अगली सुबह आयुष ठीक दस बजे प्रिया के घर के बाहर पहुंच जाता है।
प्रिया- (मुस्कुराते हुए) गुड़ मॉर्निंग
आयुष- (मुस्कुराते हुए) गुड़ मॉर्निंग, आप तैयार हैं तो चलें।
प्रिया- ( कमला ताई को आवाज़ देते हुए आयुष से कहती है) बस एक मिनट।
कमला ताई- जा रही हो। ( आयुष को देखते ही) अरे! हॉस्पिटल क्यों जा रही हो। ये तुम्हें एक दिन की छुट्टी भी नहीं दे सकते।
प्रिया- ( कमला ताई को चुप रहने का इशारा करते हुए) ताई, हॉस्पिटल नहीं जा रही हूं। आप अपना ख्याल रखना और नेहा को बोल दिया है मैंने वो दोपहर को आ जाएगी आपके पास। अब मैं जाऊं।
कमला ताई- ( आयुष को देखते हुए) ध्यान से लेकर जाना। वरना वहीं आ जायेंगे हम और....
प्रिया- ताई.... अंदर जाएं। आराम करें।
आयुष कार स्टार्ट कर प्रिया को लेकर वहां से चल पड़ा।
आयुष- ( हंसते हुए) प्रिया, आपकी कमला ताई के पास बंदूक होती तो वो आज मेरा खून कर देतीं।
प्रिया- सॉरी, वो कमला ताई को लगता है कि.....
आयुष- ( प्रिया की बात को बीच में काटते हुए बोला) कि मैं आप पर बहुत ज़ुल्म करता हूं, रात - दिन हॉस्पिटल में रोक के रखता हूं, आपको बहुत डांटता हूं। यही लगता है ना उन्हें।
प्रिया- उनका बस चले तो वो मुझे घर में ही रखें। वैसे भी वो मुझे एक प्रिंसेस की तरफ ट्रीट करतीं हैं।
आयुष- ( मुस्कुराते हुए) आप जो हैं वैसे ही तो ट्रीट करेंगी।
प्रिया- ऐसा नहीं है। बस वो बहुत प्यार करतीं हैं मुझे इसलिए। वैसे आपने अपनी फैमिली को बता दिया कि आप मुझे साथ लेकर आ रहे हैं?
आयुष- नहीं, और इसकी ज़रूरत भी नहीं है।
प्रिया- ( हैरानी से आयुष को देखते हुए) पर, मैं अचानक उनसे मिलूंगी तो उन्हें अजीब नहीं लगेगा?
आयुष- आप परेशान मत होइए। उन्हें बिल्कुल अजीब नहीं लगेगा।
प्रिया- ( कुछ सोचती है, फिर आयुष से पूछती है) वैसे आपकी बड़ी सी फैमिली में कौन-कौन हैं?
आयुष- आप खुद देख लीजिएगा।
प्रिया- आयुष, आप सस्पेंस बढ़ा रहे हैं।
आयुष- ( थोड़ा गंभीर होकर बोला) प्रिया, अपनी फैमिली से मिलाने से पहले मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं।
प्रिया- ( घबरा कर बोली) क्या बताना है? वो बहुत ट्रेडिशनल हैं क्या? आप मुझे बताते तो मैं जींस-टॉप की जगह कुछ ट्रेडिशनल पहन लेती।
आयुष- (हंसते हुए) ऐसा कुछ नहीं है। जो पहना है अच्छा लग रहा है। आज मैं आपको वो बात बताने जा रहा हूं जो सिर्फ मेरे बहुत नज़दीकी दोस्त जानते हैं। जैसे, शायना और जतिन। दोनों मेरे साथ कॉलेज के समय से हैं इसलिए जानते हैं। पर चूंकि आप मेरी फैमिली से मिलने वाली हैं तो आपको यह बताना ज़रूरी है। तभी आप उनकी मेरी लाइफ में क्या अहमियत है यह समझ पाएंगी।
प्रिया- प्लीज़, जल्दी बताएं।
