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सत्यमेव....... (तीन अंकों में समाप्य लंबी कहानी का अंतिम अंक)

30 दिसम्बर 2021

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 उसे ध्यान आया कि जब सहानी  उससे बात कर रहा था उसे फोन पर किसी के हँसने की
आवाज़ भी सुनाई दी थी. सहानी  अकेला न था.
कोई उसके साथ था जो हँस रहा था. निश्चय ही सहानी उसके साथ कोई खेल खेल रहा था और
उसके साथ कोई था जो इस खेल का मज़ा ले रहा था.  

“कौन हँस रहा था? शायद रैना साहब
होंगे. क्या पता मंत्री जी ही हों.” वह अपने ही विचारों में उलझता जा रहा था. 

“इन शक्तिशाली लोगों का सामना करना
क्या उचित होगा?” उसने अपने आप से पूछा. 

उसे अहसास हुआ कि उसके साथ के सब लोग
उससे बहुत आगे निकल चुके थे. कुछ के बच्चे विदेश में थे. हर साल वह लोग विदेश
सैर-सपाटा करने जाते थे. जीवन की हर सुविधा उनके पास थी. अकसर अपनी पत्नियों के
साथ पेज थ्री की शोभा बढ़ाते थे. 

“तो क्या मेरे संस्कार सब मिथ्या हैं?
जो शिक्षा पिता ने दी वह सब व्यर्थ है?” उसके सामने बस प्रश्न थे और कुछ भी नहीं. 

अगले एक-दो दिन वह असमंजस की स्थिति
में रहा. वह जानता था कि रैना साहब अधीरता से फाइल की प्रतीक्षा कर रहे थे. दस दिन
बाद संसद का सत्र शुरू होने वाला था. परन्तु उन्होंने इस बारे में एक बार भी उसे
बात नहीं की. कई बार उनसे भेंट हुई पर सहानी  का नाम भी उनकी ज़ुबान पर न आया. 

न चाहते हुए उसने फाइल उठाई और खूब
सोच-विचार कर उस पर अपनी अनुशंसा दर्ज की. उसका नोट बहुत विस्तृत था. हर मुद्दे पर
उसने अपनी टिप्पणी की थी. 

रैना साहब ने उसे बुला भेजा.  

“अरे,फाइल अभी पाँच मिनट पहले ही भेजी
थी,” उसने मन ही मन सोच. “शायद अंतिम लाइनें ही पढ़ी होंगी.” 

“तुमने वैसा ही लिखा है जैसा मैंने
सोचा था,” रैना साहब की वाणी बिलकुल सपाट थी. “तुम जैसे लोग अपने को मसीहा समझते
हो. अभिमान के साथ अपनी सलीब अपने कंधों पर उठाये घूमते हो. पर सच तो यही है कि किसी
मसीहा को तभी लोग पूजते हैं जब वह सलीब पर लटक जाता है, जीवनकाल में तो लोग उसे
पत्थर ही मारते हैं. तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आएगी.जानते हो सुकरात ने क्या कहा
था, एक भले आदमी के साथ कभी बुरा नहीं हो सकता. लेकिन सुकरात को ज़हर तो पीना पड़ा
था.” 

रैना साहब चुप हो गए. उसने कुछ न कहा.
वही बोले, “मैंने तुम्हारा नोट पढ़ा भी नहीं. मैं जानता हूँ तुमने अकाट्य तर्क दिए
होंगे. मेरे करने के लिए तुमने कुछ छोड़ा न होगा. इसलिए मैंने फाइल मंत्री जी के
पास भिजवा दी है..... पर मुझे तरस आता है...तुम अच्छे व्यक्ति हो, कुछ ज़्यादा ही
अच्छे. देखते हैं क्या होता है.” 

वह थोडा विचलित हो गया. एक अंजान डर ने
उसे दबौच लिया. मंत्री जी न जाने क्या कर बैठें......सहानी  से भी बच कर रहना होगा. 

