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मतदाताओं में ख़राबी है.

15 अप्रैल 2017

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मुकंदी लाल जी को हम ने लाख समझाया पर इस बार उन्होंने हमारी एक न सुनी. ‘इस बार हम आपकी एक न सुनेंगे. हर बार हम अपना मन पक्का करते हैं और हर बार आप हमारा विश्वास डगमगा देते हैं. इस बार हम अवश्य ही मुनिसिपलिटी का चुनाव लड़ेंगे. कोई पार्टी हमें टिकट दे या न दे, हमारा निर्णय न बदलेगा. हम चुनाव में खड़े होंगे, चाहे निर्दलीय ही खड़े हों. आप समझ नहीं रहे, अगर आप-हम जैसे अच्छे लोग राजनीति में आयेंगे नहीं तो राजनीति बदलेगी कैसे?’ उनकी बात सुन मन में गुदगुदी सी हुई. अनचाहे ही पर अपने साथ वह हमें भी अच्छा कह रहे थे. ‘मुकंदी लाल जी, कितने ही लोग पहले से राजनीति को बदलने में अपना सब कुछ दांव पार लगा कर बैठे हैं. अब आप भी राजनीति बदलने के अभियान में जुट जायेंगे तो राजनीति बेचारी तो पूरी तरह त्रस्त हो जायेगी. राजनीति पर इतना अत्याचार न करें. साठ वर्षों से हमारे राजनेता राजनीति की........’ ‘आप जितना भी व्यंग्य करना चाहें करें पर हम अब रुकने वाले नहीं.’ और मुकंदी लाल जी नहीं रुके. किसी पार्टी से टिकट तो मिलना था नहीं, निर्दलीय के रूप में ही उन्होंने पर्चा भर दिया और चुनाव अभियान में कूद पड़े. घर-घर जाकर मतदाताओं के सामने उन्होंने अपने विचार रखे, राजनीति को बदलने का अपना निश्चय बताया. सबने सहयोग का विश्वास दिलाया. “हमारा विश्वास करें. अभी तक सब राजनेताओं ने आपको ठगा है. हम आपको ठगने के विचार से राजनीति में नहीं आये हैं. इस देश के लिए, इस समाज के लिए कुछ करने का निश्चय किया है. इस राजनीति को बदल देंगे. चुनाव समाप्त होते ही सब राजनेता लोगों को भुला बैठते हैं. सब के सब सत्ता के पीछे दौड़ पड़ते हैं, अपने परिवार को राजनीति में लाने के प्रयास में लगे रहते हैं. हम ऐसा नहीं करेंगे. हमारे परिवार को कोई भी सदस्य हमारे आसपास भी न दिखेगा.” ऐसी ही कई बातें मुकंदी लाल जी ने लोगों से कही. चुनाव के बाद उन्हें पूरा विश्वास था कि वह जीत जायेंगे, ‘लोगों का उत्साह देखते ही बनता था. मुझे तो लगता है कि अन्य सभी उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो जाएगी. जीत पक्की है. अच्छा किया जो आपकी बातों में न आया और इस बार चुनाव में खड़ा हो ही गया. अब इस समाज को बदल कर रख दूंगा.’ यह डायलाग उन्होंने ऐसे कहा जैसे कह रहे हों, ‘पाप को जला कर राख कर दूंगा.’ चुनाव का नतीजा आया. मुकंदी लाल जी को कुल उन्नीस वोट मिले थे. जीतने वाले उम्मीदवार को चालीस हज़ार से अधिक वोट मिले थे. जो व्यक्ति दसवें स्थान पर आया था उसे एक सौ बीस मत मिले थे. मुकंदी लाल जी को सब से कम मत मिले थे. ‘क्या लगता है आपको, क्या मशीन में कोई गड़बड़ थी? आपके जानने- पहचानने वालों की संख्या ही पचास से ऊपर होगी. कम से कम पचास मत तो मिलने ही चाहिए थे?’ ‘नहीं भाई साहिब, मशीन में कोई गड़बड़ नहीं थी. मशीन में क्या खराबी होगी. मुझे लगता है मतदाताओं में ही खराबी है, जानते हैं जो व्यक्ति चुनाव जीता है उसने पांचवीं बार पार्टी बदली है. हम नई राजनीति की बात कर रहे थे और लोग दल-बद्लूओं को वोट दे रहे थे. सुना है जितने लोग जीते हैं उन में से कईयों के विरुद्ध अपराधिक मामले भी चल रहे हैं. मशीन बेचारी क्या करे, जब मतदाता ही ऐसे लोगों को वोट दे देते हैं.’ ‘पर दूसरी पार्टियों के नेता तो मशीन को ही दोष दे रहे हैं.’ ‘मशीन उनकी बात का जवाब नहीं दे सकती इसलिए मशीन पर दोष लगाना सरल है. अपने को कोई दोषी मानता नहीं. एक-दूसरे को हार का दोषी ठहराएंगे तो आपस में ही कहा-सुनी हो सकती है.’ ‘पर आप भी तो मतदाताओं को दोषी ठहरा रहे हैं?’ ‘तो क्या गलत कर रहे हैं?’ हम चुप हो गए, मतदाता की भूमिका को नकारा तो नहीं जा सकता. आज की राजनीति के लिए क्या सिर्फ राजनेता ही दोषी हैं, यह प्रश्न हमारे समक्ष भी खड़ा हो गया.