आयुष- प्रिया, लाइफ कहां से शुरू हुई ये तो मुझे नहीं पता पर जब होश संभाला तो अपने आप को एक अनाथालय के ठंडे फर्श पर खड़ा पाया। डरा और सहमा हुआ सा। अनाथालय का मालिक सब बच्चों को बहुत मारता था, इसलिए सब उसके डर से बाहर ही नहीं निकलते थे।
हर इतवार को हम सबको अच्छे कपड़े पहनाकर लाइन में खड़े कर दिया जाता था। लोग आते थे और हममें से किसी एक को चुन कर लें जाते थे। जिनको नहीं चुना जाता था वह यही सोचते रहते थे कि उनमें क्या कमी थी।
मुझसे यह सब झेला नहीं जाता था, तो एक दिन मैं वहां से भाग गया। शायद उस वक्त मेरी उम्र सात या आठ साल की थी। अब इसे मेरी अच्छी किस्मत कह लो या अच्छे कर्म, मैं बाबा से जा टकराया। श्रीधर बाबा। शहर से कुछ दूरी पर उनका एक छोटा सा पोल्ट्री फार्म था। साथ ही उन्होंने एक छोटा सा अनाथाश्रम भी बना रखा था। बस, वह मुझे वहां ले आए। उन्होंने मुझे स्कूल भेजा,पढ़ाया - लिखाया। आज जो कुछ हूं उनकी बदोलत हूं। धीरे- धीरे वह बहुत से अनाथ बच्चों को आश्रम ले आए। आज करीब चालीस बच्चे हैं आश्रम में। सब को बाबा ही संभालते हैं। महीने में एक बार मिलने ज़रूर आता हूं सबसे। जान बसती है इन बच्चों में मेरी। बस, यही है मेरी फैमिली।
प्रिया आयुष की बातों को गौर से सुन रही थी। जब आयुष ने अपनी बात खत्म की तो प्रिया की आंखों से आंसू निकल आए।
आयुष- ( गाड़ी रोकते हुए) आप रो क्यों रहीं हैं?
प्रिया- कुछ नहीं, ऐसे ही। आज मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा है। मुझे लाइफ में सब कुछ बहुत आसानी से मिल गया, पर फिर भी पापा से कंप्लेंट करती रहती थी कि मेरे पास ये नहीं है वो नहीं है। कभी सोचा ही नहीं कि ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें अपनी ज़िंदगी में छोटी से छोटी चीज़ के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है। आयुष आपकी बहुत रिस्पेक्ट करती हूं मैं पर आज और ज़्यादा करने लगी हूं।
थोड़ी देर में वह दोनों आश्रम पहुंच जाते हैं। गाड़ी से उतर कर प्रिया एक नज़र आश्रम को देखती है तो खुश हो जाती है।
प्रिया- बहुत खूबसूरत जगह है। कितनी शांति है यहां।
आयुष- (हंसते हुए) हां, शांति तो बहुत है। पर बाहर से। अंदर तो सबने तूफान मचा रखा होगा।
तभी गेटकीपर आयुष के पास आता है। वह उम्र में बहुत बुज़ुर्ग है।
गेटकीपर- आ गये आयुष बेटा।
आयुष- ( उसके पैर छूते हुए) जी काका, कैसे हैं आप?
गेटकीपर- ( उसे आशीर्वाद देते हुए) भगवान तुम्हें दुनिया की सारी खुशियां दे। जन्मदिन मुबारक हो बेटा।
आयुष- शुक्रिया काका। आप गाड़ी से सामान निकलवा दें।
गेटकीपर- ( प्रिया को देखते हुए) यह कौन है बेटा?
