तो मिल जाती।
आयुष- डॉक्टर जतिन, मुझे पता है कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। पूरे साल आप जिसके इर्द-गिर्द घूम रहे थे मुझे सब पता है। पर इस बार ऐसा कुछ नहीं करिएगा। प्लीज़, आपके हाथ जोड़ता हूं।
जतिन- ( खड़े होते हुए) सर प्लीज़ आप हाथ मत जोड़िए।
( थोड़ा सा शर्माते हुए बोला) अब सर आपने तो शादी ना करने की कसम खा रखी है। पर मैं बेचारा अकेले तन्हा अपना सफर नहीं काट सकता ना। तो बस किस्मत आज़मा रहा था।
आयुष- (ज़ोर से हंसते हुए) अब जाएं आप, कुछ काम करा कीजिए। वरना अगली रिपोर्ट आपकी जाएगी।
जतिन वहां से चला गया।
शायना- कुमार, इस बार थोड़ी सख्ती ज्यादा रखनी होगी।
आयुष- ( मुस्कुराते हुए) आप कहें तो सब की खाल खिंचवा कर रख दें। बस हुक्म करें।
शायना- ( आयुष की आंखों में देखते हुए बोली) सब को छोड़ें आप सिर्फ हमें ही खींच लें। बस इतनी इनायत कर दीजिए।
आयुष- ( केबिन से बाहर जाते हुए) तुम्हारी गाड़ी एक ही प्लैटफॉर्म पर क्यों खड़ी रहती है। चलो, ओ.पी.डी का समय हो गया।
दोनों उठ कर ओ.पी.डी की तरफ चल पड़े।
आज प्रिया के लिए बहुत खुशी का दिन था। उसके चेहरे से हंसी हट नहीं रही थी। आज उसे अपने मनचाहे हॉस्पिटल में इंटर्नशिप का मौका मिला था। उसकी मां ने उसकी आरती उतारी और प्रसाद दिया। कमला ताई ने उसे दही चीनी खिलाई
जया- आज तेरा पहला दिन है। भगवान करे तेरी हर मुराद पूरी हो।
मिस्टर कपूर- तैयार हो गई मेरी बेटी। कैसे जाएगी हॉस्पिटल? ऑटो से या मेट्रो से।
प्रिया- ( अपने पापा के गले लगते हुए बोली) बस साक्षी का इंतज़ार कर रही हूं। वो आ जाए फिर हम मेट्रो से जाएंगे।
तभी साक्षी भागती हुई आती है।
साक्षी-( हांफते हुए बोली) नमस्ते अंकल, नमस्ते आंटी। चल बहन बहुत देर हो गई।
मिस्टर कपूर- अरे! बच्चियों ज़रा रुको तो। आओ बाहर चलो एक सर्प्राइज है तुम्हारे लिए।
वह दोनों हैरान हो बाहर जाते हैं और एक कार, पार्किंग में खड़ी देख हैरान हो जाते हैं।
मिस्टर कपूर- ये तुम्हारे लिए प्रिया बेटा। आज से तुम इसमें जाओगी। अभी ड्राइवर छोड़ देगा। फिर जब तुम बढ़िया से सीख जाओगी तो खुद चला कर लें जाना।
प्रिया खुशी से झूम उठी और मिस्टर कपूर को गले से लगा लिया।
प्रिया- थैंक्स पापा। इतना बड़ा सर्प्राइज। पर पापा आपने इतना खर्चा क्यों किया?
मिस्टर कपूर- मेरी बेटी ने मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया और मैं उसको एक छोटा सा गिफ्ट भी नहीं दे सकता। चलो अब दोनों जल्दी जाओ। पहले दिन लेट नहीं होना चाहिए।
प्रिया और साक्षी जल्दी से गाड़ी में बैठ अपने नए सफर पर चल पड़े। प्रिया बहुत खुश थी। आज डॉक्टर बनने का उसका सपना साकार होता दिख रहा था। पर अंदर एक डर भी था कि क्या वो एक सफल डॉक्टर बनने में कामयाब हो पाएगी। क्या वह उस मुकाम तक पहुंच पाएगी जो उसने सोचा है। यह सब तो उसकी इंटर्नशिप तय करेगी कि वह अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कितनी कामयाब होगी।
क्रमशः