आई बी अरोड़ा की अन्य किताबें

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प्रतीक्षालय (एक कहानी)

21 मई 2016
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एक मित्र की अंतिम संस्कार में भाग लेने हेतु मुझे उसके गाँव, अमीरपुर जानापडा. हम दोनों एक साथ सेना में थे. सन इकहत्तर की लड़ाई में हम दोनों ने ही भागलिया था. उस युद्ध में वह बुरी तरह घायल हो गया था. उसकी दोनों टांगें काटनी पडींथीं. सेना से उसे सेवानिवृत्त कर दिया गया.अमीरपुर गाँव में उसकी पुश्तैनी ज़मी

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खम्बा बनाम आदमी

23 मई 2016
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मुझ जैसे बिजली के खम्बे तो आजकल बहुत कम दिखते हैं. इस महानगर में तोमुझ जैसा खम्बा शायद ही आपको दिखे. आदमी ने अब काफी तरक्की कर ली है. अब आपकोदिखेंगे सीमेंट या लोहे के खम्बे. पर मेरी बात और है मुझे विधाता ने एक वृक्षबनाया था. आदमी ने मुझे बिजली का खम्बा बना दिया. है न कितनी अजीब नियति? लेकिन एक खम्भा

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जोकर (एक कहानी)

26 मई 2016
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‘वह सर्कस में काम करते हैं, वह एक जोकर हैं.’‘वो लापता क्यों हो गया है?’ पुलिस इंस्पेक्टर का वाणी उकताहट से भरी हुईथी.‘मुझे नहीं पता, तीन दिन पहले वह, अपना काम पूरा कर, सर्कस से घर लौट रहेथे. लेकिन वह घर नहीं पहुंचे. हम सब बहुत चिंतित है. बच्चों ने तो कल से कुछ खायाभी नहीं, वह सब डरे हुए हैं.’‘क्या त

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किस्सा दो समितियों का

28 मई 2016
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हमारे नगर में दो समितियां हैं, एक समिति ने मानवों की कुत्तों से रक्षाका बीड़ा उठा रखा है तो दूसरी ने कुत्तों की मानवों से रक्षा का. सुखीलाल उन व्यक्तियों में से हैं जो समाज की हर समस्या पर अपनी समझ  का प्रभाव डालना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझतेहैं. पिता-पुत्र में अनबन हो या म्युनिसिपेलिटी के चुनाव, सफ़ा

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जंगल में थे सारे सोये

28 मई 2016
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जंगल में थे सारेसोये मीठे सपनों में थेखोये कोई सोया घास मेंछिपकर कोई सोया पेड़ के ऊपर    कोई सोया माँद केभीतर और कोई किसी झाड़ पे चढ़कर  किसी ने ओढ़ी डालों कीचादर किसी के ऊपर फैलाअंबर   कोई सोया ले पत्तोंकी ओट बंद किये अपनेप्यारे होंठ  तभी अचानक हुआ धमाकाहर कोई सोया नींद सेजागा   डर कर हर इक उठ कर बैठाज

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एक निर्दोष पक्षी की ह्त्या (भाग 1)

1 जून 2016
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‘हम सब प्रयास कररहे हैं. हम अपराधी को सज़ा दिला कर ही रहेंगे. अगर यहाँ निर्णय हमारे पक्ष में नहुआ तो हम अपील दायर करेंगे. हाई कोर्ट जायेंगे. आवश्यक हुआ तो सुप्रीम कोर्ट भीजायेंगे. परन्तु हम हत्यारे को छोड़ेंगे नहीं. इस बार वह बच न पायेगा. यह चौथीहत्या है जो उसने की है. आज तक उसे सज़ा नहीं मिली. परन्तु

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एक निर्दोष पक्षी की ह्त्या (अंतिम भाग)

2 जून 2016
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सुबोध ने उसे कई प्रकार से उसे लुभाने और बहलाने का प्रयास किया था, परन्तुसफल न हो हुआ था. हार कर और थोड़ा चिढ़ कर वह चिन्नी को रिझाने लगा था. पैसों से जोऐश्वर्य वह सुधा के लिए बटोरना चाहता था वह चिन्नी के लिए बटोरने लगा.चिन्नी सुंदर थी, बुद्धिमान थी. लेकिन सुबोध ने उसके मन में धन वसुख-सुविधाओं के लिए

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अमेरिका की कांग्रेस में मोदी जी का भाषण

13 जून 2016
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अमेरिका की कांग्रेसमें दिए मोदी जी के भाषण को लेकर कई प्रकार की बातें की जा रही हैं. उनका भाषण सार्थकथा या नहीं यह एक अलग बहस का मुद्दा है, मैं जिस बात पार आपका ध्यान आकर्षित करनाचाहता हूँ वह तथाकथित उदारवादियों (लिबरल्स) की प्रतिक्रिया. तथाकथित कहने का कारणहै. मेरे मानने में अगर कोई व्यक्ति सच में

