सागर के पापा गुस्से में: सागर तुम यहाँ क्या कर रहे हो?
सागर: पापा, वो लंच कर रहा हूँ।
प्रेम: वो मैंने ही जोर दिया था।
सागर के पापा: प्रेम, तुमसे बात पूछी मैंने, और सागर, तुम्हें पता है मुझे ये सब पसंद नहीं है।
सागर: सॉरी डैड।
इतना कहकर सागर वहाँ से चला जाता है। सागर के पापा सागर का पीछा करते हुए सागर के केबिन में चले जाते हैं। यहाँ प्रेम मिली को देख रहा होता है, तब मिली कहती है: मैंने पहले ही कहा था उसको मत बुलाओ, अब देख लो।
प्रेम: ये गलत बात है।
और वहाँ सागर के केबिन में सागर के पापा सागर पर चिल्ला रहे थे।
सागर के पापा: तुम्हें कितनी बार समझाऊँ कि तुम इस शहर के जाने-माने बिजनेस मैन के बेटे हो, तुम ऐसे ही सबके साथ उठना-बैठना नहीं कर सकते।
सागर: पापा, वो मेरे दोस्त हैं।
सागर के पापा: दोस्ती अपने बराबर के लोगों से करो।
सागर: तो मिली के पापा आपके भी दोस्त हैं।
सागर के पापा: वो मेरा दोस्त तब था जब वो और मैं एक साथ नौकरी करते थे। आज भी वो मेरा दोस्त है, लेकिन ये बात किसी को नहीं पता कि वो मेरा दोस्त है।
सागर: अगर वो आपके दोस्त हैं तो इसमें छुपाने वाली कौन सी बात है?
सागर के पापा: अब मुझसे बहस मत करो तुम।
सागर: लेकिन आप गलत हैं। आप अपने रुतबे के लिए और लोगों को अपने हिसाब से नहीं चला सकते।
देखते-देखते बात बढ़ने लगी। प्रेम को सागर की चिंता सताने लगी, इसलिए प्रेम सागर के केबिन की तरफ जाने लगा। लेकिन मिली उसको रोकने की कोशिश करती है और कहती है: तुम अभी वहाँ मत जाओ, अगर तुम वहाँ गए तो तुम शायद अपनी नौकरी खो दोगे।
प्रेम: मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि सागर मेरी वजह से बड़े सर की बात सुन रहा है, तो मैं सागर की मदद जरूर करूंगा।
इतना कहकर प्रेम सागर के केबिन की तरफ जाता है। केबिन के अंदर अभी भी सागर और उसके पापा की बहस चल रही थी।
सागर के पापा: तुम्हें क्या लगता है, मैंने इतनी मेहनत से इतना बड़ा नाम कमाया और तुम इसको मिट्टी में मिलाना चाहते हो?
सागर: मैं आपकी मेहनत की कद्र करता हूँ, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आपके सामने दूसरे इंसान की कोई कीमत नहीं।
सागर के पापा: तुम सब तमीज भूल चुके हो सागर। तुम अब इतने बड़े हो गए हो कि मुझसे ज़ुबान लड़ाने लगे हो।
प्रेम ने केबिन का दरवाजा खोला और बोला: ज़ुबान लड़ाने जैसी कोई बात है ही नहीं, सागर सर सिर्फ अपनी बात आपके सामने रख रहे हैं।
सागर: तुम यहाँ क्यों आए हो? तुम जाओ अपना काम करो।
सागर के पापा प्रेम से: सागर ने तुम सबको सर पर चढ़ा रखा है, इसलिए तुम्हें पता ही नहीं है कि बॉस क्या होता है?
प्रेम: मेरी नजर में सागर सर से अच्छा बॉस कोई भी नहीं हो सकता, आप भी नहीं।
सागर के पापा: इतना यकीन है अपने सागर सर पर तो साबित करके दिखाओ।
प्रेम: कैसे?
सागर के पापा: नासिक में एक जरूरी मीटिंग है दो दिन बाद, जो काफी समय से विवाद में चल रही है। उस मीटिंग का फैसला हमारे हक में आना चाहिए।
सागर: पापा, ये गलत है। आप अच्छे से जानते हैं इस मीटिंग के बारे में न मैं ज्यादा कुछ जानता हूँ और न ऑफिस का कोई इंसान। और आप खुद इस मीटिंग के लिए ही विदेश से जल्दी आए हैं।
सागर के पापा: तुम्हें भी पता चले कि कीमत लोगों की होती है या उनके रुतबे की। अब देखता हूँ मेरे न होने पर ये मीटिंग कैसे तुम्हारे पक्ष में होती है।
प्रेम: सर, ये मीटिंग हमारी कंपनी के भविष्य के लिए जरूरी साबित हो सकती है, तो आप खतरा क्यों मोल ले रहे हैं?