आयुष- ओह! हां, यह डॉक्टर प्रिया कपूर हैं। मेरे साथ हॉस्पिटल में काम करतीं हैं।
प्रिया ने उन्हें हाथ जोड़कर नमस्ते करी।
प्रिया- (आयुष से नाराज़ होते हुए) आपने मुझे बताया क्यों नहीं कि आज आपका बर्थडे है? ये ग़लत बात है।
आयुष- असली जन्मदिन का तो पता नहीं। पर आज के दिन बाबा को मिला था तो उन्होंने आज की ही तारीख तय कर दी स्कूल में फ़ार्म भरने के लिए। और वैसे भी मेरे लिए यह जन्मदिन वगैरह कोई मायने नहीं रखते।
प्रिया- पर बताना तो चाहिए था ना? मैं कोई गिफ्ट भी नहीं लाई।
आयुष- आप एक स्माइल दे दीजिए, मुझे गिफ्ट मिल जाएगा। आपको पता नहीं है आपकी स्माइल कितनी हीलिंग है।
प्रिया- (मुस्कुराते हुए) पर ये ग़लत है।
आयुष- प्रिया, ये गिफ्ट की फोर्मेलिटी मुझे पसंद नहीं। साफ और सच्चे मन से की गई दुआ ही बहुत होतीं हैं।
आयुष प्रिया को अंदर लेकर जाता है। सब जगह सजावट हो रखी थी। तभी बहुत सारे बच्चे भागते हुए आते हैं। सब आयुष के इर्द-गिर्द इकठ्ठे हो जाते हैं और उसे जन्मदिन की मुबारकबाद देने लगते हैं। आयुष ने छोटे बच्चों को गोद में उठा लिया। बड़ों को गले से लगा लिया। प्रिया मुस्कुराते हुए यह सब देख रही थी।
तभी पीछे से आवाज़ आई। 'आयुष भाई'। आयुष ने पीछे मुड़ कर देखा तो हैरान रह गया।
आयुष- प्रेरणा....कंचन.... अनुराग तुम सब यहां।
प्रेरणा- (आयुष के गले लगते हुए) मेरे भाई को जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई।
कंचन और अनुराग ने भी आयुष को बधाई दी।
आयुष- हॉस्टल से कब लौटे तुम। एक फोन ही कर देते। मैं आ जाता मिलने।
कंचन- तो फिर सर्प्राइज़ का क्या होता? (प्रिया को देखते हुए) वैसे लगता है आप भी हमारे लिए सर्प्राइज़ लाए हैं।
आयुष- ओह! हां। सॉरी मैं मिलवाना ही भूल गया। ये डॉक्टर प्रिया कपूर हैं। मेरे साथ हॉस्पिटल में काम करतीं हैं।
अनुराग- (आयुष को छेड़ते हुए) और....
आयुष- (अनुराग के सिर पर मारते हुए) दिमाग की ज़्यादा घंटियां मत बजा। मेरी अच्छी दोस्त हैं।
' दोस्त हैं... अच्छा! ' सबने इकठ्ठे होकर आयुष की खिंचाई करी और प्रिया से हाथ मिलाया।
आयुष- ये सब छोड़ो, मेरी परी कहां है। आज उसका भी जन्मदिन है।
तभी परी भागती हुई आई और आयुष के गले लग गई।
आयुष- हैप्पी बर्थडे मेरी परी। आप तो इस ड्रेस में एकदम परी लग रही हैं।
परी- आपको भी... हैप्पी वाला बर्थडे।
आयुष परी को प्रिया से मिलवाता है।
प्रिया- (परी को गोद में उठाते हुए) हैप्पी बर्थडे परी। आपके भाई ने मुझे बताया नहीं था वरना आपके लिए बहुत अच्छा सा गिफ्ट लाती।
परी- भाई मेरा गिफ्ट कहां है?
आयुष- अरे! हां। एक मिनट। ( दो मिनट में वह एक बहुत बड़ा सा गिफ्ट उठा कर लाया) ये रहा आपका गिफ्ट। और आप सब बच्चों के गिफ्ट भी रखें हैं। सब जा कर ले लो।
परी- वाह! मेरा बड़ा सा टेडी बीयर।
तभी वहां श्रीधर कुमार, आश्रम के कर्ताधर्ता आते हैं।
आयुष जाकर उनके पैर छू उनका आशीर्वाद देता है। फिर प्रिया को उनसे मिलवाता है।
आयुष- बाबा, ये डॉक्टर प्रिया कपूर हैं। मेरे हॉस्पिटल में मेरे साथ काम करतीं हैं। बहुत अच्छी डॉक्टर हैं।
बाबा- बेटा आप आयुष की दोस्त हैं और हमारी मेहमान। अच्छा लगा आपसे मिलकर बेटा।
प्रिया- बाबा मेहमान बनकर नहीं आई हूं। आप सब से मिलने की बहुत इच्छा थी।
बाबा- आओ अंदर आओ।
सब एक बड़े से बगीचे में जाते हैं। वहां बच्चों ने पहले से ही सारी सजावट कर रखी थी। उन्होंने बहुत सुन्दर सजावट कर रखी थी। कंचन बहुत बड़ा सा केक लेकर आती है।
आयुष- बाबा काश आदिल भी यहां होता। आज उसका भी जन्मदिन है। तीन साल से उससे मिलना नहीं हुआ। मन नहीं करता उसके बिना केक कट करने का।
तभी पीछे से आवाज़ आई।
तुमने पुकारा और हम चले आए। जान हथेली पर ले आए।
आयुष- ( उस तरफ भागता हुआ) आदिल, तू कब आया।
फिर दोनों एक दूसरे से गले मिलते हैं। आदिल ने आकर बाबा के पैर छुए। और सबसे मिला।
आयुष- आदिल ये....
