एक नदी के किनारे एक मंदिर था. मंदिर के निकट ही एक विशाल पेड़ थे जिस
पर बंदरों की एक टोली रहती थी. मोती उस टोली का सरदार था.
हर मंगलवार के दिन मंदिर में खूब भीड़ होती थी. उस दिन पास के गाँव के
सभी लोग भगवान के दर्शन करने आते थे. कई लोग मंदिर में प्रसाद भी चढ़ाते थे. कोई
बर्फ़ी लाता था तो कोई लड्डू. कुछ लोग फल लाते थे.
उस दिन सब बंदर मंदिर के अंदर आ जाते. मंदिर से लौटते समय लोग
थोड़ा-थोड़ा प्रसाद उन बंदरों को भी खाने के लिए दे देते. गाँव वालों को बंदर अच्छे
लगते थे क्योंकि बंदर न तो किसी को डराते थे और न ही किसी से कोई चीज़ छीनते थे.
छुटकू बंदर बहुत लालची था. थोड़ी सी मिठाई या थोड़े से फलों से उसका मन
न भरता था. वह तो पेट भर कर मिठाई और फल खाना चाहता था.
एक मंगलवार एक छोटा बच्चा अपने माता-पिता के साथ मंदिर आया था. बच्चे
ने हाथ में बर्फी से भरा एक लिफ़ाफ़ा पकड़ रखा था. छुटकू बंदर ने इधर-उधर देखा.
किसी का ध्यान उसकी ओर न था. बिना आवाज़ किये वह बच्चे के पीछे चलने लगा........
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