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रेवत

5 जुलाई 2016
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भगवान् बुद्ध के एकशिष्य के सम्बंध में एक सुंदर गाथा है.बुद्ध के शिष्य थेमहाकश्यप. महाकश्यप का छोटा भाई था रेवत. रेवत के माता-पिता ने उसका विवाह निश्चितकिया. विवाह के कुछ दिन पहले रेवत के मन में आया कि उसके भाई ने बुद्ध की शरण मेंजाकर अपना जीवन सार्थक कर लिया, उन्हें बोद्ध प्राप्त हुआ. पर वह स्वयं तो

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आनंद मंत्रालय

28 जुलाई 2016
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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की पहल से प्रेरित हो कर एक अन्य राज्य केमुख्यमंत्री ने भी अपनी सरकार में ‘आनंद मंत्रालय’ बनाने का विचार किया. वह झटपट अपने बड़े भाई के पास दौड़े. बड़े भाई जेल में बंद होते हुए भी पार्टीके अध्यक्ष थे, उन्हीं के आदेश पर मुख्यमंत्री सब निर्णय लेते थे. बड़े भाई नेसोच-विचार कहा की

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क्या सत्य बोल रही हैं आनंदीबेन

3 अगस्त 2016
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गुजरात की मुख्यमंत्री ने त्यागपत्र दे दिया है. उनका कहना है कि वह शीघ्रही ७५ वर्ष की हो जायेंगी. अत: वह अपनी ज़िम्मेवारियों से मुक्त होना चाहती हैं.उनकी जगह किसी कम उम्र के राजनेता को मुख्यमंत्री का पद सम्भालना चाहिये. अगलेचुनाव तक नए मुख्यमंत्री को उचित समय मिलना चाहिये ताकि वह पार्टी का ठीक से नेतृ

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अरविंद केजरीवाल की जंग

5 अगस्त 2016
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अरविंद केजरीवाल की सरकार और एल जी के बीच चल रही तनातनी को लेकर दिल्ली कीउच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दे दिया है. उच्च न्यायालय का निर्णय अरविंदकेजरीवाल विनम्रता से स्वीकार कर लेंगे ऐसा सोचना भी गलत होगा. वैसे भी इस निर्णयको चुनौती देना उनका और उनकी सरकार का संवैधानिक अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट कानिर्ण

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क्यों नहीं जीत पाये हम ओलंपिक स्वर्ण पदक

22 अगस्त 2016
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फिर एक बार अंतर्राष्ट्रीय खेलों में हमारा प्रदर्शन निराशाजनक रहा. एक रजत और एक कांस्य पदक पाकर भारत ने ओलंपिक पदक तालिका में ६७ स्थान पाया है.हर बार की भांति इस मुद्दे पर ख

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अरविन्द केजरीवाल की नई राजनीति

5 सितम्बर 2016
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‘आप’ के एक विधायक ने अरविन्द केजरीवाल को पत्र लिख कर कहा है कि उन्हेंलोगों को बताना चाहिए की हमारा[ अर्थात आम आदमी पार्टी का] विश्वास है की हम राजनीति को बदल देंगे.आज से लगभग २५०० वर्ष पहले प्लेटो ने कहा था की जब तक दार्शनिक राजा नहींबनते या वह जिन्हें हम राजा मानते

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“फ़र्ज़ी” सर्जिकल स्ट्राइक्स

4 अक्टूबर 2016
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अरविन्द केजरीवाल, संजय निरुपम, चिदंबरम वगेरा ने भारतीय सेना की पी ओ के में की गयी कार्यवाही को लेकर तरह-तरह के ब्यान दिए हैं. निरुपम ने तो इन स्ट्राइक्स को “फर्जी” तक करार दे दिया है. अब कुछ लोग यह तर्क दे रहे हैं कि उन्हें सेना पर पूरा विश्वास है लेकिन पाकिस्तान के दुष्-

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कौन भरता है मेरा बिजली का बिल?

18 दिसम्बर 2016
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आज पिछले माह का बिजली का बिल मिला. मैं अकसर बैंक से मैसेज आते ही बिजली का बिल ऑनलाइन भर देता हूँ. बिल बाद में आता है और यूँ ही पड़ा रहता है. आज बिल पहले आ गया तो थोडा ध्यान से देखा. बिल है 937 रूपये का, पर मुझे सिर्फ 603 रुपये देने हैं. सरकार की ओर से 334 रूपये की सब्स

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एटीएम् की लाइन में

19 दिसम्बर 2016
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बेटे ने आकर सूचना दी कि पिछली मार्किट में लगे एसबीआई के एटीएम् में रूपये भरे जा रहे हैं, अभी लाइन छोटी ही है, रूपये लेने हैं तो जाकर लाइन में लग जाएँ. हमने पूछा, क्या तुम्हें रूपये नहीं निकालने? उत्तर मिला, मेरे पास माँ है (अर्थात कार्ड है, पेटीएम् है), समस्या आप जैसे लोगों की है. हम चुपचाप लाइन मे

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ओम पूरी ने अगर कहीं ओर जन्म लिया होता?

9 जनवरी 2017
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गोविन्द निहालनी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘आक्रोश’ देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया था. सबसे चौंकाने वाला था ओम पूरी का अभिनय; लगभग सारी फिल्म में ओम पूरी का एक भी डायलाग नहीं है पर इसके बावजूद उनका अभिनय देखने वाले को झकझोड़ देता है. उस दिन मन में एक प्रश्न उठा, ‘क्या और अभिनेता है जो ऐसा अभिनय करने क

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क्यों चुनते है हम अपराधिक छवि के नेताओं को?