आदिल-( आयुष को बीच में ही काटते हुए) डॉक्टर प्रिया कपूर! एम आई राइट।
प्रिया- ( हैरान होकर) जी, बिल्कुल।
आयुष- प्रिया, ये हैं डॉक्टर आदिल खान। हम दोनों यहीं बड़े हुए और एक साथ ही डॉक्टरी करी। पर अलग कॉलेज से। आदिल को तो इंडिया के बेस्ट कॉलेज में पढ़ने का मौका मिला था। अब ये अमेरिका में प्रेक्टिस कर रहा है।
प्रिया- वाह! सर आप तो ....
आदिल- (प्रिया को बीच में रोकते हुए) बस डॉक्टर कपूर, कुछ मत बोलिए। इसकी तो आदत है मेरी तारीफ़ करने की।
प्रिया- पर डॉक्टर आदिल, आपने मुझे कैसे पहचाना?
आदिल- आयुष हर समय आपकी इतनी तारीफ़ करता है कि आप मुझे ज़ुबानी याद हो गई हैं।
आयुष- ( उसका मुंह बंद करते हुए बोला) ये पागल है! कुछ भी बोलता है।
तभी कंचन उन्हें केक काटने के लिए बुलाती है।
आयुष, आदिल और परी तीनों ने एक साथ केक काटा। परी ने सब को केक खिलाया। तभी सौम्या आई और बोली।
सौम्या- आयुष भाई, आपने पिछली बार प्रोमिस किया था कि इस बार सिर्फ हम गर्ल्स के साथ डांस करोगे। याद है ना।
आयुष- बिल्कुल याद है। कौन से गाने पर डांस करना है।
प्रिया आयुष को हैरानी से देख रही थी। तभी श्रीधर बाबा उसके पास आए।
बाबा- हैरान मत हो बेटा। आज आप जिस आयुष को देखेंगी वही है असली आयुष। एकदम मस्तमौला, बिंदास, हमेशा हंसते रहने वाला।
प्रिया- डॉक्टर कुमार ने आज बताया आपके बारे में। आपने सच में इस जगह को बहुत खूबसूरत बनाया है।
बाबा- ये सब मेरी नहीं आयुष और आदिल की मेहनत है। दोनों बचपन से ही बहुत मेहनती थे। इतनी तरक्की करने के बाद भी वह हम सब को भूले नहीं। दोनों ने मिलकर धीरे-धीरे इस आश्रम को बनवाया। और सब बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दिला रहे हैं।
तब तक सब बच्चों ने डांस के लिए सारी तैयारी कर ली थी। वह आयुष को खींच के एक छोटे से स्टेज पर ले गये।
परी- भाई का फेवरेट डांस नम्बर चलाओ। और कोई लड़का ऊपर नहीं आएगा। सिर्फ लड़कियां।
तभी एक रीमिक्स गाना बजना शुरू हो गया।
गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं,
शराबी ये दिल हो गया।
आयुष सभी बच्चियों के साथ डांस कर रहा था।
प्रिया मन ही मन हैरान थी कि आयुष को डांस भी आता है। वह उसे देखते हुए सोच ही रही थी कि तभी कंचन और प्रेरणा उसको भी डांस के लिए खींच कर ले गए। स्टेज पर पहुंचते ही आयुष ने उसका हाथ पकड़ लिया और डांस के लिए आग्रह किया। प्रिया हंसकर उसके साथ डांस करने लगी।
दिल में मेरे ख़्वाब तेरे
तस्वीर जैसे हों दीवार पे
तुझपे फ़िदा मैं क्यूँ हुआ
आता है गुस्सा मुझे प्यार पे
मैं लुट गया, मान के दिल का कहा
मैं कहीं का ना रहा,क्या कहूँ मैं दिलरुबा
बुरा ये जादू तेरी आँखों का
ये मेरा क़ातिल हो गया
गुलाबी आँखें जो तेरी देखी
शराबी ये दिल हो गया।
आयुष और प्रिया ने इससे पहले शायद ही कभी एक दूसरे की आंखों में इतनी गहराई से देखा था। दोनों के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी डांस के दौरान। शायद एक दूसरे को पहली बार इतने करीब से देखा था दोनों ने। गाना खत्म होते ही सबने उनके लिए तालियां बजाईं। आयुष तो स्टेज से उतर गया पर लड़कियों ने प्रिया को नहीं उतरने दिया। उसको अपने साथ और गानों पर भी डांस कराया।
