अगले दिन प्रिया थोड़ा जल्दी हॉस्पिटल पहुंच गई। इस उम्मीद में कि आयुष से अकेले में बात कर पाएगी। पर आयुष उस दिन ओ.पी.डी. शुरू होने के समय पर पहुंचा।
आयुष और प्रिया दोनों अपने काम के प्रति बहुत जिम्मेदार हैं। उन्हें अपनी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को अलग रखना बखूबी आता था। दोनों ने मिलकर ओ.पी.डी. का काम खत्म किया। सिवा मरीजों और दवाओं के उन्होंने और कोई बात नहीं की।
प्रिया की निगाहें बीच - बीच में आयुष के चेहरे के हाव-भाव को पढ़ रही थी। पर आयुष ने अपने मन में चल रहे युद्ध को बहुत खूबसूरती से छुपा रखा था।
यूं तो आयुष भी कभी - कभी एक निगाह प्रिया पर डाल रहा था। एक - आध बार उसका मन हुआ कि वह प्रिया से बात करे पर ना जाने क्यों एक अनचाहा गुस्सा उसके अंदर भर जाता और वह प्रिया को पुकार ही नहीं पाता।
ओ.पी.डी. खत्म होते ही आयुष बिना प्रिया से बात करे जल्दी से वहां से निकल गया। अमूमन दोनों साथ ही लिफ्ट से ऊपर जाते और वॉर्ड का राउंड लगाते। पर आज आयुष और प्रिया अलग अलग थे।
प्रिया जब लिफ्ट से ऊपर जा रही थी तब कुछ देर उसने बीच में लिफ्ट को रोक दिया। उसके आंसुओं पर उसका इख्तियार नहीं रहा। वह कुछ देर तक रोती रही। आज आयुष की बेरुखी उससे बर्दाश्त नहीं हुई। हालांकि वह जानती थी कि आयुष किस दौर से गुज़र रहा है पर आयुष उसकी ज़िंदगी का एक हिस्सा नहीं बल्कि उसकी ज़िंदगी था। और अपनी ज़िन्दगी को यूं तड़पते हुए वह नहीं देख पा रही थी।
उधर आयुष अपने कैबिन में पहुंचा और बिना कैबिन की लाइट जलाए अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। आंखों के आगे प्रिया का आज का उदास, परेशान चेहरा आ गया। आयुष को आज उसकी आंखों में बहुत से सवाल दिखे। जिसके जवाब देने की हिम्मत आज उसमें नहीं थी। उसे पता था कि उसने आज प्रिया को इग्नोर कर उसका दिल दुखाया है।
आयुष को अपने उपर बहुत गुस्सा आया और उसने ज़ोर से अपने हाथ को टेबल पर पटका। क्योंकि उसने अंधेरा कर रखा था उसे टेबल पर पड़ा ग्लास दिखाई नहीं दिखा और उस ग्लास के टूटने से उसके हाथ में कांच घुस गया। वह दर्द से तड़प उठा।
इससे पहले कि वह लाइट जलाता किसी ने अचानक से दरवाज़ा खोल कर रूम की लाइट जला दी। आयुष ने उसे देखा तो अपनी चोट वाले हाथ को पीछे कर लिया।
आयुष- तुम यहां? कुछ.... कुछ काम था क्या?
प्रिया आयुष के करीब आकर उसके पीछे छिपे हाथ को ज़बरदस्ती आगे लाती है।
आयुष- क्या... क्या कर रही हो?
प्रिया- (तेज़ चिल्ला कर नर्स को बुलाती है) नर्स, जल्दी से फर्स्ट एड बॉक्स लाइए।
प्रिया आयुष के दरॉज से बहुत सारी रूई निकालती है और उसके घाव को उससे ढ़क कर उसे वॉशरूम की तरफ ले जाती है।
आयुष- मैं खुद कर लूंगा। तुम रहने दो।
प्रिया- (गुस्से से आयुष की आंखों में देखते हुए कहती है) चुपचाप खड़े रहिए। बिल्कुल मत बोलिए अब।
नर्स फर्स्ट एड बॉक्स लाकर प्रिया को दे देती है।
नर्स- डॉक्टर कपूर, मैं आपकी हेल्प के लिए रुकूं?
प्रिया- नहीं, आप जाइए। मैं देख लूंगी।
प्रिया आयुष के हाथ को डेटॉल से साफ करती है।
प्रिया- (उसके हाथ को देखते हुए) कांच का एक छोटा सा टुकड़ा घुसा है। मैं निकाल कर पट्टी बांध दूंगी।
प्रिया बहुत सावधानी से उस टुकड़े को निकालती है। बीच-बीच में वह आयुष को भी देखती रहती है, कि कहीं उसे दर्द तो नहीं हो रहा। पर आयुष चुपचाप एक बुत की तरह खड़ा सिर्फ प्रिया को देखते रहता है।
प्रिया दवाई लगा के उसके हाथों की पट्टी कर देती है।
प्रिया- घाव ज़्यादा गहरा नहीं था जल्द ठीक हो जाएगा। आपको दर्द तो नहीं हुआ?