16 जनवरी 2017
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राजनीति में अपराधिक छवि के लोगों का आना हम सब के लिए एक चिंता का विषय होना चाहिए, पर ऐसा है नहीं. संसद के २०१४ के चुनाव के बाद, एक-तिहाई सदस्य ऐसे हैं जिन के विरुद्ध अपराधिक मामले हैं और इनमें से २१% तो ऐसे सदस्य हैं जिनके विरुद्ध गंभीर मामले हैं. ‘कार्नेगी इंन्डाउमेंट फ

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फट्टा कुरता

19 जनवरी 2017
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नेता जी ने अपना फट्टा हुआ कुरता दिखा कर जनसभा में आये लोगों से कहा, ‘जो नेता लाखों रुपये के सूट पहनते हैं वह कैसे जान पायेंगे कि ग़रीब आदमी का दर्द क्या होता है. ऐसे ही लोगों के बारे में ही कहा गया था कि बन्दर न जाने जिंजर का स्वाद. मुझ से पूछिये कि गरीबी क्या होती है. ज

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सड़क दुर्घटनाएं और हम

24 जनवरी 2017
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हम सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2015 में लगभग 150000 लोगों की अलग-अलग सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई. दस वर्ष पहले, 2005 में, 94000 लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई थी. यह आंकडें चौंकाने वालें हैं. पर अपने चारों ओर देख कर ऐसा लगता नहीं है कि किसी को ज़रा सी भी चिंता या घबराहट हुई है. हर दिन चार सौ

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यह गुरमेहर कौन है?

2 मार्च 2017
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मुकंदीलाल जी ने हमारे सामने आज का समाचार पत्र फैंकते हुए पुछा, ‘यह गुरमेहर कौन है? हम ने समाचार पत्र के ऊपर एक फिसलती हुई नज़र डाली. मोटे-मोटे अक्षरों में छपा था, ‘गुरमेहर का कमाल, दिल्ली में बवाल.’ हम ने सर खुजलाते हुए कहा, ‘भई, बात ऐसी है कि मैं समाचार पत्र लेता अवश्य हूँ, और एक नहीं तीन-तीन. पर पढ़

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अभिव्यक्ति की आज़ादी और हम

3 मार्च 2017
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जेएनयू से ‘आज़ादी’ को जो लहर उठ डीयू की ओर जा रही थी उस लहर से हम कैसे अछूते रहते. जो रास्ता जेएनयू से डीयू की ओर जाता है उस रास्ते पर हमारा आना-जाना लगा ही रहता है. इस कारण, धूएँ सामान, वातावरण में फैलते आज़ादी के नारों ने हमें भी उत्साहित किया. पर अब हमारी समस्या हम स्वयं नहीं, हमारा कुत्ता है. हमे

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बीजेपी को मीडिया का आभार व्यक्त करना चाहिए?

15 मार्च 2017
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जब हम किसी विशाल पेड़ को देखते हैं तब हमें यह समझ लेना चाहिये कि उस पेड़ का बीज वर्षों पहले किसी ने बोया होगा. किसी विशाल नदी को देख कर जान लेना चाहिए की धारा का स्रोत कहीं दूर, बहुत दूर होगा. ऐसा ही मानव समाज में होता है. जो घटनाएं आज घट रही हैं उनके बीज वर्षों पहले ही कि

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हाउस टैक्स खत्म होगा

26 मार्च 2017
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मुकंदी लाल जी झल्लाये हुए आये और लगभग चिल्लाते हुए बोले, ‘यह आप ने क्या किया?’ हम थोड़ा चौंके, ‘अरे इतने खफ़ा क्यों हैं? ऐसा क्या कर दिया हम ने?’ ‘आप की बात कौन कर रहा है. वैसे भी आपकी क्या औकात है कि आप कुछ कर पायें. मैं तो इस आम आदमी पार्टी की बात कर रहा हूँ. अब उनके नेता

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आज़ादी का नारा

4 अप्रैल 2017
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मुकंदी लाल जी ने हमारे अध्ययन-कक्ष में प्रवेश किया. उनकी गंभीर मुद्रा देख कर हमें समझने में देर न लगी कि श्रीमान किसी उलझन में घिरे हुए हैं. बोले, ‘यह यादवपुर विश्वविद्यालय कहाँ है?’ ‘यादवपुर या जादवपुर?’ हम ने जानबूझ कर उन्हें छेड़ते हुए कहा. ‘अरे, बाल की खाल उतारने के बजाय हमारी उलझन सुलझाने का प्र

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मतदाताओं में ख़राबी है.

