हमारे नगर में दो समितियां हैं, एक समिति ने मानवों की कुत्तों से रक्षा
का बीड़ा उठा रखा है तो दूसरी ने कुत्तों की मानवों से रक्षा का.
सुखीलाल उन व्यक्तियों में से हैं जो समाज की हर समस्या पर अपनी समझ का प्रभाव डालना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते
हैं. पिता-पुत्र में अनबन हो या म्युनिसिपेलिटी के चुनाव, सफ़ाई कर्मचारियों की हड़ताल
हो या दहेज़ का अभिशाप, हर समस्या का समाधान ले कर वह उपस्थित हो जाते हैं.
इन्हीं सुखीलाला की चौदह वर्ष की बालिका स्कूल से लौट रही थी कि एक
कुत्ता आ धमका, और बालिका पर झपटा. बालिका इतना घबरा गई कि एक दिल दहला देने वाली
चीख उसके मुख से निकल गई. गली में रहने वाले सभी लोग सन्न रह गये. कई खिड़कियाँ और दरवाज़े
एक साथ खुल गये. कई चेहरे बाहर आये. सबने देखा कि सुखीलाल की कन्या बदहवास भागी जा
रही थी और एक कुत्ता उसके पीछे भाग रहा था. दृश्य दिल दहला देने वाला था.
तभी सुखीलाल आ पहुंचे. बालिका उनसे आ टकराई. एक घबराई, सहमी सी हिरणी
सामान वह अपने पिता के अंक में समा गई. उसकी सांस धौंकनी के सामान चल रही थी. भय
और क्रोध में डूबे सुखी लाला ने उसी क्षण प्रण ले लिया कि नगर को कुत्तों से
छुटकारा दिला कर ही दम लेंगे.
जिस दिन सुखीलाल ने मानवों की कुत्तों से रक्षा करने का प्रण लिया उसी
दिन कुत्तों पर हो रहे अत्याचार ने चुन्नीलाल के हृदय में एक तूफ़ान पैदा कर दिया
था.
कुछ आवारा बच्चों द्वारा पिटा एक पिल्ला चुन्नीलाल के सामने से गुज़र
गया और उनके समक्ष कई प्रश्न खड़े कर गया. ‘क्या गलियों में रहने वाले कुत्ते इस
समाज में एक उपेक्षित जीवन जीते रहेंगे? क्या कोठियों में पलते कुत्ते ही सुख के
अधिकारी हैं? क्या गली के कुत्तों के साथ सदा अन्याय और अत्याचार ही होता रहेगा?’
उसी दिन, म्युनिसिपेलिटी का एक चुनाव जीते पर पिछले दो चुनाव हारे,
चुन्नीलाल ने आवारा कुत्तों की मानवों से रक्षा का बीड़ा उठा लिया और एक समिति का
गठन कर दिया.
सुखीलाल की दौड़ धूप के फलस्वरूप म्युनिसिपेलिटी वाले कुछ कुत्तों को
पकड़ कर ले गये. नगर के इतिहास में ऐसा कभी न हुआ था. अब तक आम आदमी, गाय, भैंस,
गधे, कुत्ते इत्यादि सब बड़े मेलजोल और प्यार के साथ यहाँ रहते आये थे.
सीना तान, सुखीलाल एक गली से दूसरी गली घूम रहे थे. उनकी तीसरे नंबर
की बालिका भी खुशी से फूली न समा रही थी.
उधर कुछ आवारा कुत्तों को आवारा बच्चों के अत्याचार से बचाने के
अतिरिक्त कोई भी सफलता चुन्नीलाल की समिति अर्जित न कर पायी थी. इन पीड़ित कुत्तों
के भविष्य को लेकर कुछ गोष्ठियां भी आयोजित की गयीं थीं. पर अभी तक कोई ऐसी
महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली थी जो की अखबारों की सूर्खी बन पाती या जिसे लेकर टी वी चैनलों पर गर्मागर्म बहस हो पाती. लेकिन
सुखीलाल की दौड़-धूप ने उन्हें एक अवसर दे दिया था.
