आज फिर तेरी कहानी
याद आ गयी ,
अपनी वो गुजरी हुई
'यादें ' याद आ गई .
अरे मेरे बचपन
तू कहाँ खो गया ,
कैसे इतनी जल्दी
मैं बड़ा हो गया .
वो शारीरिक चपलता
कहाँ खो गयी ?
वो मासूम चंचलता
कहाँ खो गई??
आज चारों तरफ
बुद्धिजीवियों का मेला है ,
फिर भी अभिलाषी मन
कितना अकेला है .
यूँ ही कभी कभी
अपनी याद दिला जा ,
ऐ मेरे प्यारे बचपन
कभी कभी ही सही
पर शिद्दत से मेरे
अंदर समा जा .
तेरी यादें ही मेरी
जीवन रेखा है .
मैंने बड़े होने का
संघर्ष देखा है .
कितनी भोली कितनी मासूम
कितनी प्यारी थी वो जिंदगी ,
ना शरीर में कोई विकार
ना विचारों में गन्दगी .
आज फिर कुछ पल
तुझे कर दूँ अर्पण ,
क्योंकि तू ही तो है
सही जीवन का दर्पण .
ऐ मेरे बचपन ,ऐ मेरे बचपन
आज फिर तेरी कहानी याद आ गयी .
- नरेंद्र जानी (भिलाई नगर)
तारीख - १४.७.२०१५