परन्तु वार सहानी  ने नहीं, सुधा ने किया. वह नहीं जानता था कि
सुधा की माँ सहानी को पटाने की कोशिश कर रही थी. उसकी सहायता से वह पार्टी बदलना
चाहती थी.अपनी पार्टी में उसे कोई भविष्य नहीं दिखाई दे रहा था. वह किसी राष्ट्रीय
पार्टी में प्रवेश पाने की जुगाड़ में थी. सहानी  ने उसे आश्वासन दे रखा था कि अगर उसका केस बंद
हो गया तो वह सुधा की माँ को विधान सभा का टिकट दिलवाने की कोशिश करेगा. जिस दिन
फाइल मंत्री जी के कार्यालय पहुँची उसी रात सुधा ने उससे तालाक लेने की इच्छा
प्रकट की. 

फोन सुधा ने नहीं उसकी माँ ने किया था
और साफ कह दिया था कि अब उनका एक साथ रहना असंभव था. माँ ने यह भी स्पष्ट कर दिया
था कि बच्चे सुधा के पास ही रहेंगे. 

उसने कल्पना भी न की थी कि उनके रिश्ते
का ऐसा अंत होगा. अपने दोनों बच्चों से वह बेहद प्यार करता था और उनके बिना रहने
की बात सोच भी न सकता था. 

मंत्री जी ने सहानी के केस में कोई
निर्णय नहीं लिया. न ही किसी पचड़े में फंस कर उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. जिस दिन
फाइल उनके कार्यालय पहुंची थी उस दिन वह अपने चुनावी क्षेत्र का दौरा कर रहे थे.
वहीं से विदेश यात्रा पर निकल गये थे. 

फाइल उनके निजी सचिव के पास थी. एक रात
निजी सचिव के कार्यालय में बिजली की तारें आपसे में उलझ गईं और कमरे में आग लग गई.
जब तक आग बुझाई गई तब तक कई फाइलें जल कर राख हो गईं. 

सहानी  ने यह सूचना स्वयं आकर उसे दी थी, साथ में वह
मिठाई का डिब्बा भी लाया था. 

“सर, आपने हमारा साथ न दिया. लेकिन सर,
कहते हैं कि होता तो वही जो मंजूरे खुदा होता है. आदमी के हाथ में क्या है? कुछ भी
नहीं. पर सर, आपसे मुझे बहुत आशा थी. वह तो अच्छा है कि मंत्री जी ने फाइल देखी
नहीं, देख लेते तो मेरे लिए मुसीबत खड़ी हो जाती. 

“सर, आपका क्या है.....आप बड़े आदमी
हैं...पर मैं क्या करता? मैं तो कहीं का न रहता. मुझे तो ऐसी बुरी आदतें लग गई हैं
कि क्या बताऊँ? और मंत्री जो कहने को तो मेरे सगे-संबंधी है पर हिस्सा पूरा लेते
हैं. एक रुपया भी कम दो तो काटने को दौड़ते हैं. आपके तो मज़े हैं, न मंत्री का डर,
न घर-परिवार की चिंता. हमें  तो घर भी
देखना पड़ता है और मंत्री जी की सेवा भी करनी पड़ती है. उन्हीं की कृपा से तो यहाँ
बदली हुई थी, पहले खुराना था, आपको तो पता ही है तीन सालों में दस करोड़ बना लिए थे
उसने, रैना का अपना आदमी था. रैना तो मुझे कभी यहाँ आने न देता. वो तो मंत्री जी
ने उसकी पूंछ दबाई तो रास्ता साफ़ हुआ. पर कीमत पूरी वसूल की मंत्री जी ने. इसलिए
मैं डरा हुआ था कि अगर कोई कार्यवाई शुरू हो गई तो बर्बाद हो जाऊँगा. रैना भी मुझे
से झुटकारा पाना चाहता है. रैना तो मन ही मन बहुत खुश था कि आप अपनी बात पर अड़े
है. मुझ से एक बात कहता था, मंत्री जी से दूसरी और आपको तो कुछ और ही कहता होगा.
रैना तो घाघ है. कोई अवसर नहीं चूकता. और एक बात कहूँ सर, आप जैसे लोग उसका काम
आसान कर देते हैं. आपकी ईमानदारी को बड़े सलीके से भुनाता है. जब से आप आये हैं
उसकी आमदनी दुगनी-तिगनी हो गई है. पर सर, आपने मेरे साथ अच्छा नहीं किया, मैं तो
आपकी मदर-इन-लॉ को विधायक बनाने की प्लानिंग कर रहा था, पर सर, अच्छा नहीं
हुआ......” 

