प्रिया सोनल को घर लेकर आती है। सोनल बच्ची को अंदर रूम में सुलाने चली जाती है। प्रिया चुपचाप सोफे पर बैठ जाती है। उसकी बाहर की खामोशी से उसके अंदर चल रहे युद्ध का पता नहीं चल रहा। वह चुपचाप बैठ सोनल के बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी।
जया- प्रिया, बेटा क्या हुआ? तू ऐसे क्यों बैठी है? कोई बात हुई क्या?
प्रिया - मां, दीदी और आयुष पहले से एक दूसरे को जानते हैं।
जया- तो, उससे क्या हुआ?
प्रिया- मां, दीदी ने आयुष को धोखा दिया है।
तभी सोनल के बाहर आते ही प्रिया झट से उसके पास गई।
प्रिया- दीदी, सिर्फ सच सुनना है मुझे।
सोनल- प्रिया, छह साल पहले आयुष मद्रास आया था। हॉस्पिटल की तरफ से एक ट्रेनिंग प्रोग्राम पर। उस समय मैं मनोविज्ञान में एम.ए कर रही थी। बिमार बच्चों की मनोदशा पर एक रिपोर्ट तैयार करनी थी। तो कुछ दिनों तक हॉस्पिटल आना जाना लगा रहता था। उसी दौरान आयुष से मेरी मुलाकात हुई। उसने मेरी इस रिसर्च में बहुत मदद की। धीरे- धीरे दोस्ती हो गई और कब प्यार हो गया पता ही नहीं चला।
आयुष की पर्सनैलिटी इतनी अलग है कि उसकी ओर अपने खिंचाव को रोक नहीं पाई। भूल गयी थी कि पापा के हिसाब से प्यार करना गुनाह है। जब आयुष और मैंने एक दूसरे से अपने दिल की बात कही थी तब आयुष ने बताया कि वह अनाथ है और उसका पालन पोषण एक अनाथालय में हुआ है। यह सोच मैं कांप उठी, क्योंकि अपने पिता की सोच जानती थी मैं। उनके लिए खानदान बहुत बड़ी चीज़ है।
पर आयुष के लिए मेरा खिंचाव इतना ज़्यादा था कि मुझसे पीछे हटा ही नहीं गया। फिर जब आयुष की ट्रेनिंग खत्म होने वाली थी तो उसने मुझे अपने पापा से मिलाने को कहा। तब मैंने उसे पापा की सोच के बारे में बताया।
आयुष बहुत नाराज़ हुआ था उस दिन। उसके हिसाब से जब मुझे अपने पिता की सोच के बारे में पता था तो मुझे इस रिश्ते को आगे बढ़ाना ही नहीं चाहिए था।
जया- (सोनल से नाराज़ होते हुए बोली) बिल्कुल सही कहा आयुष ने।
प्रिया उन्हें चुप रहने का इशारा कर सोनल को आगे बोलने को कहती है।
सोनल- मैंने आयुष को समझाया कि वह मुझे थोड़ा वक्त दे, मैं पापा से सही मौका देखकर बात कर लूंगी। वह ट्रेनिंग खत्म होने के बाद वापस चला गया। मैंने अपने जन्मदिन पर पापा से बात करने का प्रयास किया। मुझे लगा कि शायद आज पापा मेरी बात को टाल नहीं पिएंगे। पर पापा के लिए उनकी बेटी से ज़्यादा बड़ा खानदान और धर्म था। उन्होंने मेरा घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था। मुझसे मेरा फोन भी छीन लिया जिससे मैं आयुष को सम्पर्क ही नहीं कर पाईं।
पापा ने मेरा रिश्ता रजत से तय कर दिया। ये तो आप सब को पता है कि सगाई वाले दिन पापा को हार्ट अटैक आया था। उसकी वजह थी मेरे घर से भागने की नाकाम कोशिश।
जब पापा को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया तो उन्होंने मुझसे एक वचन लिया कि वह ज़िन्दा रहें या ना रहें पर मैं रजत से ही शादी करूंगी। अपने आपको पापा की हालत का ज़िम्मेदार समझते हुए मैंने हां कर दी। ईश्वर की कृपा से पापा ठीक हो गये। और मुझे मेरा वादा निभाना पड़ा। (और फिर सोनल रोने लगी)।
जया- ओह! तो इसलिए आयुष नाराज़ है कि सोनू ने कहीं और शादी कर ली।
प्रिया- मां, इतनी छोटी सोच नहीं है आयुष की। इन्होंने उनसे एक बहुत बड़ा झूठ बोला।
सोनल- सिर्फ आयुष की भलाई के लिए बोला।
प्रिया- (थोड़े ऊंचे स्वर में बोली) क्यों बोला दीदी। क्या आप जानते नहीं कि आयुष को झूठ से और झूठ बोलने वालों से सख्त नफ़रत है।
जया- अरे! बताओगी कि क्या बोला?