आयुष- कुछ घाव दिखने में गहरे नहीं होते पर उनको भरने में सालों लग जाते हैं। और रही बात दर्द की तो मेरा दर्द तुम्हारी आंखों से छलक रहा था।
प्रिया अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई।
प्रिया- क्या ज़रूरत थी अपने आप को दर्द देने की आयुष? क्यों कर रहे हैं आप ऐसा? मैं आपको ऐसे नहीं देख सकती।
यह कह प्रिया आयुष के गले लग जाती है। आयुष भी उसे अपनी बाहों में भर लेता है। उसकी बाहों में वह अपने आप को कितना सुरक्षित महसूस करता है। पर कुछ ही पल बाद वह प्रिया को दूर कर वहां से बाहर चला जाता है। प्रिया को समझ नहीं आता कि आयुष ने ऐसा क्यों किया?
प्रिया रेस्ट रूम में बैठ जाती है। उसके मन में तुफान उठा हुआ था। क्या सोनल के झूठ और धोखे का भार उसके और आयुष के रिश्ते के बीच आ सकता है? तभी प्रीति की आवाज़ उसके भीतर चल रहे द्वंद को विराम देती है।
प्रीति- प्रिया, आज क्या हुआ? तूने खाना भी नहीं खाया? आ चल पहले खाना खा ले।
प्रिया- प्रीति, भूख नहीं है। तू खा ले।
प्रीति- भूल गयी, डॉक्टर कुमार ने क्या कहा था? हम सब को अपने खाने-पीने का बहुत ध्यान रखना चाहिए। चल अब, खाना खा। वैसे भी डॉक्टर कुमार की बात को कैसे टाल सकती है।
प्रीति के ज़िद्द करने पर प्रिया को खाना पड़ता है। पर वह जानती थी कि आयुष ने भी खाना नहीं खाया होगा। तो उसने डॉक्टर जतिन को मैसेज किया कि वो किसी भी तरह आयुष को खाना खिला दें।
कुछ देर बाद जतिन का पलट कर जवाब आया कि आयुष छुट्टी ले घर चला गया है। प्रिया तुरंत आदिल को फोन करती है।
आदिल- प्रिया, आयुष को चोट कैसे लगी?
प्रिया ने आदिल को सब बताया।
प्रिया- आयुष ने कुछ नहीं खाया आज डॉक्टर आदिल।
आदिल- फिक्र मत करो। रुबीना है ना वो सब संभाल लेगी।
ये कह आदिल फोन रख देता है। और आयुष के कमरे में दवाई लेकर जाता है। आयुष खाना खा कर आंखें बंद कर अपनी कुर्सी पर बैठा था।
आदिल- आयुष, दवाई ले।
आयुष- इसकी ज़रूरत नहीं है आदिल।
आदिल- हां, तुझे तो किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। फिलहाल दवाई खा। समझा। (आदिल ने डांटते हुए कहा)
आयुष ने बहस नहीं की और चुपचाप दवा खा ली।
आदिल- क्यों दे रहा है अपने आप को सज़ा। जो हो गया उसे भूल जा। तेरे सामने तेरी पूरी ज़िंदगी पड़ी है। प्रिया जैसी हमसफ़र है तेरे साथ। और क्या चाहिए? अपने अतीत से बाहर निकल कर तूने प्रिया का हाथ थामा था। अब वापस उस अतीत में क्यों जाना है मेरे भाई? वो हरिवंशराय बच्चन जी की कविता तो पढ़ी होगी "जो बीत गई सो बात गई" , आज तेरे हालात पर वह पूरी कविता सटीक बैठती है। भाई, कब तक शोक मनाएगा।
आयुष- तुझे क्या लगता है आदिल, मैं कोशिश नहीं कर रहा क्या? पर नहीं भूल पा रहा उसके धोखे को।
आदिल- सोनल ने जो किया उसकी सज़ा प्रिया को क्यों दे रहा है?
आयुष- प्रिया को तो कुछ भी नहीं कहा मैंने?