15 अप्रैल 2017
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मुकंदी लाल जी को हम ने लाख समझाया पर इस बार उन्होंने हमारी एक न सुनी. ‘इस बार हम आपकी एक न सुनेंगे. हर बार हम अपना मन पक्का करते हैं और हर बार आप हमारा विश्वास डगमगा देते हैं. इस बार हम अवश्य ही मुनिसिपलिटी का चुनाव लड़ेंगे. कोई पार्टी हमें टिकट दे या न दे, हमारा निर्णय न

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“अरविंद केजरीवाल जी

26 अप्रैल 2017
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दिल्ली में सत्ता पाने के समय से ‘आप’ दल के नेताओं का जैसा व्यवहार रहा है, उसे देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता था कि दिल्ली एमसीडी चुनावों में पार्टी की हार के लिए वह किसी न किसी को दोषी करार दे देंगे. संविधानिक संस्थाओं और परम्पराओं का सम्मान करने का चलन उनके दल में नहीं है ऐसा हम सब ने देखा ही है.

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एक बच्चे की हत्या

21 सितम्बर 2017
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कुछ दिन पहले गुरुग्राम के एक स्कूल में एक बच्चे की हत्या कर दी गई. इस कांड ने बच्चे के माता-पिता को तो आहत किया ही पर टीवी पर दिखाये गए दृश्यों को देख कर लगा कि कई अन्य माता-पिता भी आहत हुए हैं. वह सब अपने-अपने निरीह स्कूल जाते बच्चों को लेकर चिंतित हैं, भयभीत हैं. पर मु

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बहुत देर हो चुकी होगी

25 सितम्बर 2017
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नवरात्र के पहले दिन दिल्ली में कुछ युवकों ने अपने-अपने मोटर साइकलों पर छतरपुर मंदिर जाने का सोचा. एक जगह एक मोटर साइकिल को एक अंजान गाड़ी ने टक्कर मार दी. उस पर सवार तीनों लड़के घायल हो गए. एक लड़के को तो उस गाड़ी ने रौंद ही डाला और उसकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई. एक “सच्चे, सभ्य भारतीय” होने के कारण

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क्या यह आतंकवाद नहीं है?

28 सितम्बर 2017
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कोई पचासेक वर्षों से हम इस देश किसी न किसी तरह के आतंकवाद को झेल रहे हैं. आतंकवाद की कुछ घटनाएं तो इतनी भयावह थीं कि उन घटनाओं को हम शायद कभी भुला भी न पायें. इन्टरनेट पर बहुत खोज करने के बाद भी मैं आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों की कोई अधिकृत संख्या जान न पाया. विकिपी

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राजनीति और परिवारवाद

30 सितम्बर 2017
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अपनी पुस्तक ‘विटनेस टू एन इरअ’ (Witness to an Era: India 1920 to the Present Day) में फ्रैंक मोरेस (Frank Moraes) ने पंडित जवाहर लाल नेहरु की तुलना एक वट वृक्ष से की है. लेख क के अनुसार महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कई नेताओं को पनपने का अ

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एक रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़

2 अक्टूबर 2017
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पिछले दिनों मुंबई में एक रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में बाईस लोग मारे गए. ऐसी दुखद घटनाएँ इस देश में अकसर घटती रहती हैं. कभी किसी मंदिर में दर्शन करने आये श्रदालूओं में भगदड़ मच जाती है और कभी किसी मेले या किसी राजनेता की रैली में भाग लेने आये लोगों में. हर ऐसी घटना में बी

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सड़क हादसे और आर्थिक क्षति

7 अक्टूबर 2017
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नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में अप्राकृतिक दुर्घटनाओं के कारण 3,36,051 लोग मारे गए और 4,98,195 लोग घायल हुए. सड़क दुर्घटनाएं इन हादसों का एक मुख्य कारण हैं. इसीरिपोर्ट के अनुसार उस वर्ष 1,77,423 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए और 4,86,567 घायल हुए.यह एक बहुत ही डराने वाला आ

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कोई सुधार न होगा

10 अक्टूबर 2017
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पिछले रविवार के दिन एक विश्वविध्यालय के चार विध्यार्थी एक सड़क दुर्घटनामें मारे गए. दो अन्य युवक, जो उस गाड़ी में सवार थे, गंभीर अवस्था में हैं,अस्पताल में उनका ईलाज हो रहा है.उन सब लड़कों की औसत आयु बीस के आसपास है. यह एक दुखदायी घटना है. ध्यान देने वाली बात यह है कि सड़क दुर्घटनाओं में अधिकतर युवा लोग

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मर गया क्या?

14 अक्टूबर 2017
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‘वो देख, एक बाइक उल्ट गयी....’‘यह तो गया....’‘मर गया क्या....’‘लगता है....’‘नहीं, मरा नहीं हैं, घायल हुआहै....’‘ऐसे कोई बस को ओवर-टेक करता है....’‘गलती उसकी नहीं है. बस तो रुकी हुई थी. वह तोराईट साइड से ही आगे जा रहा था....’‘ड्राईवर ने बस को एकदम राईट की ओर मोड़ दिया था....’‘चले देखें....’‘ज़्यादा च

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सड़क दुर्घटनायें और हमारी बेपरवाही

10 दिसम्बर 2018
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में हर दिन चार सौ से अधिकलोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. निश्चय ही यह एक भयानक सच्चाई है. पर इसत्रासदी को लेकर हम सब जितने बेपरवाह हैं वह देख कर कभी-कभी आश्चर्य होता है; लगताहै कि सभ्य होने में अभी कई वर्ष और लगेंगे.अब जो आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जारी क

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क्या हम एक विक्षिप्त समाज बन गये हैं?