सोनल- बुआ, मैं नहीं चाहती थी कि आयुष का प्यार पर से भरोसा उठ जाए। क्योंकि वह अनाथ है इसलिए वह किसी को भी अपनी जिंदगी में आसानी से शामिल नहीं करता। उसने अपने जीवन में बहुत कड़वे अनुभव किए हैं इस बात को लेकर कि वह अपने खानदान और धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते। इसलिए मैंने रचना, जो मेरे और आयुष के बारे में जानती थी, उसको कहा कि वह आयुष को यह झूठी खबर दे कि मेरा एक्सीडेंट हो गया है और डॉक्टर्स मुझे बचा नहीं पाए। जब आयुष ने मेरे घर आने की बात कही तो रचना ने यह कहा कि वह घर ना आए क्योंकि अभी तक घर पर उसके और मेरे रिश्ते के बारे में किसी को पता नहीं था।ऐसे मौके पर पता चलेगा तो पता नहीं मेरे पापा कैसे रिएक्ट करेंगे।
जया- ये तूने क्या किया सोनू?
सोनल- बुआ, सिर्फ इसलिए किया क्योंकि मैं जानती थी कि अगर आयुष को यह पता चलता कि उसके अनाथ होने की वजह से उसका प्यार उसे नहीं मिला तो प्यार पर से उसका भरोसा उठ जाएगा। और वो फिर कभी प्यार को अपनी ज़िंदगी में आने नहीं देगा।
सोनल फूट - फूट कर रो पड़ी।
प्रिया- (सोनल के पास बैठ कर उसे चुप कराते हुए बोली) सोनू दीदी आपने शायद अपनी तरफ से सही सोचा, पर ये सोचा कि अगर आयुष को कभी इस बारे में पता चला तो क्या बीतेगी उन पर?
जया- सोनू, सच कितना ही कड़वा क्यों ना हो पर उसे बर्दाश्त करने की हिम्मत हर इंसान में होती है पर झूठ, भले ही किसी के भले के लिए बोला गया हो, सामने आने पर तकलीफ़ ही देता है।
प्रिया- आज आपने खुद आयुष की हालत देख ली दीदी। कितना मुश्किल हुआ होगा उनके लिए आपको अपनी आंखों के सामने ज़िन्दा देख कर। बहुत गहरे सदमे में थे आयुष। दीदी, ये सही नहीं किया आपने।
कह कर प्रिया उठ कर चली गई। सोनल काफी देर वहीं बैठ रोती रही।
उधर जब आयुष घर पहुंचा तो दरवाज़ा रुबीना,(आदिल की पत्नी) ने खोला।
रुबीना- आयुष भाई जान, कैसे हैं आप?
आयुष- (अपने चेहरे पर दिख रही परेशानी को मिटाने की नाकाम कोशिश करते हुए) रुबीना भाभी! कैसी हैं आप? इतने दिन लगा दिए आपने आने में?
रुबीना- (आयुष के गले लगते हुए बोली) बस भाईजान क्या बताऊं थोड़ी मसरुफ़ हो गई थी।
आयुष- (हंसी के पीछे अपने दर्द को छुपाते हुए बोला) इस इडियट को यहां आज़ाद छोड़ दिया था आपने।
आदिल- (हंसते हुए) हां भाई, तुझे तो जलन हो रही थी मेरी आज़ादी से। ले अब आ गई इस ताले की चाबी।
आयुष- (एक हल्की सी मुस्कान देते हुए) भाभी, आप बैठें मैं फ्रेश होकर आता हूं।
यह कह आयुष अपने कमरे में चला जाता है।
रुबीना- आदिल, आपको आज भाईजान कुछ अलग नहीं लग रहे?
