मुकंदीलाल जी ने हमारे सामने आज का
समाचार पत्र फैंकते हुए पुछा, ‘यह गुरमेहर कौन है?
हम ने समाचार पत्र के ऊपर एक फिसलती हुई नज़र डाली. मोटे-मोटे अक्षरों में छपा था, ‘गुरमेहर का कमाल, दिल्ली में बवाल.’
हम ने सर खुजलाते हुए कहा, ‘भई, बात ऐसी है कि मैं समाचार पत्र लेता अवश्य हूँ, और एक नहीं तीन-तीन. पर पढ़ता एक भी नहीं हूँ. कोई भी समाचार पत्र अच्छे से छानबीन करके समाचार छापता नहीं, और अगर कोई छानबीन करता भी है तो छानबीन करने से पहले ही तय कर लेता है कि छानबीन का निष्कर्ष क्या होगा.’
‘क्या आप टीवी भी नहीं देखते? हर न्यूज़ चैनल पर इस लड़की की चर्चा हो रही है.’
‘अब मेरी बात सुन आपको हंसी आयेगी पर सत्य तो यही है कि मैं टीवी न्यूज़ चैनलों को
मनोरंजन का साधन ही मानता हूँ.’
‘अच्छा यह बताइये कि टू-मिनट फेम क्या होती है?’ सदा की भांति मुकंदीलाल जी ने एक नया प्रश्न दाग दिया.
‘अरे मुकंदीलाल जी आप भी किस उलझन में फंस रहे हैं. यह टू-मिनट फेम टीवी वालों का आविष्कार है. टीवी किसी को भी चंद मिनटों के लिए हीरो बना देता है. चंद मिनट बीत जाने पर न कोई उस हीरो को पूछता है न ही उस मुद्दे को जिस के कारण उस व्यक्ति को हीरो बनाया जाता है.’
‘भाई साहब, मन तो हमारा भी करता है कि हमारा भी नाम हो, चाहे चंद मिनटों के लिए हो. ईमानदारी के साथ तीस-पैंतीस साल कलम घिसते रहे. दफ्तर से एक पेंसिल भी उठा कर कभी घर नहीं लाये. पर हुआ क्या? दो प्रमोशन भी नहीं मिले. जिस आदमी ने लाखों रुपयों का घपला किया था उसे चार प्रमोशन मिले, उसका नाम तो पदमश्री के लिए भी भेजा गया था.’
‘इसमें आश्चर्य की क्या बात है?’
‘भई, आप कोई सुझाव दें, हम भी चंद मिनटों के हीरो बनना चाहते हैं’
‘विलेन भी बन सकते हैं.’
‘आप कोई तरीका सुझायें, बस.’
‘किसी नेता पर जूता फैंक दें,’
‘नहीं, ऐसा नहीं कर सकते. ऐसे संस्कार माता-पिता से नहीं मिले.’
‘किसी नेता के कुत्ते को काट खाएं.’
‘इतना साहस नहीं है.’
‘कोई अवार्ड वापस कर दें.’
‘अवार्ड कभी मिला ही नहीं तो वापस क्या करें.’
‘चारों ओर फैलती असहिष्णुता को लेकर को ब्यान दें’
‘पर हमारी समझ में आम आदमी आज भी उतना ही सहिष्णु है जितना कल था. असहिष्णुता तो राजनेताओं में बढ़ीं है देश में नहीं.’
‘कश्मीर की समस्या पर कोई ब्यान दें.’
‘हमें कश्मीर समस्या का कोई
ज्ञान नहीं.’
‘जो लोग ब्यान देते हैं उन्हें कौन सा ज्ञान होता है. चलिये इस गुरमेहर के पक्ष में ही ब्यान दे दें.’
‘पर यह गुरमेहर कौन है? यही तो आपसे पूछने आये थे.’
हमने अपने हाथ खड़े कर दिए. हम सच में नहीं जानते कि यह गुरमेहर कौन है.