थोड़ी देर में आयुष प्रिया को उस बताई जगह पर ले आता है।
आयुष- डॉक्टर कपूर, एक शर्त है। आप तब तक आंखें नहीं खोलेंगी जब तक मैं नहीं कहूंगा। ( गाड़ी से उतर कर वह प्रिया की तरफ का दरवाज़ा खोलता है) आइए।
प्रिया- (मुस्कुराते हुए) सर, आंखें बंद हैं। कैसे आऊं? गिर जाऊंगी।
आयुष- अरे! हां ...अब...आप ...आप मेरा हाथ पकड़ लीजिए। मैं लेकर चलूंगा आपको वहां तक।
प्रिया- ( हैरान होकर) जी, मैं... कैसे। सर मैं आंखें खोल लेती हूं।
आयुष- नहीं, आप आंखें मत खोलिए। जो मुझे आपको दिखाना है वो देखने का मज़ा ही खत्म हो जाएगा। प्लीज़, हाथ दीजिए। खबराएं नहीं डॉक्टर कपूर, मैं आपको गिरने नहीं दूंगा।
प्रिया आयुष के हाथ में धीरे से अपना हाथ देती है। आयुष उसे आराम से गाड़ी से उतारता है। वह उसे बहुत सावधानी से आगे लेकर जाता है। प्रिया का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। वैसे ही आयुष की नज़रें उसे बैचैन करती हैं और आज वह उसके इतने करीब है।
प्रिया- सर, खोल लूं आंखें?
आयुष- शशशशशश!!!! बहुत बोलतीं हैं आप डॉक्टर कपूर। आराम से चलिए।
प्रिया को आयुष का यह अंदाज़ बहुत भाता था। वह मंद - मंद मुस्कुराने लगी। आयुष उसे एक जगह लाकर खड़ा कर देता है।
आयुष- अब आप अपनी आंखें धीरे से खोलिए।
प्रिया धीरे से अपनी आंखें खोलती है। सामने का नज़ारा देख उसकी आंखें नम हो जाती हैं। सामने पहाड़ों के पीछे से सूरज धीरे - धीरे डूब रहा था। प्रिया को डूबते सूरज को देखना बहुत पसंद था। पर इतनी भाग-दौड़ भरी जिंदगी में कहां फुरसत मिलती थी।
प्रिया- सर, ये तो जन्नत का एहसास दिला रहा है। कितना खूबसूरत सन सेट है। अमेजिंग।
आयुष- पता नहीं क्यों पर मुझे लगा कि आपको सन सेट पसंद होगा।
प्रिया- (आयुष की आंखों में देखते हुए) बहुत पसंद है। पर शहर में ऊंची इमारतों के बीच कहां देखने को मिलता है सन सेट। पर हमारे शहर में ऐसी भी कोई जगह है यह मुझे नहीं पता था। थैंक्स, डॉक्टर कुमार। मुझे यहां लाने के लिए। वाह! हवा भी कितनी प्यारी लग रही है।(प्रिया अपने उड़ते बालों को संभालते हुए बोली)
आयुष- मैं जब भी उदास होता हूं या अकेला होता हूं तो यहां आ जाता हूं। बहुत सुकून मिलता है यहां बैठ कर। वैसे आप उदास होती हैं तो कहां जाती हैं?
प्रिया- ( मुस्कुराते हुए) सर, वैसे तो मैं उदास होती नहीं कभी। और अगर कभी होती हूं तो पापा हैं ना। वो झट से मेरी उदासी दूर कर देते हैं। पर सर, आप उदास क्यों होते हैं?
आयुष- डॉक्टर कपूर, आप इस प्रोफेशन में अभी आए हैं। मुझे सात साल हो गए। ऐसा बहुत बार होता है कि हम किसी बिमारी के आगे इतने बेबस और लाचार हो जाते हैं कि कुछ कर नहीं पाते। मैंने छोटे-छोटे बच्चों को दम तोड़ते देखा है। एक मां बाप के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बोझ होता है अपने बच्चे की बॉडी उठाना। बस, जब कभी यह सब नहीं सहन होता तो यहां आ जाता हूं। अपने अंदर एक नई ताकत भरने।
प्रिया आयुष को बहुत गौर से सुन रही थी। आयुष की बातों में एक अलग सा खिंचाव है। जो प्रिया को आयुष की तरफ खींचता है।
आयुष- सॉरी, मैं भी क्या बातें ले बैठा। आप सन सेट इंजॉय करें। आप चाय पीएंगी?