आदिल- यही तो बात है। प्रिया से कुछ बात ही नहीं कर रहा तू। और इस वजह से वो परेशान हो रही है। और उसे परेशान देख कर तू और परेशान हो रहा है। इसलिए अपने आप को उसे परेशान करने की सज़ा दे रहा है। (आदिल उसके चोट लगे हाथ की तरफ इशारा करते हुए कहता है)
आयुष- आदिल, कुछ और बात कर यार। घुटन हो रही है मुझे।
आदिल- (आयुष का हाथ पकड़ उसे उठाते हुए) चल बाहर चलते हैं।
दोनों उठ घर से बाहर निकल गये।
तीन दिन बीत चुके थे। आयुष और प्रिया के बीच कोई बातचीत नहीं हुई सिवाए मरीजों की केस स्टडी के अलावा।
अमूमन, प्रिया की रात की ड्यूटी के वक्त अक्सर आयुष देर रात तक रुक जाता था। दोनों को कुछ वक्त मिलता था साथ में गुज़ारने के लिए। पर इस बार आयुष नहीं रुका। उसने अपनी जगह जतिन को रुकने के लिए बोल दिया। प्रिया से आयुष की ये बेरुखी बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
प्रिया अपने कमरे में चुपचाप बैठी कुछ सोच रही थी। वह इतनी गहरी सोच में थी कि कमला ताई की आवाज़ भी उसे सुनाई नहीं पड़ी।
कमला ताई- (कमरे से बाहर आकर बोलीं) हम कह रहे हैं हमारी लड़की ऐसे ही रही तो बिमार पड़ जाएगी।
मिस्टर कपूर- क्या हो गया? क्यों इतना बड़बड़ा रही हो।
कमला ताई - हम अंदर गए तो देखा आंखें बंद कर चुपचाप पड़ी हुई है। आवाज़ दी तो सुना ही नहीं। कमरे में हल्की सी रौशनी कर रखी है बस। इतना खामोश हमने अपनी बच्ची को कभी नहीं देखा।
मिस्टर कपूर उठ कर प्रिया के कमरे में जाते हैं। वहां जाकर कमरे में उजाला कर उसके पास बैठ जाते हैं। प्रिया की मां भी कमरे में आ जाती हैं।
मिस्टर कपूर- प्रिया, बेटा तू ठीक है ना?
प्रिया- जी पापा, ठीक हूं।
मिस्टर कपूर- नहीं, ठीक लग तो नहीं रही। इस कमरे में इतनी शांति तो कभी भी नहीं देखी।
जया- बच्चे, तू कहे तो हम आयुष से बात करें क्या?
मिस्टर कपूर- हम अभी तक चुप थे क्योंकि तुम दोनों मेच्योर हो, अपने मसलों को खुद हल करने की पूरी क्षमता है तुम दोनों में। लेकिन अगर बात सुलझ नहीं रही है तो हमें बताओ। हम दोनों बात करते हैं।
प्रिया- पापा, आयुष अभी एक बुरे दौर से गुज़र रहे हैं। मैं जानती हूं कि जिस दिन उनको यह एहसास हो जाएगा कि जिस बात से उन्हें इतनी तकलीफ़ पहुंची है वो बात, वो इंसान तो उनकी ज़िन्दगी से बहुत पहले ही जा चुका है, तब वह संभल जाएंगे। थोड़ा वक्त लगेगा।
जया- काश यह एहसास उन्हें जल्दी हो जाए।
दोनों अपनी प्यारी लाड़ली को गले से लगा लेते हैं।
आयुष अपने घर पर अकेले बैठा था। आदिल और रुबीना किसी काम से बाहर गए थे। तभी मुरली काका उसके कमरे में आते हैं।
मुरली काका - बेटा, कोई मिलने आया है तुमसे।
आयुष- कौन है काका?
मुरली काका - ये तो बताया नहीं।
आयुष- अच्छा आप उन्हें बाहर बैठाओ मैं आता हूं।
मुरली काका - ठीक है। बेटा मुझे बाज़ार जाना था। तो मैं चला जाऊं।
आयुष - (उठ कर बाहर निकलते हुए बोला) ठीक है। आप जाएं।
आयुष बाहर आकर देखता है तो हैरान रह जाता है। उसके सामने सोनल खड़ी थी।
आयुष - तुमसे कहा था ना कि मुझे तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखनी। फिर क्यों आई हो यहां पर?