सहानी  के मुँह से निकलती शराब की गंध एक धुंध समान
उसके चारों ओर फ़ैल रही थी. उसका दम घुटने लगा. सहानी  को धक्के मार कर घर से बाहर
निकाल देने की तीव्र उत्कंठा उसके मन में आग तरह धधक रही थी.  

“सर, रैना को सिर्फ पचास लाख देने की
बात हुई थी. लेकिन जैसे ही आपने यह बखेड़ा खड़ा कर दिया उसने एक करोड़ निकलवा लिए
मुझसे. संस्कारी लोगों का इस्तेमाल करने में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता. पर अब
लगता है उसका भी कुछ करना पड़ेगा. मंत्री जी के कान में बात डालनी पड़ेगी.....” 

सहानी अचानक उठ खड़ा हुआ और बोला, “सर,
सत्य की हमेशा जीत होती है. इस बार भी हुई है, हर बार होगी. सर, मैंने आपको कितना
समझाने की कोशिश की थी की आप कुछ न कर पायेंगे. यही सत्य है और सत्य की हमेशा जीत
होती है. सत्यमेव .....” 

सहानी  फिर बैठ गया. तब उसने देखा कि सहानी  हीरों का हार भी लाया था. 

“सर, यह हीरों का हार, मैडम के मन भा
गया था. आपने मेरा कोई काम नहीं किया पर मैं उनका बहुत सम्मान करता हूँ. आप यह हार
उनके पास ले जाएँ. वह तब तक घर वापस नहीं आएँगी जब तक इस हार को लेकर आप उनके पास
नहीं जायेंगे.......” 

उसे लगा कि वह कोई मनुष्य नहीं था, एक
बर्फ का पुतला था जो धीरे-धीरे पिघलता जा रहा था या रेत की बनी एक मूर्ति जो
ज़र्रा-ज़र्रा बिखरती जा रही थी.  

सहानी क्या कह रहा था, क्या नहीं कह
रहा था, वह कुछ सुन न पा रहा था. वह तो वर्षों पीछे जा चुका था. उस पुराने घर में,
जहाँ उसका बचपन बीता था. वह चिड़िया के उस निर्दोष, असहाय, पंखहीन बच्चे को देख रहा
था, जिसे सैंकड़ों चींटियाँ खाए जा रही थीं. उस नन्हें बच्चे की पीड़ा वह आज भी महसूस
कर सकता था. 

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सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में हर दिन चार सौ से अधिकलोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. निश्चय ही यह एक भयानक सच्चाई है. पर इसत्रासदी को लेकर हम सब जितने बेपरवाह हैं वह देख कर कभी-कभी आश्चर्य होता है; लगताहै कि सभ्य होने में अभी कई वर्ष और लगेंगे.अब जो आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जारी क

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क्या हम एक विक्षिप्त समाज बन गये हैं?

