लेख के पहले भाग में मैंने यह तर्क दिया था कि देश को
सिर्फ एक मज़बूत सरकार ही सुरक्षित रख सकती है. देश को तोड़ने के प्रयास में कई शक्तियाँ
सक्रिय हैं, इसलिए चौकस रहना हमारे लिए एक मजबूरी ही है.
आम आदमी को यह बात समझनी होगी कि शक्तिशाली लोग, धनी लोग
कहीं भी, कभी भी जाकर बस सकते हैं. पर ऐसा विकल्प आम आदमी के पास नहीं है. कई
लोगों ने पहले ही करोड़ों, अरबों रूपये बाहर के बैंकों में जमा कर रखे हैं, दूसरे
देशों में घर बना रखे हैं. यह सुविधा आम आदमी के पास नहीं हैं. उसका जीना भी यहाँ,
मरना भी यहाँ.
और आम आदमी भाग कर जा भी कहाँ सकता है. इस देश में हम ने
सबका स्वागत किया, चाहे वह यहूदी थे या पारसी. बँगला देश, अफगानिस्तान और म्यांमार से भागे लोगों को भी जगह दी. लेकिन
यहाँ के लोग कहीं पनाह नहीं पा सकते, यह एक कड़वा सच है. और हिन्दुओं के लिए तो और
भी झंझट है. जहां 150 से अधिक देशों में ईसाई बहुमत में हैं और पचास से अधिक देशों
में मुस्लिम बहुमत में हैं, वहां हिन्दू सिर्फ दो देशों में बहुमत में हैं-भारत और
नेपाल. (वास्तव में तो कश्मीर के हिन्दुओं की अपने देश में ही दुर्गत हो हुई है.)
तो इस भुलावे मत रहिये कि, ‘चीनो-अरब हमारा....सारा जहां
हमारा’. अपने लिये तो बस एक ही है अपना देश है और उसको सुरक्षित रखना हम सब का कर्तव्य तो है लेकिन मजबूरी
अधिक है.
मजबूर सरकार कितनी मजबूर होती है इसका उल्लेख लेख के
अगले भाग में.