12 दिसम्बर 2018
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पाँच वर्ष से लेकर 29 वर्ष की आयु केबच्चों और युवा लोगों की मृत्यु का मुख्य कारण रोग या भुखमरी या मादक पदार्थों कीलत या साधारण दुर्घटनाएँ नहीं है. इन बच्चों और युवकों की मृत्यु का मुख्य कारण है सड़क दुर्घटनायें.सरकारी आंकड़ों पर अगर विश्वास क

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अलीपुर बम केस

17 दिसम्बर 2018
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श्री अरविन्द अलीपुर बम केस में एक आरोपी थे. अपनीपुस्तक, ‘टेल्स ऑफ़ प्रिज़न लाइफ’, में उन्होंने इस मुक़दमे का एक संक्षिप्त वृत्तांतलिखा है. यह वृत्तांत लिखते समय उन्होंने ब्रिटिश कानून प्रणाली पर एक महत्वपूर्णटिपण्णी की है.उन्होंने लिखा है कि इस कानून प्रणाली का असली उद्देश्ययह नहीं है की वादी-प्रतिवादि

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लघुकथा-एक

19 दिसम्बर 2018
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तीव्र गति से चलती स्कूल-वैन चौराहे पर पहुंची. बत्तीलाल थी. वैन को रुक जाना चाहिये था. परन्तु सदा की भांति चालक ने लाल बत्ती कीअवहेलना की और उसी रफ्तार से वैन चलाता रहा.दूसरी ओर से सही दिशा में चलता एक दुपहिया वाहन बीच मेंआ गया. वैन उससे टकरा कर आगे ट्राफिक सिग्नल से जा टकराई और पलट गई.देखते-देखते कई

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लघुकथा-दो

21 दिसम्बर 2018
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उस युवक का इतना ही दोष था कि उसने उन दो बदमाशों को एकमहिला के साथ छेड़छाड़ करने से रोका था. वह उस महिला को जानता तक नहीं था, बस यूँही,किसी उत्तेजनावश, वह बदमाशों से उलझ पड़ा था.भरे बाज़ार में उन बदमाशों ने उस युवक पर हमला कर दियाथा. एक बदमाश के हाथ में बड़ा सा चाक़ू था, दूसरे के हाथ में लोहे की छड़.युवक ने

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लघुकथा-तीन

22 दिसम्बर 2018
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‘बेटा, थोड़ा तेज़ चला. आगे क्रासिंग पर बत्ती अभी हरी है,रैड हो गयी तो दो-तीन मिनट यहीं लगजायेंगे.’‘मम्मी, मेरे पास लाइसेंस भी नहीं है. कुछ गड़बड़ हो गयी.....’‘अरे तुम समझते नहीं हो, हमारी किट्टी में रूल है की जोभी पाँच मिनट लेट होगा उसे गिफ्ट नहीं मिलेगा.’ ‘तो पहले निकलना था न, सजने-सवरने में तो.....

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लघुकथा-चार

26 दिसम्बर 2018
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लड़की ने कई बार माँ से दबी आवाज़ में उस लड़के की शिकायतकी थी पर माँ ने लड़की की बात की ओर ध्यान ही न दिया था. देती भी क्यों? जिस लड़केकी वह शिकायत कर रही थी वह उसके अपने बड़े भाई का सुपुत्र थे, चार बहनों का इकलौता लाड़लाभाई. पर लड़की के लिए स्थिति असहनीय हो रही थी. उसकी अंतरात्माविद्रोह कर रही थी. अंततः उस

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लघुकथा- पाँच

28 दिसम्बर 2018
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लघुकथा- चारनेताजी अपने चिर-परिचित गंभीर शैली में लोगों को संबोधितकर रहे थे, ‘सरकार ने जो यहाँ बाँध बनाने का निर्णय लिया है वह यहाँ के किसानों केविरुद्ध के साजिश है. बाँध बना कर नदी का पानी ऊपर रोक लिया जायेगा. फिर उस पानीसे बिजली बनाई जायेगी और बिजली बनाने के बाद वह प

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लघुकथा-छह

4 जनवरी 2019
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‘बच्चे, उस बाड़ से दूर रहना, उसे छूना नहीं. उसमें बिजलीचल रही है.’‘लेकिन यह बाड़ यहाँ क्यों है? इसमें बिजली क्यों चल रहीहै.’‘यह सब हमारी सुरक्षा के लिये है.’‘हमारी सुरक्षा? किस से?’वृद्ध एकदम कोई उत्तर ने दे पाए. कुछ सोच कर बोले,‘बच्चे, यह बात तो मैं भी समझ नहीं पाया.’‘वह हमें मूर्ख बना रहे हैं.’‘शायद

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लघुकथा-सात

12 जनवरी 2019
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1 जनवरी 20..आतंकवादियों ने सेना की एक बस पर अचानक हमला कर दिया. बसमें एक भी सैनिक नहीं था. बस में स्कूल के कुछ बच्चे पिकनिक से लौट रहे थे. एकबच्चा मारा गया, पाँच घायल हुए.सारा नगर आक्रोश और उत्तेजना से उबल पड़ा. लोग सड़कों परउतर आये; पहले एक नगर में, फिर कई नगरों में. हर कोई सरकार को कोस रहा था. हरसमा