12 दिसम्बर 2018
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पाँच वर्ष से लेकर 29 वर्ष की आयु केबच्चों और युवा लोगों की मृत्यु का मुख्य कारण रोग या भुखमरी या मादक पदार्थों कीलत या साधारण दुर्घटनाएँ नहीं है. इन बच्चों और युवकों की मृत्यु का मुख्य कारण है सड़क दुर्घटनायें.सरकारी आंकड़ों पर अगर विश्वास क

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अलीपुर बम केस

17 दिसम्बर 2018
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श्री अरविन्द अलीपुर बम केस में एक आरोपी थे. अपनीपुस्तक, ‘टेल्स ऑफ़ प्रिज़न लाइफ’, में उन्होंने इस मुक़दमे का एक संक्षिप्त वृत्तांतलिखा है. यह वृत्तांत लिखते समय उन्होंने ब्रिटिश कानून प्रणाली पर एक महत्वपूर्णटिपण्णी की है.उन्होंने लिखा है कि इस कानून प्रणाली का असली उद्देश्ययह नहीं है की वादी-प्रतिवादि

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लघुकथा-एक

19 दिसम्बर 2018
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तीव्र गति से चलती स्कूल-वैन चौराहे पर पहुंची. बत्तीलाल थी. वैन को रुक जाना चाहिये था. परन्तु सदा की भांति चालक ने लाल बत्ती कीअवहेलना की और उसी रफ्तार से वैन चलाता रहा.दूसरी ओर से सही दिशा में चलता एक दुपहिया वाहन बीच मेंआ गया. वैन उससे टकरा कर आगे ट्राफिक सिग्नल से जा टकराई और पलट गई.देखते-देखते कई

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लघुकथा-दो

21 दिसम्बर 2018
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उस युवक का इतना ही दोष था कि उसने उन दो बदमाशों को एकमहिला के साथ छेड़छाड़ करने से रोका था. वह उस महिला को जानता तक नहीं था, बस यूँही,किसी उत्तेजनावश, वह बदमाशों से उलझ पड़ा था.भरे बाज़ार में उन बदमाशों ने उस युवक पर हमला कर दियाथा. एक बदमाश के हाथ में बड़ा सा चाक़ू था, दूसरे के हाथ में लोहे की छड़.युवक ने

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लघुकथा-तीन

22 दिसम्बर 2018
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‘बेटा, थोड़ा तेज़ चला. आगे क्रासिंग पर बत्ती अभी हरी है,रैड हो गयी तो दो-तीन मिनट यहीं लगजायेंगे.’‘मम्मी, मेरे पास लाइसेंस भी नहीं है. कुछ गड़बड़ हो गयी.....’‘अरे तुम समझते नहीं हो, हमारी किट्टी में रूल है की जोभी पाँच मिनट लेट होगा उसे गिफ्ट नहीं मिलेगा.’ ‘तो पहले निकलना था न, सजने-सवरने में तो.....

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लघुकथा-चार

26 दिसम्बर 2018
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लड़की ने कई बार माँ से दबी आवाज़ में उस लड़के की शिकायतकी थी पर माँ ने लड़की की बात की ओर ध्यान ही न दिया था. देती भी क्यों? जिस लड़केकी वह शिकायत कर रही थी वह उसके अपने बड़े भाई का सुपुत्र थे, चार बहनों का इकलौता लाड़लाभाई. पर लड़की के लिए स्थिति असहनीय हो रही थी. उसकी अंतरात्माविद्रोह कर रही थी. अंततः उस

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लघुकथा- पाँच

28 दिसम्बर 2018
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लघुकथा- चारनेताजी अपने चिर-परिचित गंभीर शैली में लोगों को संबोधितकर रहे थे, ‘सरकार ने जो यहाँ बाँध बनाने का निर्णय लिया है वह यहाँ के किसानों केविरुद्ध के साजिश है. बाँध बना कर नदी का पानी ऊपर रोक लिया जायेगा. फिर उस पानीसे बिजली बनाई जायेगी और बिजली बनाने के बाद वह प