आदिल- अच्छा? प्यार ने निखार दिया मेरे दोस्त को।
रुबीना- (गुस्से से देखते हुए बोली) आदिल आपको हर वक्त मज़ाक सूझता है। आज कुछ तो बात है?
आदिल- (हंसते हुए) कुछ तो गड़बड़ है दया!!!
रुबीना नाराज़ होकर उठ जाती है तो आदिल उसका हाथ पकड़ कर बैठा लेता है।
आदिल- माफ़ी सरकार!! अच्छा क्या अलग दिखा आज?
रुबीना- आज भाईजान के स्वागत में वो गर्मजोशी नहीं थी जो हमेशा होती है।
आदिल- तुम औरतों का दिमाग भी कहां जाता है।
रुबीना- आप मानें या ना मानें, कोई बात है जिसे लेकर भाईजान परेशान हैं।
लगभग एक घंटे तक भी आयुष कमरे से बाहर नहीं आया तो आदिल ने दरवाज़ा खटखटाया।
आदिल- आयुष, खाना लगा दिया भाई। इतनी देर लगा रहा है आज? जल्दी आ।
आयुष अब तक कुर्सी पर बैठा शून्य में देख रहा था। अचानक आदिल की आवाज़ से उसका ध्यान टूटता है।
आयुष- बस पांच मिनट आता हूं।
आयुष जल्दी से फ्रेश होकर बाहर आ जाता है। और खाने की मेज़ पर बैठ जाता है।
आदिल- क्यों भाई, ज़िन्दगी भर की धूल उतार रहा था क्या?
आयुष- (व्यंग्यात्मक लहजे में बोला) हां, मन पर चढ़ी यादों की धूल साफ कर रहा था।
आदिल और रुबीना उसे प्रश्न भरी निगाहों से देखते हैं तो वह मुस्कुरा देता है।
आयुष- मज़ाक कर रहा था यार! तो, आज खाने में क्या है।
आदिल- स्पेशल राजमा-चावल जस्ट फॉर यू।
आयुष- वाह! थैंक्स भाभी।
खाना खाने के बाद आयुष अपने कमरे में जाने के लिए उठा तो आदिल ने उसे रोक लिया।
आदिल- थोड़ी देर बैठ जा हमारे साथ। आज बहुत चुपचाप सा है तू?
रुबीना- भाईजान, क्या हुआ है? प्लीज़ बताएं।
आयुष- (मुस्कुराते हुए बोला) कुछ नहीं भाभी। आप बेकार ही फिक्र कर रही हैं।
आदिल- आयुष, झूठ वहां बोला जाता है जहां पकड़े जाने की गुंजाइश ना हो। बोल क्या हुआ? तुझे अपनी दोस्ती की कसम।
आयुष थोड़ी देर चुप बैठा रहा, फिर उसकी आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
आदिल- (बेचैन हो कर बोला) बता आयुष, क्या हुआ आज?
आयुष- सोनल इज़ अलाइव। ज़िन्दा है वो।
आदिल और रुबीना दोनों चौंक गए।
आदिल- क्या कह रहा है तू? तूने कहां देखा उसे?
आयुष- सिर्फ देखा नहीं बात करके आ रहा हूं उससे।
रुबीना- आप ठीक से बताओ क्या हुआ।
आयुष ने मॉल में हुई सारी घटना उन दोनों को सुनाई। वह दोनों यह सुन कर हैरान रह गए कि सोनल ने इतना बड़ा झूठ बोला। उससे भी ज़्यादा झटका उन्हें यह सुन कर लगा कि वह प्रिया की बहन है।
आयुष- पांच साल तक मैं इस छलावे में जीता रहा कि सोनल नहीं है। इस दर्द में तड़पता रहा कि मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सका। और वो झूठ बोल कर आराम से अपनी नई दुनिया में रम गई।
आदिल- तूने उससे पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया?
आयुष- वाई शुड आई आस्क हर फॉर जस्टिफिकेशन। झूठ बोलने की कोई सफाई नहीं दी जा सकती आदिल।
आदिल- आयुष, मैं मानता हूं कि उसने झूठ बोला। पर रीज़न जानना ज़रूरी है।
आयुष- (खड़े होते हुए) मुझे नहीं जानना आदिल। उसने मेरे प्यार, मेरे जज़्बात के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ किया है। आई जस्ट हेट हर। मुझे उसकी शक्ल से भी नफ़रत है।
ये कह कर आयुष अपने कमरे में चला गया। आदिल ने उसके जाते ही तुरंत प्रिया को फोन लगाया।
प्रिया- हैलो डॉक्टर आदिल। कैसे हैं आप? भाभी आ गये?