म्युनिसिपेलिटी ने कुछ कुत्तों को पकड़ लिया था. चुन्नीलाल को पूरा
विश्वास था कि इन कुत्तों को अमानवीय ढंग से खत्म करने की पूरी योजना बनायी जा
चुकी थी. उन्होंने तुरंत एक आंदोलन छेड़ दिया. उनकी मांग थी की इन कुत्तों को तुरंत
छोड़ दिया जाये और उन्हें पुनः विस्थापित किया जाये.
सुखीलाल ने सुना तो गुस्से से कांप उठे. उन्होंने अपना आंदोलन तेज़ कर
दिया. चुन्नीलाल भी पीछे हटने वाले न थे. उन्होंने भी अपनी पूरी शक्ति अपने आंदोलन
में झोंक दी.
दोनों आंदोलनों ने प्रचंड रूप ले लिया. आंदोलनों के वेग से सारा नगर कांप
गया. म्युनिसिपेलिटी के चेयरमैन घबरा गये, वह कुछ समझ न पा रहे थे कि मानवों की सुरक्षा का सोचें या कुत्तों की
सुरक्षा का.
जब चेयरमैन को कुछ न सूझा तो दोनों समितियों के अध्यक्षों को बुलाया.
खूब सोच-विचार हुआ. खूब तर्क-वितर्क हुआ. कोई भी ज़रा भी पीछे हटने को तैयार न था.
हार कर चेयरमैन महोदय ने कहा, “क्यों न देश के दूसरे नगरों में प्रचलित प्रथा की
जानकारी प्राप्त की जाये? मैं आज ही एक आदेश जारी करता हूँ. सुखीलाल जी आप यह पता
लगाओ कि अन्य नगरों में कुत्तों से मानवों की सुरक्षा हेतु क्या-क्या प्रबंध किये
जाते हैं. चुन्नीलाल जी आप यह जानकारी इकट्ठी करो की अलग-अलग नगरों में मानवों के अत्याचारों
से कुत्तों को बचाने के क्या-क्या उपाय किये गये हैं.”
सुखीलाल और चुन्नीलाल ने सुना तो प्रसन्नता से फूले न समाये. दोनों ने
चेयरमैन का बार-बार धन्यवाद किया.
“पर उन कुत्तों का क्या होगा?” उठते-उठते चुन्नीलाल ने पूछा.
“उन्हें हरगिज़ न छोड़ा जाये,”सुखीलाल ने आवेश से कहा.
“उनके साथ कोई अत्याचार हुआ तो हम सहन न करेंगे,” चुन्नीलाल ने भी जोर
दे कर कहा.
चेयरमैन असमंजस में पड़ गये. कुछ सोच कर बोले, “जब तक कोई निर्णय नहीं
हो जाता तब तक उन कुत्तों को अनाथालय में रख देंगे. कुछ बच्चों को वहां से बाहर
निकाल कुत्तों के लिए जगह बना लेंगे. अनाथ बच्चों पर होने वाला जो खर्चा बच जायेगा
उसे कुत्तों पर खर्च कर देंगे. इस तरह न कुत्तों पर कोई अत्याचार होगा न ही किसी मानव
को कुत्तों का भय रहेगा.”
“यह उत्तम विचार है,” सुखीलाल और चुन्नीलाल एक साथ बोले.
आजकल सुखीलाल और चुन्नीलाल देश भ्रमण पर हैं. परदेस में न जाने कब
कैसी विपत्ति आन पड़े, यह सोच दोनों एक साथ ही यात्रा कर रहे हैं.
अनाथालय से निकाले गये बच्चे, अनाथालय में बंद कुत्ते, दोनों समितियों
के सभी सदस्य, दोनों के आन्दोलनों से जुड़े सैंकड़ों लोग उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
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©आइ बी अरोड़ा