प्रिया- चाय? यहां?
आयुष- ( जहां वह बैठे थे वहां से थोड़ा नीचे की तरफ एक चाय के स्टॉल की तरफ इशारा करते हुए बोला) वो देखिए। वहां मिलेगी। ऐसा करें आप बैठें मैं लेकर आता हूं।
प्रिया- सर, मैं भी चलूंगी।
आयुष- डॉक्टर कपूर, थोड़ा खराब रास्ता है आप रुकें मैं ला देता हूं।
प्रिया- सर, प्लीज़।
आयुष- आप भी ना बच्चों की तरह ज़िद्द करती हैं। आइए। पर संभल कर।
दोनों नीचे की तरफ उतरना शुरू करते हैं। प्रिया बहुत संभल कर चल रही थी। पर चलते हुए बार - बार डूबते सूरज को भी देख रही थी। अचानक उसका पैर लड़खड़ा गया और वह आयुष पर गिर पड़ी। आयुष ने उसे संभाल लिया।
आयुष- देखा, तभी कहा था मैंने कि आप मत आइए। पर आप तो...
प्रिया- सॉरी सर, अब आराम से चलूंगी।
वह दोनों उस स्टॉल पर पहुंचते हैं। आयुष प्रिया को बैंच पर बैठने को कह कर चाय लेने जाता है। वहां से डूबता सूरज और भी ज़्यादा करीब दिख रहा था। कुछ देर में आयुष चाय लाता है।
आयुष- लीजिए डॉक्टर कपूर।
प्रिया- थैंक्स सर। देखिए यहां से सन सेट और करीब दिख रहा है। ( मुस्कुराते हुए) इसलिए तो मैं आना चाहती थी।
आयुष- हम्मम... जस्टिफाई कर रहीं हैं अपने आप को।
प्रिया- (हंसते हुए) नहीं सर।
आयुष- वैसे, अभी हम हॉस्पिटल में नहीं हैं। तो आप मुझे मेरे नाम से बुलाएंगी तो मुझे ज़्यादा अच्छा लगेगा।
प्रिया- सर, आप सीनियर हैं। मैं आपको नाम से कैसे बुला सकती हूं?
आयुष- पर वो सिर्फ़ हॉस्पिटल में। अभी तो मैं आपका सीनियर नहीं हूं।
प्रिया- ( आयुष की आंखों में देखते हुए) तो क्या हैं?
आयुष- ( प्रिया की आंखों में देखते हुए बोला) दोस्त! और मेरे ख्याल से आप दोस्तों को उनके नाम से ही बुलाती हैं।
प्रिया- ठीक है। डॉक्टर आयुष बुलाऊं तो चलेगा।
आयुष- बिल्कुल नहीं चलेगा। सिर्फ आयुष।
प्रिया- तो आप भी मुझे सिर्फ प्रिया बुलाएंगे। तभी मुझे चलेगा।
आयुष- ( मुस्कुराते हुए बोला) ओके!
प्रिया- आप कह रहे थे कि जब आप अकेलापन महसूस करते हैं तो आप यहां आ जाते हैं। आप अपनी फेमिली को बहुत मिस करतें हैं ना?
आयुष- हां, मिस तो करता हूं।
प्रिया- तो फिर आप उन्हें यहां क्यों नहीं ले आते? आपके साथ रहेंगे तो आपको अच्छा लगेगा। और वैसे भी बहुत अच्छा लगता है जब हमें यह पता होता है कि घर पर हमारा कोई इंतज़ार कर रहा है।
आयुष- जानता हूं। देखा आपकी फेमिली को उस दिन। सब आपका कितनी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।
प्रिया- तभी तो कह रही हूं कि अपनी फेमिली को यहां ले आइए डॉक्टर कुमार।
आयुष इधर उधर नज़र दौड़ाने लगा। प्रिया को लगा कि शायद वह उसकी बात सुनकर भी अनसुनी कर रहा है।
प्रिया- आप किसे ढूंढ रहे हैं?
आयुष- डॉक्टर कुमार को! मैं तो आयुष हूं।
प्रिया- (हंसते हुए) सॉरी, आयुष। तो अब जवाब मिलेगा मेरे प्रश्न का?