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लघुकथा-छह

4 जनवरी 2019
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‘बच्चे, उस बाड़ से दूर रहना, उसे छूना नहीं. उसमें बिजलीचल रही है.’‘लेकिन यह बाड़ यहाँ क्यों है? इसमें बिजली क्यों चल रहीहै.’‘यह सब हमारी सुरक्षा के लिये है.’‘हमारी सुरक्षा? किस से?’वृद्ध एकदम कोई उत्तर ने दे पाए. कुछ सोच कर बोले,‘बच्चे, यह बात तो मैं भी समझ नहीं पाया.’‘वह हमें मूर्ख बना रहे हैं.’‘शायद

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लघुकथा-सात

12 जनवरी 2019
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1 जनवरी 20..आतंकवादियों ने सेना की एक बस पर अचानक हमला कर दिया. बसमें एक भी सैनिक नहीं था. बस में स्कूल के कुछ बच्चे पिकनिक से लौट रहे थे. एकबच्चा मारा गया, पाँच घायल हुए.सारा नगर आक्रोश और उत्तेजना से उबल पड़ा. लोग सड़कों परउतर आये; पहले एक नगर में, फिर कई नगरों में. हर कोई सरकार को कोस रहा था. हरसमा

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मृत्युदंड

17 जनवरी 2019
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वह एक निर्मम हत्या करने का दोषी था. पुलिस ने उसकेविरुद्ध पक्के सबूत भी इकट्ठे कर लिए थे. पहले दिन ही जज साहब को इस बात का आभास हो गया था किअपराधी को मृत्यदंड देने के अतिरिक्त उनके पास कोई दूसरा विकल्प न होगा. लेकिन जिसदिन उन्हें दंड की घोषणा करनी थी वह थोड़ा विचलित हो गये थे. उन्होंने आज तक किसीअपराध

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एक लघु कथा

20 जनवरी 2019
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‘यह तीसरी लड़की है जो तुमनेपैदाकी है. इस बार तो कम से कम एक लड़का जन्मती,’ उसकीआवाज़ बेहद सख्त थी.एक कठोर, गंदीअंगुली शिशु को टटोलने लगी; यहाँ, वहां. भय की नन्ही तरंग शिशु के नन्हें हृदय में उठी और उसेआतंकित करती हुई कहीं भीतर ही समा गई. अपने-आपसे संतुष्ट अंगुली हंस दी. सब जानते हुए भी, अपने मेंसिकुड़

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प्रतिशोध-- एक कहानी

23 जनवरी 2019
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होटल में प्रवेश करते ही दिनेश ने अमर कोदेख लिया. उनकी नज़रें मिलीं पर दोनों ने ऐसा व्यवहार किया कि जैसे वह एक दूसरे कोपहचानते नहीं थे. परन्तु अधिक देर तक वह एक दूसरे की नकार नहीं पाये.‘बहुत समय हो गया.’‘हाँ, दस साल, पाँच महीने और बाईस दिन.’‘तुम ने तो दिन भी गिन रखे हैं?’‘क्यों? तुम ने नहीं गिन रखे?’‘

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निमंत्रण

25 जनवरी 2019
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‘क्या तुम्हें पूरा विश्वासहै कि यह निमंत्रण इस ग्रह के निवासियों के लिये है? मुझे तो लगता है कि किसी भीग्रह के वासी पृथ्वी-वासियों को अपने यहाँ नहीं बुलाना चाहेंगे!’‘क्यों? क्या खराबी है इनजीवों में?’‘तुम्हें पूछना चाहिए कि क्याखराबी नहीं है इनमें!’एलियंस का अन्तरिक्ष-यान अभीभी पृथ्वी से कई लाख मील

