पिछले दिनों मुंबई में एक रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में बाईस लोग मारे गए.
ऐसी दुखद घटनाएँ इस देश में अकसर घटती रहती हैं. कभी किसी मंदिर में दर्शन करने आये श्रदालूओं में भगदड़ मच जाती है और कभी किसी मेले या किसी राजनेता की रैली में भाग लेने आये लोगों में.
हर ऐसी घटना में बीसियों लोग मारे जाते हैं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2016 के बीच देश के अलग-अलग भागों में भगदड़ मचने की 27 घटनाएं घटीं जिनमें 968 लोगों की मृत्यु हुई. अर्थात औसतन हर वर्ष लगभग तीन घटनाएं घटीं और हर घटना में लगभग 35 लोग मारे गए.
हर बार सरकार (चाहे है वह कोई भी हो) चिंता व्यक्त करती है, जांच बैठाती है, मुआवज़े की घोषणा करती है. विपक्ष सरकार की आलोचना करता है, मंत्री के त्यागपत्र की मांग करता है. और बात वहीँ खत्म हो जाती.
इस बार भी ऐसा हुआ है. मीडिया में इस घटना को लेकर खूब चर्चा हुई है, विपक्ष ने अपना दाय्तिव निभाते हुए सरकार पार कड़े आरोप लगाएं हैं, सरकार ने मुआवज़े की घोषणा कर अपना कर्तव्य निभाया है.
पर हम सब, जो इन घटनाओं के चपेट में नहीं आते, तटस्थ से बैठे रहते हैं क्योंकि कोई भी ऐसी दुर्घटना अब हमें झिंझोड़ती नहीं है.
हमारी इस तटस्थता का एक कारण है. अपनी और औरों की सुरक्षा को लेकर हम सब अधिक चिंतित नहीं होते, सुरक्षा को लेकर हमारी बेपरवाही विस्मयकारी ही है.
अगर आपको कभी किसी रेलवे स्टेशन पर रुकने का अवसर मिला है तो आपने लोगों को अकसर रेलवे ट्रैक पार करते हुए देखा होगा. मैंने तो कई बार लोगों को बीवी और बच्चों सहित रेल की पटरी पार करते देखा है. एक परिवार के साथ एक बूढ़ी महिला भी थी. आश्चर्य की बात नहीं कि हर दिन कई लोग रेल पटरियां पार करते हुए मारे जाते हैं.
रेलवे फाटक पर पाँच-दस मिनट रुकने के बजाये लोग अकसर फाटक के नीचे से अपने स्कूटर और बाइक निकाल ले जाते हैं. मुझे आज तक एक घटना नहीं भूलती. कई वर्ष हुए दिल्ली में शक्तिनगर के पास दो लड़के, जिन की आयु बीस के आसपास थी, अपनी बाइक फाटक के नीचे से निकाल रहे थे. उनकी बाइक रेल की पटरी पर रुक गई. जब तक वह उसे खींच कर पार ले जाते दोनों रेलगाड़ी के नीचे आ गए और कुचले गए. ऐसा हर दिन कहीं न कहीं होता ही रहता है.
हमारी अपनी सुरक्षा को लेकर लापरवाही की एक और मिसाल. जहां हमारा मन करता है वहीँ से हम सड़क पार कर लेते है. इस कारण हर दिन कई पैदल चलने वाले दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं.
मेरा अपना अनुभव भी बहुत डराने वाला है. एक सुबह में कार से ऑफिस जा रहा था. अचानक आईएनए मार्किट के पास एक व्यक्ति रोड-डिवाइडर पर लगी रेलिंग (जो शायद चार फुट ऊंची होगी) के ऊपर से कूद कर सीधा मेरी कार के सामने आ पहुंचा. मैंने अपनी कार कैसे रोकी यह मैं ही जानता हूँ. वह दाँत दिखाता हुआ सड़क पार निकल गया.
सड़कों पर हर दिन चार सौ से अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं मारे जाते हैं. इनमें से 77% दुर्घटनाएं वाहन चालकों की गलती के कारण होती हैं. हम सब अगर सतर्कता से अपना-अपना वाहन चलायें तो हर दिन लगभग तीन सौ लोगों को जीवनदान मिल सकता है.
पर किसे परवाह है औरों की सुरक्षा की? इस बेपरवाही के कारण सड़क दुर्घटनाओं में मरने और घायल होने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही और न ही निकट भविष्य में आएगी.
अगर हम सब अपनी और औरों की सुरक्षा की प्रति थोडा सचेत हो जाएँ और थोड़ा संयम का पालन करें तो कितने ही लोग काल का ग्रास बनने से बच जाएँ. और ऐसा करने में हमें कोई बोझ भी नहीं उठाना.
पर सत्य तो यह है कि इस देश में हम सब अपने जीवन का बहुत ही तुच्छ मूल्य लगाते हैं. ऐसी स्तिथि में हम कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि सरकारें हमारे जीवन को कोई अधिक महत्व देंगी.
हमें यह भी समझना होगा कि जिस सरकार की हम आलोचना करते हैं उसका सारा तन्त्र भी तो हम-आप ही चलाते है. कितने ऐसे कर्मचारी हैं जो पूरी निष्ठा और लग्न से अपनी जिम्मेवारी निभाते हैं. मैंने तो ऐसे लोग भी देखें हैं जिन्होंने वर्षों तक ऑफिस में कलम को हाथ नहीं लगाया. हम इस बात को कितना भी नकारें पर हम स्वयं ही मुंबई जैसी दुर्घटनाओं का कारण हैं.
जब तक हम सब दूसरों के प्रति उदासीन व तटस्थ रहेंगे ऐसी दुर्घटनाएं घटती रहेंगे.