आयुष- प्रिया, मेरी फेमिली बहुत बड़ी है। मैं उन्हें यहां नहीं बुला सकता। जगह कहां है इतनी मेरे पास।
प्रिया- तो बड़ा घर ले लीजिए।
आयुष- (हंसते हुए) जितनी सैलरी है उतना ही तो कर सकता हूं।
प्रिया- वाह! इतनी बड़ी फेमिली है आपकी। मुझे बड़ी फेमिली बहुत अच्छी लगती हैं। हमारी बहुत छोटी सी फेमिली है। पापा की साइड से तो दादी-दादू के बाद कोई है ही नहीं और मम्मी की साइड से भी अब सिर्फ मामाजी हैं। कभी मौका मिलेगा तो आपकी पूरी फेमिली से ज़रुर मिलूंगी।
आयुष- ( कुछ सोचते हुए) कल ही मिल सकतीं हैं। कल इतवार को आपकी ड्यूटी तो नहीं होगी ना? तो चलिए मेरे साथ।
प्रिया- कल? पर कल ड्यूटी है मेरी।
आयुष- प्रिया, पिछले इतवार भी तो आपकी ड्यूटी थी? इस बार कैसे है?
प्रिया- कैसे है, ये मुझे नहीं पता।
आयुष सब समझ गया कैसे प्रिया की ड्यूटी है। सब शायना की हरकत थी। पर वह यह सब बता कर प्रिया को परेशान नहीं करना चाहता था। उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और हॉस्पिटल के रिसेप्शन पर फोन किया।
आयुष- मोनिका, कुमार हेयर। कल डॉक्टर कपूर ड्यूटी पर नहीं आ पाएंगी। उन्होंने मुझे फोन करके लीव ले ली है। आप ऐसा करें कि डॉक्टर साक्षी और डॉक्टर अंकुर की ड्यूटी लगा दें और उनको इंफोर्मेशन भेज दें।
यह कह आयुष ने फोन रख दिया।
आयुष- ( मुस्कुराते हुए) अब आप फ्री हैं। तो कल चलेंगी मेरे साथ मेरी फेमिली से मिलने।
प्रिया- बिल्कुल चलूंगी। पर साक्षी मार डालेगी जब उसे पता चलेगा।
आयुष- नहीं मारेंगी। उनके साथ डॉक्टर अंकुर जो होंगे।
प्रिया- ( बे ध्यानी में बोलते हुए) हां , उसे और कौन चाहिए फिर। ( अचानक उसे एहसास हुआ कि उसने क्या बोल दिया) मेरा मतलब.... दोनों अच्छे दोस्त हैं ना तो...
आयुष- ( हंसते हुए) आपको क्या लगता है मैं कुछ नहीं जानता। मुझे सब पता है और सब दिखता है किसका क्या चल रहा है।
प्रिया- आपसे बचकर रहना पड़ेगा।
दोनों हंस पड़ते हैं।
आयुष- अब चलें। सन तो सेट हो गया। अब अंधेरा होने वाला है।
प्रिया- जी, बिल्कुल अब निकलना चाहिए।
दोनों उठ ऊपर वापस गाड़ी की तरफ बढ़ते हैं। आयुष प्रिया को संभल कर आने के लिए कहता है। आखिर में पहुंच कर एक बहुत ऊंची चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। प्रिया वहीं खड़ी हो जाती है। आयुष उसकी तरफ हाथ बढ़ाता है।
आयुष- आइए प्रिया, मेरा हाथ पकड़ लीजिए, मैं आपको ऊपर खींच लूंगा।
आयुष प्रिया को खींच कर ऊपर ले आता है। ऊपर खींचते ही आयुष का संतुलन बिगाड़ जाता है पर प्रिया उसको संभाल लेती है। एक पल के लिए दोनों एक दूसरे को देखते हैं। दोनों के दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। पर ना जाने क्यों एक दूसरे के प्रति अपने आकर्षण को दोनों कबूल नहीं करना चाहते।
आयुष- थैंक्स, बचा लिया आपने।
प्रिया कुछ नहीं बोल पाती। सिर्फ मुस्कुरा कर आयुष को देखती है। उसका दिल अभी भी बहुत ज़ोर से धड़क रहा था।
आयुष- आइए, आपको घर छोड़ दूं।
आयुष प्रिया को घर छोड़ देता है और उसे अगले दिन दस बजे तक तैयार रहने को कहता है।
प्रिया खिड़की के पास बैठ कर आयुष के बारे में सोच मुस्कुरा रही थी कि नेहा वहां आ जाती है।
नेहा- ( गाना गाते हुए)
गुम है किसी के प्यार में दिल सुबह शाम
पर तुम्हें कह नहीं पाऊं मैं उसका नाम।।
हाय! क्या बात है! आजकल आप वहां हैं जहां से आपको खुद की भी खबर नहीं।
प्रिया- चल पगली! कुछ भी बोलती है।
नेहा- ( उछल कर बैठती हुई) चल बता, क्या - क्या हुआ आज।
प्रिया- मतलब! क्या होना था?