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लघुकथा

26 जनवरी 2019
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लघुकथाजब उन्होंने उसकी पहलीअजन्मी बेटी की हत्या करनी चाही तो उसने हल्का सा विरोध किया था. वैसे तो वह स्वयंभी अभी माँ न बनना चाहती थी. उसकी आयु ही कितनी थी-दो माह बाद वह बीस की होने वालीथी. उन्होंने उसे समझाने का नाटक किया था और वह तुरंत समझ गयी थी. लेकिन उसके विरोध ने उन्हेंक्रोधित कर दिया था. किसी

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आँगन का पेड़

3 फरवरी 2019
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घरके आँगन में लगा यह पेड़ मुझ से भी पुराना है. मेरेदादा जी ने जब यह घर बनवाया था, तभी उन्होंने इसे यहाँ आँगन मेंलगाया था. मेरा तो इससे जन्म का ही साथ है. यहमेरा एक अभिन्न मित्र-सारहा है. इसकीछाँव में मैं खेला हूँ, सुस्तायाहू, सोया हूँ. इसकी संगत में मैंने जीवन की ऊंच-नीचदेखी है. मेरे हर सुख-दुःखका स

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लघुकथा

7 फरवरी 2019
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लघुकथासारादिन तो वह अपने-आप को किसी न किसी बात में व्यस्त रखता था; पुराने टूटे हुए खिलौनोंमें, पेंसिल के छोटे से टुकड़े में, एक मैले से आधे कंचे में या एक फटी हुई फुटबालमें. लेकिन शाम होते वह अधीर हो जाता था. लगभगहर दिन सूर्यास्त के बाद वह छत पार आ जाता था और घर से थोड़ी दूर आती-जाती रेलगाड़ियोंको देखत

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मतदातों से एक निवेदन-अगली सरकार मज़बूत सरकार

12 फरवरी 2019
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सबसे पहले यह स्पष्ट करना अनिवार्य होगा कि यह अपीलमज़बूत सरकार चुनने के लिये है, मोदी सरकार चुनने के लिये नहीं. अगर आपको लगता हैकि कांग्रेस एक मज़बूत सरकार दे सकती है तो उसे भरपूर बहुमत देकर जितायें. और अगरआप समझते हैं कि बीएसपी, या टीएम्सी या एएपी या कोई अन्य दल या दलों का समूह मज़बूतसरकार दे सकता है त

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मतदातों से एक निवेदन-अगली सरकार मज़बूत सरकार-२

14 फरवरी 2019
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लेख के पहले भाग में मैंने यह तर्क दिया था कि देश कोसिर्फ एक मज़बूत सरकार ही सुरक्षित रख सकती है. देश को तोड़ने के प्रयास में कई शक्तियाँसक्रिय हैं, इसलिए चौकस रहना हमारे लिए एक मजबूरी ही है.आम आदमी को यह बात समझनी होगी कि शक्तिशाली लोग, धनी लोगकहीं भी, कभी भी जाकर बस सकते हैं. पर ऐसा विकल्प आम आदमी के

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छतिसिंहपोरा नरसंहार

21 मार्च 2019
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क्या कल आपने किसी मीडिया चैनल पर या किसी समाचार पत्रमें छतिसिंहपोरा नरसंहार के विषय में एकशब्द भी सुना या पढ़ा? क्या किसी ह्यूमन-राइट्स वाले को इस नरसंहार की बात करतेसुना? वह लोग जो आज़ादी के नारे लगाते है या वह नेता जो उनकेसमर्थन में खड़े हो जाते हैं या वह जो आये दिन नक्सालियों के लिए आवाज़ उठाते हैं

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जागो मतदाता, जागो

23 मार्च 2019
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दो एक वर्षों से कई राजनेता सेना के जवानों का अपमानकरने की होड़ में लगे हैं. इन में से एक भी राजनेता ऐसा नहीं है जो सियाचिन की ठंडया रेगिस्तान की चिलचिलाती धूप में आधा घंटा भी रह पाए. जिन कठिनायों का सामनासीमा पर तैनात एक जवान करता है उसका इन्हें रत्ती भर भी अहसास नहीं है. और आश्चर्य की बात तो यह कि इ