सागर के पापा: अब तो तुम्हारे सागर बॉस के हाथ में है इस कंपनी का भविष्य। अब तुम सब और तुम्हारे बॉस मिस्टर सागर इस मीटिंग से कंपनी बचा लो। या प्रेम, तुम इस नौकरी को।
सागर: पापा, ये कैसी शर्त है?
प्रेम: ठीक है सर, मुझे मंजूर है। लेकिन अगर हम जीते तो?
सागर के पापा: तो?
प्रेम: तो आपको भी हमारी एक शर्त माननी होगी।
सागर के पापा: ठीक है।
इतना कहकर सागर के पापा केबिन से बाहर चले जाते हैं।
सागर चिल्लाकर बोला: प्रेम, तुमको यहाँ आने की क्या जरूरत थी।
प्रेम भी चिल्लाकर बोला: तुमको क्या लगता है कि तुम अकेले सब संभाल लोगे।
सागर: तुम मुझ पर चिल्ला रहे हो।
प्रेम: हाँ।
सागर: एक काम करो, तुम अभी यहाँ से जाओ।
प्रेम: ठीक है, जाता हूँ। लेकिन याद दिला दूं, मैंने भी अभी खाना नहीं खाया।
सागर: क्यों आए थे तुम मुझे लंच पर बुलाने के लिए।
प्रेम: भलाई का जमाना ही नहीं है।
इतना कहकर प्रेम गुस्से में केबिन से चला जाता है। प्रेम अपनी जगह पर वापस आकर खाने का टिफिन बंद करने लगता है, मिली भी अपना टिफिन बिना खाए ही बंद करने लगती है। और फिर दोनों बिना कुछ बोले फिर से अपने काम में लग जाते हैं।
थोड़ी देर बाद मिली किसी काम से सागर के केबिन में जाती है।
सागर मिली को देखकर बोलता है: हाँ, बताओ क्या काम है?
मिली: एक डॉक्यूमेंट पर तुम्हारे साइन करवाने थे।
सागर: असली वजह बताओ क्यों आई हो?
मिली: बड़े सर से प्रेम की ऐसी क्या बात हुई कि उसने खाना भी नहीं खाया और न वो किसी से बोल रहा है।
सागर ने मिली को सारी बात बताई। सागर की सारी बात सुनने के बाद मिली ने सागर से कहा: तुमने प्रेम पर चिल्लाना नहीं चाहिए था। उसने तो तुम्हारा ही साथ दिया था, वो भी तब जब वो अगर चाहता तो तुम्हारे केबिन में आता ही नहीं।
सागर: लेकिन उसकी वजह से ही ऑफिस की इतनी जरूरी मीटिंग की जिम्मेदारी मुझे और उसको दे दी।
मिली: प्रेम ने अपनी नौकरी खतरे में डाल दी, वो भी सिर्फ तुम्हारे लिए, और तुम उसको गलत बता रहे हो।
सागर: मिली, ये लो डॉक्यूमेंट मैंने साइन कर दिए हैं।
मिली: ठीक है। लेकिन तुम एक बार सोचो कि कहीं तुम कुछ गलत तो नहीं कर गए। मेरे हिसाब से प्रेम की कोई गलती नहीं थी, उसकी जगह मैं होती तो शायद मैं भी यही करती। इतना कहकर मिली डॉक्यूमेंट लेकर केबिन से चली जाती है। फिर सागर मिली की कही बात के बारे में सोचने लगता है। जब ऑफिस का समय पूरा होने वाला होता है, मिली प्रेम से घर जाने के बारे में पूछती है, "प्रेम, तुम घर कब जाओगे?"
प्रेम: मुझे अभी कुछ काम निपटाना है, उसके बाद जाऊंगा।
मिली प्रेम से: ठीक है, बाय। (कहकर चली जाती है।) ऑफिस के सारे लोग एक-एक करके घर चले जाते हैं। प्रेम अपना काम करता रहता है। सागर अपने केबिन से निकलकर देखता है कि प्रेम अभी भी ऑफिस में है। वह प्रेम के पास आकर पूछता है: तुम अभी तक घर नहीं गए?