नेहा- अरे! मेरा मतलब है कि कहां लेकर गये डॉक्टर आयुष तुझे।
प्रिया- ( उत्साहित होते हुए बोली) बहुत सुंदर जगह थी नेहा। वहां से सन सेट इतना खूबसूरत था।
फिर प्रिया ने नेहा को सारा वाकया विस्तार से बताया।
नेहा- ओह! माई गॉड! डॉक्टर आयुष ने तेरा हाथ पकड़ कर तुझे खींचा। बहन, बेहोश तो नहीं हुई तू?
प्रिया- चल चुप कर। मैं बेहोश क्यों होऊंगी?
नेहा- वो तुझे अपनी फेमिली से मिलाने लेकर जा रहे !
(प्रिया को छेड़ते हुए गाना गाती है)
शायद अपनी शादी का ख्याल उनके दिल में आया है,
इसलिए फेमिली से मिलाने तुझे चाय पे बुलाया है।
प्रिया- ( नेहा के गाने से परेशान होकर बोली) तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? ( नेहा को छेड़ते हुए) मुझे तो कुछ - कुछ डॉक्टर जतिन का असर नज़र आ रहा है। तेरा क्या चल रहा है?
नेहा- चाय, कॉफी और चुटकुले। इससे आगे बढ़ ही नहीं रहे जतिन।
प्रिया- ओहो! तो तू बढ़ जा। किसी ने रोका है क्या?
नेहा- यार! पहले पता तो चले बंदे के दिमाग में चल क्या रहा है। तब तो कुछ बात करूं। पर जो भी हो जतिन के साथ एंटरटेनमेंट फुल होता है। बहुत हंसाते हैं।
प्रिया- कल मैं जा रही हूं तो कमला ताई का ख्याल रखना। मां- पापा से बात कर ली है मैंने। उन्होंने कहा है कि वो कल रात तक आ जाएंगे।
नेहा- ठीक है। तू जा और रिश्ता पक्का कर के लौटना।
प्रिया उसके पीछे उसे मारने के लिए दौड़ पड़ती है।
उधर आयुष मिस्टर चौधरी से फोन पर बात करता है।
आयुष- सर, आप जानते हैं कि डॉक्टर कपूर बहुत बढ़िया डॉक्टर हैं और उन्होंने अपनी काबीलियत प्रूव भी की है।
फिर भी उनको बैच नहीं मिलना इज़ सर्प्राइज़िग।
मिस्टर चौधरी- जानता हूं कुमार, पर तुम दोनों की रिपोर्ट ही इतनी अलग थीं। और फिर डॉक्टर कपूर ने शायना के साथ चार ओ.पी.डी. करीं और वह एक में भी अपने आप को प्रूव नहीं कर पाईं, शायना की रिपोर्ट के मुताबिक।
आयुष- सर, एक महीने में मुश्किल से एक या दो बार किसी डॉक्टर के साथ ओ.पी.डी. हो सकती है इंटर्नस की। शायना ने चार कैसे कराईं डॉक्टर कपूर को अपने साथ? शायना लिबर्टी ले रही है अपनी पॉवर का।
मिस्टर चौधरी- आयुष, लिबर्टी भी तो तुमने ही दी है।
आयुष- जानता हूं सर, पर अब से इंटर्नस का ड्यूटी शिड्यूल मैं संभालूंगा। आप बस कुछ भी कीजिए और डॉक्टर कपूर का बैच दिलवाएं सर। सारे इंटर्नस जानते हैं कि डॉक्टर कपूर इज़ गुड़। ऐसे में उनको बैच नहीं मिला तो हमारे हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट की इमेज खराब होगी।
मिस्टर चौधरी- ठीक है आयुष। मैं देखता हूं।
आयुष फोन रख सो जाता है।
क्रमशः
आस्था सिंघल