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मृत्युदंड

17 जनवरी 2019
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वह एक निर्मम हत्या करने का दोषी था. पुलिस ने उसकेविरुद्ध पक्के सबूत भी इकट्ठे कर लिए थे. पहले दिन ही जज साहब को इस बात का आभास हो गया था किअपराधी को मृत्यदंड देने के अतिरिक्त उनके पास कोई दूसरा विकल्प न होगा. लेकिन जिसदिन उन्हें दंड की घोषणा करनी थी वह थोड़ा विचलित हो गये थे. उन्होंने आज तक किसीअपराध

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एक लघु कथा

20 जनवरी 2019
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‘यह तीसरी लड़की है जो तुमनेपैदाकी है. इस बार तो कम से कम एक लड़का जन्मती,’ उसकीआवाज़ बेहद सख्त थी.एक कठोर, गंदीअंगुली शिशु को टटोलने लगी; यहाँ, वहां. भय की नन्ही तरंग शिशु के नन्हें हृदय में उठी और उसेआतंकित करती हुई कहीं भीतर ही समा गई. अपने-आपसे संतुष्ट अंगुली हंस दी. सब जानते हुए भी, अपने मेंसिकुड़

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प्रतिशोध-- एक कहानी

23 जनवरी 2019
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होटल में प्रवेश करते ही दिनेश ने अमर कोदेख लिया. उनकी नज़रें मिलीं पर दोनों ने ऐसा व्यवहार किया कि जैसे वह एक दूसरे कोपहचानते नहीं थे. परन्तु अधिक देर तक वह एक दूसरे की नकार नहीं पाये.‘बहुत समय हो गया.’‘हाँ, दस साल, पाँच महीने और बाईस दिन.’‘तुम ने तो दिन भी गिन रखे हैं?’‘क्यों? तुम ने नहीं गिन रखे?’‘

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निमंत्रण

25 जनवरी 2019
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‘क्या तुम्हें पूरा विश्वासहै कि यह निमंत्रण इस ग्रह के निवासियों के लिये है? मुझे तो लगता है कि किसी भीग्रह के वासी पृथ्वी-वासियों को अपने यहाँ नहीं बुलाना चाहेंगे!’‘क्यों? क्या खराबी है इनजीवों में?’‘तुम्हें पूछना चाहिए कि क्याखराबी नहीं है इनमें!’एलियंस का अन्तरिक्ष-यान अभीभी पृथ्वी से कई लाख मील

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लघुकथा

26 जनवरी 2019
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लघुकथाजब उन्होंने उसकी पहलीअजन्मी बेटी की हत्या करनी चाही तो उसने हल्का सा विरोध किया था. वैसे तो वह स्वयंभी अभी माँ न बनना चाहती थी. उसकी आयु ही कितनी थी-दो माह बाद वह बीस की होने वालीथी. उन्होंने उसे समझाने का नाटक किया था और वह तुरंत समझ गयी थी. लेकिन उसके विरोध ने उन्हेंक्रोधित कर दिया था. किसी

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आँगन का पेड़

3 फरवरी 2019
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घरके आँगन में लगा यह पेड़ मुझ से भी पुराना है. मेरेदादा जी ने जब यह घर बनवाया था, तभी उन्होंने इसे यहाँ आँगन मेंलगाया था. मेरा तो इससे जन्म का ही साथ है. यहमेरा एक अभिन्न मित्र-सारहा है. इसकीछाँव में मैं खेला हूँ, सुस्तायाहू, सोया हूँ. इसकी संगत में मैंने जीवन की ऊंच-नीचदेखी है. मेरे हर सुख-दुःखका स

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लघुकथा

7 फरवरी 2019
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लघुकथासारादिन तो वह अपने-आप को किसी न किसी बात में व्यस्त रखता था; पुराने टूटे हुए खिलौनोंमें, पेंसिल के छोटे से टुकड़े में, एक मैले से आधे कंचे में या एक फटी हुई फुटबालमें. लेकिन शाम होते वह अधीर हो जाता था. लगभगहर दिन सूर्यास्त के बाद वह छत पार आ जाता था और घर से थोड़ी दूर आती-जाती रेलगाड़ियोंको देखत

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मतदातों से एक निवेदन-अगली सरकार मज़बूत सरकार

12 फरवरी 2019
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सबसे पहले यह स्पष्ट करना अनिवार्य होगा कि यह अपीलमज़बूत सरकार चुनने के लिये है, मोदी सरकार चुनने के लिये नहीं. अगर आपको लगता हैकि कांग्रेस एक मज़बूत सरकार दे सकती है तो उसे भरपूर बहुमत देकर जितायें. और अगरआप समझते हैं कि बीएसपी, या टीएम्सी या एएपी या कोई अन्य दल या दलों का समूह मज़बूतसरकार दे सकता है त

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मतदातों से एक निवेदन-अगली सरकार मज़बूत सरकार-२