सोनल- आयुष, तुम्हारा ज़्यादा वक़्त नहीं लूंगी। प्लीज़ मेरी बात सुन लो।
आयुष- (उसे इशारे से सोफे पर बैठने को कहता है) सोनल, जो कहना है जल्दी कहो।
सोनल उसे सारी बात बताती है। उसको समझाने की कोशिश करती है कि वह सिर्फ इतना चाहती थी कि आयुष अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ जाए।
आयुष- तो तुम अपने झूठ और धोखे को जस्टीफाए करने की कोशिश कर रही हो।
सोनल - नहीं आयुष, मैं सिर्फ इतना चाहती थी कि तुम्हारा प्यार पर से एतबार ना उठे।
आयुष- तुम्हारे इस झूठ ने बहुत तकलीफ़ पहुंचाई है मुझे। इससे तो अच्छा होता कि तुम मुझे सच बोल देतीं। कम से कम तुम्हें भूलने की कोशिश कर आगे बढ़ता। तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें भूल कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाऊंगा। ज़रुर बढ़ जाता सोनल अगर मुझे सच्चाई पता होती तो।
सोनल- पर सच्चाई जानकर तुम मुझसे और प्यार के नाम से नफ़रत करने लगते आयुष।
आयुष - सोनल, असल में तुमने मुझे कभी समझा ही नहीं। तुमनेअगर मुझे उस वक्त सच बता दिया होता तो यकीन मानो मेरे दिल में तुम्हारे लिए कभी नफ़रत नहीं भरती। पर आज यह जानकार कि तुमने मुझसे झूठ बोला, मुझे इतने साल धोखे में रखा, तुम्हारे लिए मेरे दिल में सिर्फ नफ़रत है।
तुम चाहती थीं कि मैं लाइफ में आगे बढ़ जाऊं।
दरअसल तुम्हारे इस झूठ ने मुझे कभी आगे बढ़ने ही नहीं दिया। बल्कि एक गिल्ट में डाल दिया। उस गिल्ट का अंजाम यह हुआ कि जब प्रिया का एक्सीडेंट हुआ और उसे मैंने खून में लथपथ देखा तो मेरी रूह कांप उठी। मुझे प्रिया में तुम्हारा चेहरा नज़र आने लगा। डर गया अपने अंदर के गिल्ट से कि तुम्हें तो बचा नहीं पाया पर अगर प्रिया को भी नहीं बचा पाया तो? पहली बार ऑपरेशन के वक़्त हाथ कांप रहे थे मेरे। इसलिए नहीं कि मेरे सामने वो लड़की थी जिससे मैं प्यार करता हूं बल्कि इसलिए कांप रहे थे कि मेरा गिल्ट मेरे दिमाग पर हावी हो गया था। किसे बताता ये बात?
सोनल - आयुष, मैं जानती हूं मुझसे गलती हुई है। मेरी सोच सही नहीं थी शायद। पर अब उन बातों का कोई मतलब नहीं है। मैं अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ गई हूं। और तुम भी तो प्रिया के साथ आगे बढ़ गये थे ना। पर ये जानने के बाद कि प्रिया मेरी बहन है तुम उसके साथ अन्याय कर रहे हो। उससे बात नहीं कर रहे, उसे इग्नोर कर रहे हो। इस सब में उसकी क्या गलती है आयुष?
आयुष - तो तुम्हें लगता है कि मैं प्रिया को इस वजह से इग्नोर कर रहा हूं क्योंकि तुम उसकी बहन हो?
सोनल - और क्या? यही तो वजह है।
आयुष- (सोनल की सोच पर हंसते हुए) अब तुम मुझसे क्या चाहती हो?
सोनल- प्रिया और तुम्हारे बीच जो प्रोब्लम मेरी वजह से आईं हैं उसे दूर कर लो। आयुष, प्लीज़ मुझे माफ कर दो। जो किया वो तुम्हें चोट पहुंचाने के इरादे से बिल्कुल नहीं किया था। पर तुम्हारे दिल को उससे ठेस पहुंची है उसके लिए सॉरी। मैं अपनी ज़िन्दगी में रजत के साथ बहुत खुश हूं। तुम भी मूव ऑन कर लो। बस यही कहने आई थी।
और हां एक और बात कहना चाहूंगी। मैं और प्रिया बहनें हैं तो त्योहार या शादियों में मिलना होता ही है। तो प्लीज़ कभी भी भूल से भी हमारा....
आयुष- (सोनल की बात को बीच में काटते हुए) इतनी समझ तो मुझ में है सोनल। मेरी वजह से तुम्हें कभी कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी।
सोनल - अपना ख्याल रखना आयुष।
यह कह सोनल वहां से चली गई। आयुष बहुत देर तक वहीं बैठा रहा। उसकी मन: स्थिति को इस वक़्त कोई नहीं समझ सकता था। एक अजीब सा गुस्सा था उसके मन में।सोनल के लिए नहीं, अपने लिए।
अब वक़्त आ गया था कि वह प्रिया से बात करे। उसे सब कुछ बताना ज़रूरी था। वह प्रिया को और दुख नहीं पहुंचाना चाहता था। इसलिए उसने फैसला किया कि वह कल प्रिया से बात कर उसे सब सच बता देगा।
क्रमशः
आस्था सिंघल