प्रेम: सर, अभी कुछ काम बाकी है। उसको करने के बाद जाऊंगा।
सागर: क्या बात है? तुम इतनी देर तक काम करोगे? तुम्हारी तबियत तो ठीक है? और एक बात, अब तो ऑफिस में कोई नहीं है, तो अब सर क्यों बोल रहे हो?
प्रेम: आप सर हो, तो सर ही तो बोलूंगा आपको।
सागर: अच्छा, मतलब तुम उस बात से अभी तक गुस्सा हो।
प्रेम: नहीं सर, मैं आपसे गुस्सा क्यों होऊंगा? आपका जब मन करे, चिल्ला सकते हो, जब मन करे, दोस्त बना सकते हो, क्योंकि हो तो आखिर आप बॉस ही।
सागर: तुम इतना नाराज क्यों हो रहे हो? प्रेम, उस समय मैं गुस्से में था, इसलिए तुम पर चिल्ला दिया था।
प्रेम: मैंने आपके पापा की शर्त इसलिए मान ली थी क्योंकि मुझे आप पर भरोसा है कि आप इस कंपनी के लिए कुछ भी कर सकते हो। लेकिन आपने ही गलत बता दिया।
सागर: ये सब बात रहने दो। ये बताओ, तुमने खाना खाया?
प्रेम: नहीं।
सागर: तुमको जितना गुस्सा करना है, कर लेना। पहले कुछ खाने के लिए मंगवा लेता हूं। उसके बाद दोनों मिलकर काम खत्म करेंगे और फिर घर चलेंगे।
प्रेम: मुझे अभी भूख नहीं है।
सागर: मैं खाना मंगवा रहा हूं। जब तक खाना आएगा, तब तक तो मैं तुम्हें मना लूंगा।
प्रेम इठलाता हुआ: जी सर जी.......
सागर खाना ऑर्डर कर देता है और प्रेम की मदद करने लगता है।
सागर: तुम मुझे लंच करने के लिए लेने क्यों आए?
प्रेम: मैं नहीं भी आता, तब भी तुम आ ही रहे थे।
सागर: मैं शायद वहां नहीं आता, लेकिन तुमने आकर मुझे बुला लिया तो मैं तुम्हें मना नहीं कर पाया।
प्रेम: मना नहीं कर पाया मतलब क्या?
सागर: अरे, मैं खुद तुम्हारे साथ खाना खाना चाहता हूं, यहां तक कि तुम्हारे साथ ही समय बिताना चाहता हूं।
प्रेम: सागर, देखो, ये थोड़ा ज्यादा हो रहा है।
सागर: अच्छा, तो तुम बताओ, तुम क्यों बुलाने आए थे मुझे?
प्रेम: वो तो मिली ने कहा था कि सागर को भी लंच के लिए बुला लो।
सागर: झूठ मत बोलो, मिली को पता है कि मैं पापा के सामने ऑफिस में किसी के साथ लंच नहीं करता। तो तुम बस अब सच बताओ।
प्रेम: ठीक है, तो सुनो, मुझे भी तुम्हारे साथ समय बिताना अच्छा लग रहा है। पता नहीं क्यों, लेकिन लग रहा है और इसलिए मैं तुम्हें बुलाने चला आया था।
सागर: देखा, अब सच बाहर आया।
प्रेम: कैसा सच?
सागर: यही कि तुमको भी मैं थोड़ा-थोड़ा पसंद आ रहा हूं।
प्रेम: ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सोच रहे हो।
सागर: देख लेना, एक दिन तुमसे सच बुलवा कर रहूंगा।
प्रेम: क्या बुलवा कर रहोगे?
सागर: यही कि तुम भी मुझे प्यार करते हो।
प्रेम: मानता हूं, तुम्हारे लिए एक लड़के का दूसरे लड़के से प्यार करना बड़ी बात नहीं है, लेकिन मैं तुमसे प्यार करने के बारे में नहीं सोच सकता।
सागर: तुम सोचते हो और शायद करते भी हो।
प्रेम: अगर किसी लड़के से प्यार करना भी होगा, तो तुमसे क्यों करूंगा?