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सत्यमेव....... (तीन अंकों में समाप्य लंबी कहानी का पहला अंक)

28 दिसम्बर 2021
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<p> “आज शाम को क्या कर रहे हो?” </p> <p>“कुछ ख़ास नहीं, सर.” </p> <p>“तो आज की शाम हमा

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सत्यमेव....... (तीन अंकों में समाप्य लंबी कहानी का दूसरा अंक)

29 दिसम्बर 2021
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<p> वह स्तब्ध हो गया. वह तय न कर पाया कि रैना<br> साहब सत्य कह रहे थे या व्यंग्य कर रहे थे.&nbs

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सत्यमेव....... (तीन अंकों में समाप्य लंबी कहानी का अंतिम अंक)

30 दिसम्बर 2021
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<p> उसे ध्यान आया कि जब सहानी उससे बात कर रहा था उसे फोन पर किसी के हँसने की<br> आवाज़ भी

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ट्रेन

4 जनवरी 2022
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सारा दिन वह अपने-आप को किसी न किसी बात में व्यस्त रखता था; पुराने टूटे हुए खिलौनों में, पेंसिल के छोटे से टुकड़े में, एक मैले से आधे कंचे में या एक फटी हुई फुटबाल में. लेकिन शाम होते वह अधीर हो जाता था

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नए साहब का आदेश

5 जनवरी 2022
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 नए साहब नौ बजे ही कार्यालय पहुँच गये. उनका पहला दिन था और वह किसी को सूचना दिए बिना ही आ गये थे. लेकिन नौ बजे तक तो सफाई कर्मचारी भी न आते थे. निर्मल सिंह ही अगर नौ बजे पहुँच जाता तो वही बड़ी बात थ

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अपना भी नाम होगा (बच्चों के लिए कहानी)

16 जनवरी 2022
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 लंबू और छोटू चोर थे. परन्तु आजतक उन्होंने छोटी-मोटी चोरियाँ ही की थीं. इस कारण अन्य चोर उनका मज़ाक उड़ाते थे.  एक दिन छोटू ने लंबू से कहा, “भाई, नाम और दाम कमाने का सुनहरा अवसर मिल रहा है.”  “कैसे?

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सहजो वाणी

23 जनवरी 2022
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 हमारे देश में मीरा बाई से लगभग सभी लोग परिचित हैं. उनके कुछ भजनों को तो शिक्षा संस्थानों ने पाठ्य क्रम में भी स्थान दिया है. परन्तु राजपुताना की और संत थीं जिनके विषय बहुत कम लोग जानते हैं. अधिकाँश

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लालची बंदर (बच्चों के लिए कहानी)

26 जनवरी 2022
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 एक नदी के किनारे एक मंदिर था. मंदिर के निकट ही एक विशाल पेड़ थे जिस पर बंदरों की एक टोली रहती थी. मोती उस टोली का सरदार था.  हर मंगलवार के दिन मंदिर में खूब भीड़ होती थी. उस दिन पास के गाँव के सभी ल

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वाजिद वाणी

29 जनवरी 2022
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  वाजिद के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. शायद वह राजपुताना के रहने वाले एक गरीब पठान थे. ऐसी मान्यता है कि वाजिद एक बार शिकार करने गये. एक हिरणी का पीछा कर रहे थे. हिरणी अचानक उछली. पल भर के

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अकेलो जाय रे

26 फरवरी 2022
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 अकेलो जाय रे  वाजिद के कुछ अमूल्य वचन फिर सांझा कर रहा हूँ.  टेढ़ी पगड़ी बाँध झरोखा झांकते  तांता तुरग पिलाण चहूँटे डाकते  लारे चढ़ती फौज नगारे बाजते  वाजिद ये नर गए विलाय सिंह ज्यूँ गाजते.  दो-दो

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