😢 हां जी हां ..😢
ढलता हुआ सूरज हूँ मैं
यूं तो वक्त था मेरे ढलने में
अभी काफी देर उजाला
फैला सकता था ज़माने में,
लेकिन कुछ मेरे ताप से बेचैन
और कुछ की आशिकी
मेरे ढलते हुए सौंदर्य में.
सो मैं ढलने को मजबूर
अपनी चमक से दूर
एक मनोहारी सौंदर्य से भरपूर
ढलने की तैयारी कर रहा हूँ,
मेरे चाहने वालों अरे मतवालों
मेरी चमक में साथ देने वालों
आज ढल कर भी तुम्हें अपने
सौंदर्य से अभिभूत कर रहा हूँ.
हां जी हां....
ढलता हुआ सूरज हूं मैं..
- नरेंद्र जानी (भिलाई नगर)
दिनांक - 4.6.2016 शनिवार.
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