सागर: मुझसे बेहतर तुम्हें कोई मिलेगा भी नहीं।
प्रेम: यह सब बात बाद में। अब यह बताओ मीटिंग का क्या सोचा है?
सागर: जहां तक मुझे पता है, यह मीटिंग हमारे नासिक के प्रोजेक्ट को लेकर है। हमें वहां अपनी कंपनी की ब्रांच खोलनी है, लेकिन उसके लिए हमारे इन्वेस्टर्स मान नहीं रहे हैं।
प्रेम: तो हमें मीटिंग में यह बताना चाहिए कि नासिक ही क्यों चुना? वहां कौनसे फायदे होंगे, यह उन्हें बताना होगा।
सागर: वैसे तुम मेरे साथ रहकर तेज हो रहे हो।
प्रेम: हां, ठीक है। तुम एक काम करो, सारे पॉइंट्स पेपर पर लिखकर फाइल तैयार कर लो, और मैं उसी तरीके से पीपीटी तैयार करूंगा।
सागर: तुम मुझे ऑर्डर दे रहे हो? पता है न, मैं तुम्हारा बॉस हूं।
प्रेम, दीवार पर लगी घड़ी की तरफ मुंह घुमाकर कहता है: देखो, ऑफिस टाइम खत्म हो गया है। अब तुम मेरे बॉस नहीं हो, समझे?
सागर, प्रेम को प्यार भरी आंखों से देखते हुए: तो क्या हूं मैं तुम्हारा?
प्रेम: उफ्फ, तुम्हारे अंदर का रोमांटिक हीरो कब जाएगा?
सागर: एक बार तुम भी कोशिश करके देखो, शायद तुम भी सीख जाओ।
प्रेम: अभी बस काम खत्म करना है, यह बकवास किसी और दिन करेंगे।
(तभी ऑर्डर किया हुआ खाना आ जाता है।)
सागर खाना लेकर प्रेम के पास जाता है और खाने के लिए कहता है, जिस पर प्रेम कहता है: तुम खा लो, मुझे भूख नहीं है।
सागर खाना टेबल पर रखकर प्रेम के पास बैठ जाता है और कहता है: ऐसे कैसे भूख नहीं है? खाना तो तुमने खाया नहीं था।
प्रेम: मुझे काम करने दो, परेशान मत करो। तुम खाना खा लो।
सागर: अच्छा, मैं तुम्हें परेशान कर रहा हूं। तो ठीक है, पहले तुम काम ही कर लो और खाना भी तुम ही खा लेना।
प्रेम: तुम खा लो, मैं घर जाकर खा लूंगा।
सागर: मेरे साथ खाना खाने में क्या परेशानी है तुम्हें?
प्रेम: अगर परेशानी होती, तो आज जो इतना सब हुआ वो नहीं होता।
सागर: ठीक है, मैं भी नहीं खाऊंगा। काम खत्म करते हैं और घर चलते हैं।
(इसके बाद सागर गुस्से में प्रेम के पास से उठकर अलग टेबल पर जाकर अपना काम करने लगता है और प्रेम भी अपना काम करने लगता है।)
काम करते-करते प्रेम देखता है कि नौ बज गए हैं और सागर अभी तक काम कर रहा है। प्रेम जानता था कि सागर उससे रूठे बैठा है, लेकिन उसे भूख भी लगी होगी। सागर को बहुत जोर से भूख लग रही थी, लेकिन गुस्सा दिखाने के लिए काम कर रहा था।
प्रेम अपनी टेबल से उठकर सागर के पास जाता है और कहता है: मैंने अपना काम खत्म कर लिया है, तुम बस अपना काम खत्म कर लो फिर चलते हैं।
सागर, बहाना बनाते हुए: तुम घर चले जाओ, मैं अपना काम खत्म करके चला जाऊंगा।
प्रेम: कोई बात नहीं, तुम काम खत्म कर लो तब तक मैं रुकता हूं।
सागर: इतनी फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है और वैसे भी मैं तुम्हें परेशान ही करता हूं।
प्रेम बिना कुछ बोले वहां से चला जाता है और थोड़ी देर बाद प्लेट में खाना गर्म करके सागर के पास वापस आता है। सागर, प्रेम के हाथ में खाना देखकर मन ही मन खुश हो जाता है लेकिन ऊपरी मन से गुस्सा दिखा रहा था।
प्रेम: सागर, मैं खाना गर्म करके ले आया हूं। लो खा लो, फिर काम कर लेना।
सागर: तुम्हें दिख नहीं रहा है, मैं अभी काम कर रहा हूं। एक काम करो, तुम खा लो।
प्रेम: हम दोनों को पता है कि भूख दोनों को लगी है, तो तुम गुस्सा बाद में कर लेना, लो खाना खा लो।
सागर: मैंने कहा, मैं काम खत्म होने के बाद खाना खाऊंगा।
प्रेम: ठीक है, मैं खा लेता हूं।
(इतना कहकर प्रेम खाना अपने हाथ में लेकर सागर को खिलाने के लिए आगे करता है। सागर प्रेम को देखता है और कहता है: ये क्या, तुम अपने हाथ से मुझे खिलाने वाले हो?)