आदिल- हां, आ गई। प्रिया, आज मॉल में क्या हुआ?
प्रिया- आप पहले ये बताइए कि आयुष कैसे हैं। उन्हें बहुत सारे मैसेज करे पर एक का भी रिप्लाई नहीं किया उन्होंने।
आदिल- प्रिया, वो बहुत डिस्टर्ब है इस वक्त। प्रिया, आपने पूछा अपनी बहन से कि उनके उस कदम के पीछे रीज़न क्या था?
प्रिया ने आदिल को सोनल की सारी बात बताई।
प्रिया- डॉक्टर आदिल, मैं जानती हूं कि दीदी ने जो किया वो ग़लत था। मैं जस्टिफाई या डिफेंड़ नहीं कर रही उन्हें। पर उन्होंने जो किया वह आयुष के लिए किया। उनकी इन्टेन्शन ग़लत नहीं थीं।
आदिल- प्रिया, झूठ तो झूठ होता है। फिर चाहे किसी भी इन्टेन्शन से क्यों ना बोला गया हो। झूठ के पैर नहीं होते। सच एक दिन सामने आता ही है। भले ही सोनल ने आयुष की भलाई के बारे में सोच कर झूठ बोला, पर क्या उसने यह सोचा कि उस झूठ से आयुष को कितनी तकलीफ़ हो सकती है। वो आयुष, जिसने कभी अपने हालातों से भी नफ़रत नहीं की, उसे आज सोनल के वजूद से नफ़रत हो गई है। सोनल चाहती थी कि आयुष का प्यार पर से भरोसा ना उठे, इसलिए उसने झूठ बोला, आज उसी आयुष को प्यार से नफ़रत हो गई है।
प्रिया- डॉक्टर आदिल, आप मेरी आयुष से बात करा दें प्लीज़।
आदिल- आज बात करने का कोई फायदा नहीं। कल तक इंतज़ार करते हैं। और हां, प्रिया आप टैंशन ना लें। मेरे ख्याल से अब अगर आयुष को कोई इससे बाहर निकाल सकता है तो वो है आपका प्यार। भरोसा रखिए।
प्रिया- जी, आप आयुष का ध्यान रखिएगा। डॉक्टर आदिल, अब जब आपको सब पता चल गया है तो आप आयुष को बता दीजिए। हो सकता है वह कुछ शांत हो जाएं।
आदिल- प्रिया, मैं कोशिश ज़रूर करूंगा। पर आपको नहीं लगता कि जिसने यह शुरू किया था उसे ही खत्म भी करना चाहिए।
प्रिया फोन रख कर सोच में डूब गयी। इस वक्त उसे आयुष के साथ अपने भविष्य की चिंता से ज़्यादा आयुष की चिंता थी। उसे अंदाज़ा था कि आयुष इस वक्त एक सदमें से गुज़र रहा है। पर अगर वह ज़्यादा समय तक इस हालत में रहा तो वह बिमार पड़ जाएगा। उसने कुछ सोचा और सोनल को फोन मिलाया।
सोनल- (फुसफुसाते हुए प्रिया से बोली) बोल प्रिया। सब कुछ ठीक है ना?
प्रिया- आपसे एक रिक्वेस्ट है, आप जाकर आयुष को सब सच बता दें।
सोनल- पर वह कुछ सुनने को तैयार कहां था। और तू तो जानती है अपने मामाजी को। अगर उन्हें भनक भी लग गई तो मेरा क्या हाल होगा?
प्रिया- दीदी, मामाजी की बहुत रिस्पेक्ट करती हूं मैं। उनकी आइडियोलॉजी के खिलाफ कुछ नहीं कहना मुझे। मैं बस इस वक्त आयुष को इस तकलीफ़ से बाहर निकालना चाहती हूं। आप जल्द से जल्द आयुष से मिलें और उन्हें अपनी सच्चाई बताएं।
ये कह प्रिया ने फोन रख दिया।
क्रमशः
आस्था सिंघल