14 फरवरी 2019
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लेख के पहले भाग में मैंने यह तर्क दिया था कि देश कोसिर्फ एक मज़बूत सरकार ही सुरक्षित रख सकती है. देश को तोड़ने के प्रयास में कई शक्तियाँसक्रिय हैं, इसलिए चौकस रहना हमारे लिए एक मजबूरी ही है.आम आदमी को यह बात समझनी होगी कि शक्तिशाली लोग, धनी लोगकहीं भी, कभी भी जाकर बस सकते हैं. पर ऐसा विकल्प आम आदमी के

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छतिसिंहपोरा नरसंहार

21 मार्च 2019
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क्या कल आपने किसी मीडिया चैनल पर या किसी समाचार पत्रमें छतिसिंहपोरा नरसंहार के विषय में एकशब्द भी सुना या पढ़ा? क्या किसी ह्यूमन-राइट्स वाले को इस नरसंहार की बात करतेसुना? वह लोग जो आज़ादी के नारे लगाते है या वह नेता जो उनकेसमर्थन में खड़े हो जाते हैं या वह जो आये दिन नक्सालियों के लिए आवाज़ उठाते हैं

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जागो मतदाता, जागो

23 मार्च 2019
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दो एक वर्षों से कई राजनेता सेना के जवानों का अपमानकरने की होड़ में लगे हैं. इन में से एक भी राजनेता ऐसा नहीं है जो सियाचिन की ठंडया रेगिस्तान की चिलचिलाती धूप में आधा घंटा भी रह पाए. जिन कठिनायों का सामनासीमा पर तैनात एक जवान करता है उसका इन्हें रत्ती भर भी अहसास नहीं है. और आश्चर्य की बात तो यह कि इ

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सत्यमेव....... (तीन अंकों में समाप्य लंबी कहानी का पहला अंक)

28 दिसम्बर 2021
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<p> “आज शाम को क्या कर रहे हो?” </p> <p>“कुछ ख़ास नहीं, सर.” </p> <p>“तो आज की शाम हमा

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सत्यमेव....... (तीन अंकों में समाप्य लंबी कहानी का दूसरा अंक)

29 दिसम्बर 2021
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<p> वह स्तब्ध हो गया. वह तय न कर पाया कि रैना<br> साहब सत्य कह रहे थे या व्यंग्य कर रहे थे.&nbs

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सत्यमेव....... (तीन अंकों में समाप्य लंबी कहानी का अंतिम अंक)

30 दिसम्बर 2021
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<p> उसे ध्यान आया कि जब सहानी उससे बात कर रहा था उसे फोन पर किसी के हँसने की<br> आवाज़ भी

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ट्रेन

4 जनवरी 2022
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सारा दिन वह अपने-आप को किसी न किसी बात में व्यस्त रखता था; पुराने टूटे हुए खिलौनों में, पेंसिल के छोटे से टुकड़े में, एक मैले से आधे कंचे में या एक फटी हुई फुटबाल में. लेकिन शाम होते वह अधीर हो जाता था

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नए साहब का आदेश

5 जनवरी 2022
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 नए साहब नौ बजे ही कार्यालय पहुँच गये. उनका पहला दिन था और वह किसी को सूचना दिए बिना ही आ गये थे. लेकिन नौ बजे तक तो सफाई कर्मचारी भी न आते थे. निर्मल सिंह ही अगर नौ बजे पहुँच जाता तो वही बड़ी बात थ

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अपना भी नाम होगा (बच्चों के लिए कहानी)

16 जनवरी 2022
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 लंबू और छोटू चोर थे. परन्तु आजतक उन्होंने छोटी-मोटी चोरियाँ ही की थीं. इस कारण अन्य चोर उनका मज़ाक उड़ाते थे.  एक दिन छोटू ने लंबू से कहा, “भाई, नाम और दाम कमाने का सुनहरा अवसर मिल रहा है.”  “कैसे?

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सहजो वाणी

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 हमारे देश में मीरा बाई से लगभग सभी लोग परिचित हैं. उनके कुछ भजनों को तो शिक्षा संस्थानों ने पाठ्य क्रम में भी स्थान दिया है. परन्तु राजपुताना की और संत थीं जिनके विषय बहुत कम लोग जानते हैं. अधिकाँश

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लालची बंदर (बच्चों के लिए कहानी)

26 जनवरी 2022
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 एक नदी के किनारे एक मंदिर था. मंदिर के निकट ही एक विशाल पेड़ थे जिस पर बंदरों की एक टोली रहती थी. मोती उस टोली का सरदार था.  हर मंगलवार के दिन मंदिर में खूब भीड़ होती थी. उस दिन पास के गाँव के सभी ल

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वाजिद वाणी

29 जनवरी 2022
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  वाजिद के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. शायद वह राजपुताना के रहने वाले एक गरीब पठान थे. ऐसी मान्यता है कि वाजिद एक बार शिकार करने गये. एक हिरणी का पीछा कर रहे थे. हिरणी अचानक उछली. पल भर के

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अकेलो जाय रे

26 फरवरी 2022
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 अकेलो जाय रे  वाजिद के कुछ अमूल्य वचन फिर सांझा कर रहा हूँ.  टेढ़ी पगड़ी बाँध झरोखा झांकते  तांता तुरग पिलाण चहूँटे डाकते  लारे चढ़ती फौज नगारे बाजते  वाजिद ये नर गए विलाय सिंह ज्यूँ गाजते.  दो-दो

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