आयुष प्रिया को नाचते हुए देख रहा था। बाबा उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हैं।
बाबा- बहुत अच्छी लड़की है आयुष। कुछ विचार है इसके बारे में।
आयुष- (थोड़ा शर्माते हुए बोला) क्या बाबा आप भी! प्रिया अच्छी दोस्त है। बस....और कुछ नहीं।
बाबा- आयुष, किसे बना रहा है? अपने बाबा को। अभी देखा मैंने तुझे। तू पसंद तो करता है उसे। है कि नहीं।
आयुष- (हंसते हुए) बाबा .... आप जानते हैं कि मुझे शादी नहीं करनी।
बाबा- बेटा, सोनल के जाने के बाद तू टूट गया है। पर वह तेरा अतीत थी। प्रिया तेरा आज है। कब तक अतीत की परछाइयां तेरे आज पर असर करेंगी। सोचना इस बारे में।
आयुष- जी बाबा। ज़रुर।
तभी पीछे से आदिल आ जाता है।
आदिल- नहीं सोचेगा तो हम सोचने का इंजेक्शन दे देंगे बाबा।
तीनों हंस पड़ते हैं।
आयुष- तू चल रहा है मेरे साथ या बाद में आएगा।
आदिल- कबाब में हड्डी बनने का शौक नहीं है मुझे। तू जा डॉक्टर कपूर को लेकर मैं आज यहीं रुकूंगा। कल आऊंगा।
आयुष- ( प्रिया के पास आकर बोला) प्रिया, चलें। पहुंचते हुए लेट हो जाएगा।
प्रिया- हां, चलिए। बॉय परी। बॉय एवरीवन।
परी- (आयुष की गोद में चढ़कर उसके कान में बोली) मुझे लड़की पसंद है। आपको भी पसंद हो तो हम सब तैयार हैं।
आयुष- (उसे प्यार कर गोद से उतारते हुए बोला) ठीक है मेरी मां, सोचूंगा। अब जाऊं।
प्रेरणा- प्रिया दीदी आप आते रहना यहां जब भी समय मिले।
प्रिया- बिल्कुल, आऊंगी।
आयुष- (बाबा के पैर छूता है) चलता हूं बाबा।
बाबा- खुश रहो बेटा। और सोचना जो मैंने कहा।
दोनों वहां से निकल जाते हैं। प्रिया काफी देर तक खामोश बैठी रहती है।
आयुष- क्या हुआ आप चुप क्यों हैं?
प्रिया- आपकी फैमिली से मिलकर आज बहुत अच्छा लगा। आप बहुत लकी हैं जो इतने सारे लोग आपको इतना प्यार करते हैं।
आयुष- थैंक्स। दे ऑल आर माई लाइफ।
प्रिया- और आप उनकी लाइफ हैं आयुष।
सारा रास्ता बातों में कट जाता है। प्रिया का घर आ जाता है।
प्रिया- आज का दिन बहुत यादगार रहेगा आयुष। आपने मुझे ना सिर्फ अपनी फैमिली से मिलाया बल्कि अपने आप से भी मिलवाया। एक बिंदास, हंसते रहने वाले डॉक्टर आयुष कुमार से मिलकर बहुत अच्छा लगा।
आयुष भी प्रिया को कुछ बोलना चाहता था पर बोल नहीं पाया। वह सिर्फ मुस्कुरा दिया और चला गया।
रात को जब आयुष सोने की कोशिश कर रहा था तो बाबा के कहे शब्द आयुष के कानों में गूंज रहे थे। "सोनल तेरा अतीत है। प्रिया तेरा आज है।"
वह अपने आप से सोचने लगा कि सच ही तो कह रहे हैं बाबा। कब तक यूं अतीत के बोझ को अपने ऊपर ढ़ोता रहूंगा। कभी तो बाहर निकलना पड़ेगा इससे। उसे भी हक़ है एक खुशहाल ज़िन्दगी जीने का। उसने ठान लिया कि अब वह प्रिया के मन की बात जानने की कोशिश करेगा। क्योंकि यह जानना ज़रूरी था कि प्रिया क्या सोचती है उसके बारे में।
क्रमशः
आस्था सिंघल