प्रेम: तुम काम करते रहो, मैं तुम्हें अपने हाथ से खिला दूंगा।
(सागर प्रेम के हाथ से एक निवाला खाना खा लेता है और खाने के बाद प्रेम से कहता है: अब बताओ, ऐसे कोई तुम्हें खिलाए तो क्या तुम उससे प्यार नहीं करोगे?)
प्रेम: तुम चुपचाप खाना खाओ।
सागर: हां ठीक है, तुम खिलाते रहो।
(प्रेम सागर को अपने हाथ से खाना खिलाने लगता है। सागर काम करते-करते देखता है कि प्रेम खुद खाना नहीं खा रहा है। जिस पर सागर अपना काम छोड़कर वहां से चला जाता है और हाथ धोकर आता है। फिर सागर प्रेम से प्लेट ले लेता है और पूछता है: तुम खाना क्यों नहीं खा रहे हो?)
प्रेम: पहले तुम्हें खिला दूं, उसके बाद।
सागर: (प्रेम के लिए खाने का एक निवाला लेकर) यह लो, खाओ।
(प्रेम सागर को थोड़ी देर तक देखता रहता है।)
सागर: तुम्हें मेरे हाथ से खाना खाने में कोई परेशानी है?
प्रेम: नहीं।
सागर: तो खाओ, चलो।
(यह सुनकर प्रेम सागर के हाथ से खाना खाने लगता है।)
सागर: प्रेम, तुम्हें एक बात बताऊं?
प्रेम: हां, बताओ।
सागर: जैसे तुमने मुझे अपने हाथ से खाना खिलाया, वैसे ही खाने के लिए मैं हमेशा तरसता रहा हूं।
प्रेम: मेरे घर चलो, मेरी मां तुम्हें रोज अपने हाथ से खाना खिलाएंगी।
सागर: हां, आंटी बहुत अच्छी हैं। लेकिन तुम मुझे ऐसे रोज अपने हाथ से खाना खिलाओगे, तो मैं देर तक रुकने के लिए भी तैयार हूं।
प्रेम: तुम मुझे खाना खिला रहे हो, समझ आता है। एक दोस्त कह लो या जो तुम्हारे मन में हो। लेकिन सोचो, एक मालिक अपने कर्मचारी को अपने हाथ से खाना खिला रहा है, यह कितना अलग लग रहा है सुनने में।
सागर: तुम कभी तो मेरे लिए और मेरे विचारों के लिए गंभीर हो जाया करो।
प्रेम: तुम्हें क्या लगता है, जब तक मैं तुम्हारी हां में हां न मिला दूं, तब तक क्या मैं तुम्हें गंभीर नहीं लेता? मुझे तुम्हारे विचारों की भी कद्र है और तुम्हारी भी।
सागर: ऐसा लगता है कि तुम मुझसे खुलकर बात करना चाहते हो इस बारे में, लेकिन शायद बोलते नहीं हो।
प्रेम: हां, तुम सही हो। मुझे तुम्हारे प्रति लगाव है, एक अलग सा खिंचाव है, जिसको अभी मैं प्यार नहीं कह सकता।
सागर: तुम अपने विचारों को दबा रहे हो। देखो, तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई भावना जागती है, तो तुम उसे दबाने या छुपाने की कोशिश मत करो। फिर देखो क्या होता है।
प्रेम: ठीक है, मैं तुम्हारी बात को ध्यान में रखूंगा और कोशिश करूंगा।
(इसके बाद दोनों खाना खत्म करते हैं और ऑफिस से निकलकर अपने-अपने घर चले जाते हैं।)
बाकी अगले भाग में.......