“दोहे”
कैसे तुझे जतन करूँ, पुष्प पराग नहाय
अपने पथ नवयौवना, महक बसंत बुलाय॥-1
रंग,रंग पर चढ़ गया, दिखे न दूजा रंग
अंग अंग रंगीनियाँ, फरकत अंग प्रत्यंग॥-2
ऋतु बहार ले आ गई, पड़त न सीधे पाँव
कदली इतराती रही, बैठे पुलकित छाँव॥-3
महुआ कुच दिखने लगे, बौर गए हैं आम
मेरे कागा बोल ना, सुबह हुई कत शाम॥-4
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी