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चले ना ज़ोर इश्क पे!! भाग 4

12 मई 2022

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अगली सुबह प्रिया समय से पहले हॉस्पिटल पहुंच गई। आज साक्षी उसके साथ नहीं आ पाई। वहां पहुंचकर देखा तो वहां अफरातफरी मची हुई थी। एक महिला रिसेप्शन पर रो रही थी कि उसके बेटे को एडमिट कर लिया जाए।
प्रिया के वहां पहुंचते ही वह उसके पैरों में गिर गई।

" डॉक्टर, मेरे बेटे को देखो। कितना खून बह रहा है। ये लोग एडमिट नहीं कर रहे।"
प्रिया ने उसे उठाया और रिसेप्शन पर पूछा।
रिसेप्शनिस्ट- डॉक्टर कपूर , पुलिस केस है। लड़के पर चाकू से हमला हुआ है। बिना पुलिस के आए हम एडमिट नहीं कर सकते।

प्रिया - (घबरा कर) और जब तक पुलिस आएगी वो लड़का मर जाएगा। आप उसे एडमिट कीजिए। और डॉक्टर कुमार को फोन लगाइए।

रिसेप्शनिस्ट- पर... डॉक्टर कपूर ...आप सोच लीजिए। आप सिर्फ एक इंटर्न हैं। 

प्रिया- तो.... मेरे कहने पर आप एडमिट करेंगी कि नहीं?

रिसेप्शनिस्ट- जी करूंगी।

प्रिया- गुड़.... फिर कीजिए।

प्रिया ने जल्दी से नर्स को बुलाया और उस लड़के को एडमिट कर उसको ऑक्सीजन चढ़ाया और पेट के उस हिस्से को जहां से खून बह रहा था, थोड़ा ऊंचा उठा दिया जिससे खून बहना कम हो जाए। नर्स को जल्द उसका ब्ल्ड ग्रुप चेक करने को कहा। फिर वह बाहर आई तो डॉक्टर शायना को खड़ा पाया। इससे पहले वह शायना को मरीज़ की हालत बताती, शायना उसपर चिल्लाने लगी।

शायना- आपकी हिम्मत कैसे हुई डॉक्टर कपूर बिना सीनियर डॉक्टर के किसी मरीज़ को एडमिट करने की।
आपको पता है यह पुलिस केस है। प्रोटोकॉल जानतीं हैं आप? और उसका इलाज भी शुरू कर दिया।

प्रिया- डॉक्टर शायना, मुझे प्रोटोकॉल नहीं पता। मुझे सिर्फ इतना पता है कि उस बच्चे को अगर समय पर ट्रीटमेंट नहीं मिला तो वह मर जाएगा। 

तभी डॉक्टर आयुष भागते हुए वहां पहुंचता है। 

आयुष- (रिसेप्शनिस्ट से) कहां है मरीज़। आपने ट्रीटमेंट शुरू करवाया।

रिसेप्शनिस्ट- सर, डॉक्टर कपूर ने ट्रीटमेंट शुरू कर दिया। पर सर पुलिस केस है।

शायना- कुमार, डॉक्टर कपूर ने अपने आप उसे एडमिट कर उसको ऑक्सीजन भी चढ़ा दिया और....

आयुष- ( शायना को बीच में टोकते हुए)- बहुत अच्छा किया। ( प्रिया की तरफ मुड़ते हुए) गुड़, कहां है मरीज़। 

आयुष यह कह उसके साथ चलने लगा तो शायना ने उसे रोकते हुए कहा,
शायना- कुमार, पुलिस केस है! समझो ।

आयुष- शायना, तुम अच्छे से जानती हो कि मेरे लिए मरीज़ की जान पुलिस केस, प्रोटोकॉल वगेरह से ज़्यादा ज़रूरी है।

आयुष प्रिया के साथ ओ.टी. की तरफ चल पड़ा।
वहां पहुंचकर उसने प्रिया का किया हुआ इंतज़ाम देखा।

आयुष- बहुत बढ़िया डॉक्टर कपूर। ( वह कोट और दस्ताने पहनते हुए बोला)
तभी नर्स ब्ल्ड बैंक से खून की दो बोतल ले आई। 

आयुष- नर्स पहले ब्ल्ड ग्रुप तो चेक कर लें आप।

प्रिया- सर, मैंने करा लिया। ये रही रिपोर्ट।

आयुष- ( प्रिया की तरफ मुस्कुराते हुए देख बोला) 
मैं बहुत ईम्प्रेस हुआ आपसे डॉक्टर कपूर। गुड़ जॉब। अगर आपको सही लगे तो क्या आप मुझे ऑपरेशन में असिस्ट करेंगी? डॉक्टर जतिन हैं नहीं और शायना को प्रोटोकॉल ज़्यादा प्यारा है। तो अगर आप...

प्रिया- सर, आपको असिस्ट करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी। ज़रूर करूंगी।

लगभग एक घंटे तक ऑपरेशन चला। प्रिया ने आयुष की पूरी मदद की। वह अंदर से घबरा रही थी क्योंकि खून देखकर उसे घबराहट होती है। पर उसने अपने चेहरे पर एक शिकन तक नहीं आने दी। ऑपरेशन खत्म होने के बाद आयुष और प्रिया वॉशरूम में अपने हाथों को धो रहे थे। 

प्रिया- सर, वो बच जाएगा ना?

आयुष- कह नहीं सकते, घाव बहुत गहरा था। मैंने पूरी कोशिश करी है। बाकी सब भगवान के हाथ में।
 
प्रिया को थोड़ा गंभीर देख आयुष ने माहौल को सही करने की कोशिश करी।

आयुष- डॉक्टर कपूर, आप खून देखकर बहुत घबरा जाती हैं। एक डॉक्टर को अपनी ज़िंदगी में ना जाने कितनी बार इस तरह के मंज़र से गुजरना पड़ता है। इसलिए अपनी घबराहट को दूर करिए क्योंकि आप एक अच्छी सर्जन बन सकतीं हैं।

प्रिया- माफ़ कीजियेगा सर, मैंने कौशिश बहुत की पर पता नहीं आपको कैसे पता चल गया? 

आयुष- क्योंकि मेरा खुद ये हाल होता था। पर मानना पड़ेगा कि आपने अपनी घबराहट को बहुत खूबसूरती से छुपा रखा था। 

प्रिया ने थोड़ा सा शर्माते हुए आयुष की तरफ देखा। आयुष के चेहरे पर हंसी थी। वो कुछ पल प्रिया को देखता रहा फिर मुस्कुराते हुए बोला।
आयुष- आज आपने यह साबित कर दिया कि आपको गज़ब की प्रेक्टिकल नॉलिज है। मरीज़ के खून को रोकने के लिए आपने उसके शरीर के उस हिस्से को उठा दिया इसलिए खून कम बहा।


प्रिया- थैंक्स, सॉरी सर, मैंने प्रोटोकॉल तोड़ा। पर मेरे पास उस वक्त कोई और चारा नहीं था। आप, डॉक्टर शायना, डॉक्टर जतिन कोई नहीं था। मैं इलाज शुरू नहीं करती तो वो बच्चा मर जाता।

आयुष- आपने बिल्कुल ठीक किया डॉक्टर कपूर। मैं आपकी जगह होता तो यही करता। आप घबराइए मत हायर अथोरिटी यानी मिस्टर चौधरी को मैं संभाल लूंगा।

प्रिया- सर, मैं डरती नहीं। मैंने वहीं किया जो मेरा प्रोफेशन मुझसे करने को कहता है। सब की जान बचाना। फिर वो चाहे अपराधी ही क्यों ना हो।

आयुष कुछ पल प्रिया को देखता रहा। प्रिया की सोच उससे कितनी मिलती है इस मामले में।

आयुष- मैंने कल भी कहा था आज फिर कह रहा हूं। आप जैसी हैं हमेशा वैसे ही रहिएगा। चिंता मत कीजिए बाहर मैं संभाल लूंगा।

आयुष और प्रिया ऑपरेशन थियेटर से बाहर आए। बाहर पुलिस, शायना और मिस्टर चौधरी जो कीहॉस्पिटल के अधिकारी हैं, वहां खड़े थे। आयुष को देखते ही वह गुस्से से लाल - पीले हो गये।

मिस्टर चौधरी- कुमार, फिर प्रोटोकॉल तोड़ा तुमने।

शायना- नहीं सर, कुमार ने नहीं , यह कल की आई इंटर्न डॉक्टर कपूर ने तोड़ा है। और तो और ओ.टी. में ले जाकर इलाज भी शुरू कर दिया।

आयुष- सर, डॉक्टर कपूर की कोई गलती नहीं है। मैं होता तो यही करता। आप जानते हैं।

इंस्पेक्टर- डॉक्टर कुमार, यह एक पुलिस केस है।

आयुष- जानता हूं इंस्पेक्टर। पर वह लड़का ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहा था। ऐसे में मैं उसे मरने के लिए नहीं छोड़ सकता था। अब इसे आप जुर्म मानते हैं तो आप मुझ पर जो कार्यवाही करना चाहते हैं कीजिए।

आयुष की बात सुनकर इंस्पेक्टर चुप हो जाता है। 

मिस्टर चौधरी- कुमार, डॉक्टर कपूर को अभी तीन दिन नहीं हुए और उन्होंने तुम्हें ऑपरेशन में असिस्ट किया? वो रूल्स नहीं जानतीं पर तुम तो जानते हो?

आयुष- सर, उस समय सिर्फ डॉक्टर कपूर ही मुझे असिस्ट कर सकतीं थीं। 

मिस्टर चौधरी- कुमार मेरे कैबिन में आओ। डॉक्टर कपूर आप भी।
आयुष- सर, डॉक्टर कपूर सिर्फ मेरे ऑडर फोलो कर रहीं थीं। मेरे ख्याल से इनको आने की ज़रूरत नहीं है।

प्रिया कुछ बोलती इससे पहले आयुष ने उसे चुप रहने का इशारा किया और वहां से चला गया। 

शायना- आज तुम्हारी वजह से अगर कुमार की नौकरी पर बात आई तो तुम बहुत पछताओगी। 

यह कह कर शायना चली गई। प्रिया वहां खड़ी रही। उसकी आंखों में आंसू छलक रहे थे। तभी जतिन वहां आया और उसे समझाते हुए अंदर ले गया। 

मिस्टर चौधरी के रूम में आयुष और मिस्टर चौधरी बात कर रहे थे।

मिस्टर चौधरी- ये सब क्या है कुमार? तुम जानते हो पुलिस केस में हमें कुछ नियम मानने पड़ते हैं। उस इंस्पेक्टर को मैंने कैसे समझाया है मैं ही जानता हूं।

आयुष- सर, आप जानते हैं मेरे लिए क्या ज़रूरी है। मरीज़ की जान के आगे मैं कुछ और नहीं देख सकता। मेरा प्रोफेशन मुझे इसकी इजाज़त नहीं देता। 

मिस्टर चौधरी- और ये जो नयी इंटर्न को लेकर तुम ऑपरेशन थियेटर में चले गए! उसके बारे में क्या कहोगे? शायना को ले जाते। 

आयुष- शायना? सच में सर, ये आप कह रहे हैं? आपको पता है कि वो ऐसे केस में कभी आगे नहीं आती। और रही बात डॉक्टर कपूर की, तो सर, वह बहुत काबिल डॉक्टर हैं। बहुत बढ़िया प्रेक्टिकल ज्ञान है उनका। हम उस बच्चे को उनकी सूझबूझ के कारण ही बचा पाए। 

मिस्टर चौधरी- पर वह अभी तैयार नहीं हैं आयुष?

आयुष- ( मुस्कुराते हुए) सर, आपको मुझ पर भरोसा है या नहीं? मैंने उन्हें अपने साथ असिस्ट करने के लिए कुछ सोच कर ही कहा था। और उन्होंने मेरे फैसले को ग़लत साबित नहीं होने दिया। और अगर आप मेरी इन दोनों गलतियों की सज़ा देना चाहते हैं तो मैं तैयार हूं।

मिस्टर चौधरी- कुमार, कैसी बातें कर रहे हो। बिल्कुल भरोसा है। और मैंने हायर अथोरिटी से बात कर ली है। कम से कम चिल्ड्रन वॉर्ड में एक्सीडेंट केस बिना पुलिस रिपोर्ट के भर्ती हो पाएंगे। वरना तुम यूं ही प्रोटोकॉल तोड़ते रहोगे और मेरी बैंड बजाते रहोगे।
इस बात पर दोनों हंस पड़ते हैं।

आयुष वापस अपने कैबिन में आता है तो शायना को वहां बैठे देखता है। वह उसके पास सोफे पर आकर बैठ जाता है।

आयुष- क्या हुआ? नाराज़ लग रही हो।

शायना- तुमको मेरी नाराज़गी से क्या फ़र्क पड़ता है। 

आयुष- अरे! क्यों फर्क नहीं पड़ता? बिल्कुल पड़ता है। 

शायना- तुमने डॉक्टर कपूर का इल्ज़ाम अपने सिर क्यों लिया? 

आयुष- ( हैरान हो कर बोला) इल्ज़ाम? तुम जानती हो शायना कि उनकी जगह मैं होता तो मैं भी यही करता। 

शायना- और तुमने ऑपरेशन थियेटर में असिस्ट करने के लिए मुझे नहीं उसे चुना? मैं बहुत अपसेट हूं इस बात से कुमार।

आयुष- शायना... तुम तो पहले ही उस मरीज़ को एडमिट करने के खिलाफ थीं। फिर मैं तुम्हें कैसे असिस्ट करने के लिए बोल सकता था। और वैसे भी बेमन से ओ. टी. में जाने का कोई फायदा नहीं था। 

शायना- पर वो अभी एकदम रॉ है कुमार। 

आयुष- नहीं शायना। डॉक्टर कपूर का प्रेक्टिकल ज्ञान बहुत अच्छा है। शी इज़ गुड, वेरी गुड।

शायना कुछ पल के लिए आयुष को देखती रही और फिर कटाक्ष करते हुए बोली।

शायना- और खूबसूरत भी।

आयुष- ( हंसते हुए शायना को देखता है) वो तो तुम भी हो।

शायना- ( आयुष के करीब जाते हुए) आज तो भगवान से कुछ और भी मांगा होता तो मिल जाता। ऐसे नेक ख्याल पहले तो नहीं थे जनाब के।

आयुष- ( थोड़ा पीछे हटते हुए) आ गई तुम्हारी गाड़ी उसी प्लेटफार्म पर। ( आयुष खड़े हो जाता है) मैं जा रहा हूं राउंड पर। तुम यहां बैठ कर भगवान से दुआ मांगो। 

शायना- ( आयुष का हाथ पकड़ते हुए बोली) थोड़ा आराम करा करो कुमार। अभी तो आए हो। 

आयुष- ( मुस्कुराते हुए शायना का हाथ हटाता है) एक डॉक्टर कभी आराम नहीं करता शायना। 
आयुष वहां से चला जाता है। शायना वहीं आराम से बैठकर किताब पढ़ने लगती है।
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रचनाएँ
चले ना ज़ोर इश्क पे (एक छोटी सी प्रेम-कहानी)
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प्यार - हमारे जीवन का अस्तित्व है। यह एक एहसास है जो दिमाग से नहीं दिल से होता है। सच्चा प्यार वहीं होता है जो अच्छे - बुरे सभी हालातों में हमारा साथ दे। प्यार इंसान को बदल देता है। उसके अंदर एक निर्मल और स्वच्छ भाव पैदा करता है। दुनिया में लोगों ने कितनी नफरतों को प्यार से जीत लिया। तो नफरत प्यार के आगे हमेशा हार जाती है? शायद! पर क्या हमारे दिल में किसी के लिए इतनी नफ़रत हो सकती है कि किसी का प्यार हमें दिखाई ही ना दे? क्या नफ़रत में इतनी ताकत है कि वह सच्चे प्यार को हरा सके। ऐसी ही एक कहानी है आयुष और प्रिया की। आयुष के दिल में बसी नफ़रत को प्रिया के निश्छल प्रेम ने हराया ज़रूर पर क्या ख़त्म कर पाई? ऐसा क्या हुआ कि आयुष की नफ़रत प्रिया के मासूम प्यार पर भारी पड़ गई।
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प्रिया और साक्षी की कार तेज़ी से हॉस्पिटल की तरफ जा रही थीं कि अचानक उनकी गाड़ी का टायर पंचर हो गया।प्रिया- ( हड़बड़ाते हुए बोली) क्या हुआ ड्राइवर? ड्राइवर- प्रिया दीदी, टायर पंचर हो गया है।प्रिय

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चले ना ज़ोर इश्क पे!! भाग 3

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हॉस्पिटल में काम का पहला दिन सब के लिए बहुत अहम था। आज सब अपना बैस्ट देना चाहते थे। जतिन- आप सब लोग जनरल वार्ड नंबर एक में पहुंचिए। डॉक्टर कुमार आपको वहीं मिलेंगे।सब लोग वहां पहुंच गए। वार्ड एकदम

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इंटर्नस की आज की ड्यूटी खत्म होने वाली थी। सभी रूम में बैठकर बातें कर रहे होते हैं। तभी नर्स वहां आती है। नर्स- डॉक्टर गौरव, आज रात आपकी ड्यूटी थी ना?गौरव- हां मुझे पता है।नर्स- आप आज जा सकते हैं

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चले ना ज़ोर इश्क पे!!भाग 6

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चले ना ज़ोर इश्क पे!! भाग 7

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चले ना ज़ोर इश्क पे!! भाग 20 (आखिरी भाग)

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कभी - कभी हम अपनी नफ़रत के चलते कुछ ऐसे फैसले कर लेते हैं जिसके लिए हमें ज़िन्दगी भर पछताना पड़ता है। आयुष भी एक ऐसा ही फैसला लेता है। आदिल उसे बहुत समझाता है पर वह कुछ सुनने और समझने को तैयार ही

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