आतंकवाद का दंश
आज हर कोई झेल रहा है,
हलाक होते बेकसूरों के बीच
कूटनीतिक खेल हो रहा है.
फिल्म शक्ति का एक डायलौग
याद आता है - पुलिस अगर अपनी
पर उतर आये तो कोई अपराधी
बच नहीं सकता.
आज ऐसी ही आवश्यकता है
अगर सारे देश एकजुट हो जाए
तो आतंकवाद पनप नहीं सकता.
आज चित्कारती मानवता का
एक ही ज्वलंत सवाल है,
कब चश्मे बदलोगे कब देखोगे
मानवता के अस्तित्व पर कितने
पुराने और कितने ताजे घाव है.
ये आतंकवाद एक अभिशाप है,
इसे पालना पोसना और
झेलना महाभयंकर पाप है.
इसका अंत करने
विश्व एकता जरूरी है,
जो दोषी उसे सबक सिखाओ
ये वक्त की मजबूरी है.
उखाड़ फेंको उन दरिन्दों
को जिनकी मानवता से दूरी है,
विश्व शान्ति और विकास के लिए,
कड़े कदम जरूरी है.
कडे कदम जरूरी है.
-- नरेंद्र जानी (भिलाई नगर)
14.11.2015 शनिवार.