सन्दर्भ कुछ पुराना है जब दिल्ली में
हजारों लोगों के सामने पुलिस और मिडिया
के सामने एक किसान ने आत्महत्या की थी .
उस वक्त मेरे दिल ने कुछ इस तरह अपनी
भावनाओं को कलमबद्ध किया ......
पुलिस हैरान किसान परेशान,
तमाशों से बढ रही है राजनीति की शान .
ये देश कभी कृषि प्रधान होता था ,
आज की राजनीति मे किसान आत्महत्या प्रधान हो गया .
जाने इस देश के नेताओं को क्या हो गया ,
कृषि प्रधान देश मे कृषक ही कहीं खो गया .
अब आमने सामने प्रशाशन और सरकार है ,
मीडिया का मजा है टी आर पी की बहार है.
हर मुद्दे पर टी वी मे बहस बैठा दी जाती है ,
कुछ बुद्धिजीवीयो को बैठा कर महफिल सजाई जाती है.
इनमे कुछ अनुभवी पत्रकार और कुछ प्रवक्ता होते है,
हमने काफी बहस देखी सुनी और जाना की प्रवक्ता कैसे कैसे होते है .
प्रवक्ताओं के प्रकार कैसे कैसे होते है,
कुछ भौकते , कुछ खिसियाते , कुछ मजे लेते होते है.
मीडिया भी तब तक मचलता है ,
जब तक किसी नये मुद्दे का पता नही चलता है .
बस यही देश, मीडिया और हम जनता का हाल है,
कर्मयोगी ईमानदार तो हर हाल मे बदहाल है ..
किसान आत्महत्या करता है और समाचारों मे रहता है,
मजदूर बेचारा तो व्यवस्था की मार चुपचाप सहता है.
चुपचाप सहता है...
मेरा भारत महान कहाँ खो गई इसकी सुनहरी पहचान...
........ नरेन्द्र जानी (भिलाई नगर) ..