कितना दुखद है कि शोशल मिडिया के द्वारा किसी आपत्तीजनक संदेशों को फैलाने से रोकने के लिये हमारी पुलिस कमर कस के तैयार बैठी है, किन्तु कतिपय लोगों द्वारा धर्म, सम्प्रदाय, जाति, आदि पर १०००-५००० लोगों के बीच दिये गये आपत्तिजनक बयानों को हमारा मीडिया पत्रकारिता कहकर पूरे सवा सौ करोड लोगों को बांटता है ़ क्या ये अनुचित नहीं ? क्या इसकी रोकथाम आवश्यक नहीं?? क्या भारतीय पत्रकारिता हमारे समाज को नकारात्मक नजरिया नहीं परोस रही ??? क्या स्वस्थ और विकासशील समाज के लिये पत्रकारिता का यह रूप घातक नहीं ?? शायद हमारे प्रशाशकों का ध्यान इस ओर है ही नहीं...