भाग 29राजा के बारे में सुन , वीरसेन राजमहल के सामने पहुंच कर गीत गाने लगता है ,उसको महल के द्वार पर देख एक सिपाही तुरंत दौड़ कर राजा के पास जाता है ,और कहता है ,*" महाराज की जय हो , महाराज
पैरोडी : गम का फसाना बन गया अच्छा एक बहाना बन गया सच्चा लड़का : इधर तो आना अरी ओ री दीवानी
लाजो जी को रितिका का यूं उठकर जाना अच्छा नहीं लगा था । प्रथम की शादी को पांच साल हो गये थे मगर अभी तो "मैडम" जी का मन "मस्ती" करने में ही रमा हुआ है । घर गृहस्थी की जिम्मेदारी क्या बुढापे में संभालेगी
भाग 30राजा का आदेश मिलते ही ,नदी के किनारे दो पर्णकुटी बना दी जाती है , उसमे रानी के लिए सारी व्यवस्था भी करवा देते हैं ,!!सभी व्यवस्था होने के पश्चात एक अच्छा मुहूर्त देख रानी लाजवंती को सेविका
भाग 28दोनो भाई के मारे पूरी रात भागते रहे ,सुबह होते होते वह दोनो बहुत दूर आ गए थे , मार्ग में थक जाने के कारण कई बार वीरसेन लाजवंती को गोद में भी लेकर और कई बार कंधे पर भी बिठा कर भागा था , वह उस गां
भाग 27 बहुत प्रयास करने के पश्चात भी इन दोनो प्रेमियों को अपनी इच्छा पूर्ति हेतु अवसर प्राप्त नहीं मिल पा रहा था , घर में उपस्थित नौकर चाकर हर समय आगे पीछे लगे रहते थे , अब ये इतने भी दुष्ट प्रवृ
भाग 26 दो दिन तक दोनो ही प्रेमी एक दूसरे को देख तड़पते रहे ,*!!दूसरे दिन वीरसेन तड़प कर गीत गाता है *" चल उड़ चले हम पक्षी बनकर , शाम में घर पहुचेंगे ,, जिएंगे जीवन अपने बनाए घों
भाग 25 लक्ष्मी प्रसाद की वार्ता से प्रसन्न हो ,सेठ सामलाल अपनी तैयारी में लग जाते हैं , लाजवंती अपनी माता से कहती है ,*" मां मैं विरसेंन से प्रेम करती हूं ,में और किसी से विवाह नही करना चाहत
भाग 24केतकी कर्कोटक के पास पहुंचती है ,कर्कोटक उसे देख चौकता है ,और कहता है ,*" देवी केतकी आज आप मेरे निवास स्थान पर ,मुझे आदेश कर दिया होता वैसे तो मैं स्वयं ही आने वाला था ,*"!!केतकी कहती हैं ,*" मे
भाग 23वीरसेन के पिता जमींदार कुबेर सिंह ने उसके जन्म लेने पर बड़ा समारोह आयोजित किया , निर्धनों को धन बाटा भोजन वितरित किया कपड़े बाटे, उस समय जो भी सामने पड़ा वह खाली हाथ नहीं गया , ,!!वही हाल
भाग 22इंद्र की देवनगरी में उस समय दरबार में नृत्य संगीत का कार्यक्रम चल रहा था ,सभी देवगण उसका आनंद ले रहे थे ,केतकी एक सुंदर नृत्य कर रही थी आज वह बहुत ही उत्तम नृत्य कर रही थी , कर
चूड़ी बोले कंगना डोले मनवा क्यों खाए हिचकोले हार सिंगार कुछ ना सुहाए दिल में भड़क रहे हैं शोले तुम बिन सजन मैं कुछ नहीं ये ठंडी पवन क्या कह रही रिमझिम सावन तड़पा रहा
एक कहानी जिसे उर्वी ने खुद अधूरा छोड़ दिया, वो छोड़ आई उसे बहुत पीछे, जिसके साथ चलना उसकी तकदीर थी। अपने एक फैसले की सजा खुद को देती रही उर्वी लेकिन जब उसका अतीत लौटा तो मंजर कुछ और ही हो
भाग 21शांति के भगवान कृपा से ठीक हो जाने पर रामनाथ उसका और अपना दोनो का सामान उठाकर उसे साथ ले कहीं किसी गांव या सुरक्षित स्थान पर रुकने की सोच रहे थे, !!!देवी केतकी और क
भाग 20रामनाथ और शांति वही बैठकर जलपान करने लगते हैं , और दोनो ही अपने भविष्य की चिंता करने लगते हैं , शांति को तो अभी से अपने मां और बापू का स्मरण आने लगा था , अब तक के जीवन में पहली बार मां बाप से दू
भाग 19रघु बंजारा शंभूनाथ के दरवाजे पर खड़ा था , वह शभुनाथ को आवाज देता है ,*" सरदार , सरदार शंभूनाथ , *"!!शंभूनाथ एक अनजान आवाज सुन बाहर आते हैं ,वह रघु
भाग 18उस दिन के पश्चात रामनाथ और शांति प्रतिदिन जब भी अवसर मिलता फुलवारी में पहुंच कर गले मिलते थे , !!यदि रामनाथ पहले पहुंच जाता तो वह जोर जोर से एक गीत गाता , *" बंजारन वो बंजारन ,
वो खुशनुमा सी शाम वो चांद की सरगोशियां वो झुका झुका सा आसमां और वो नदी का किनारा वो तेरा उड़ता आंचल गालों पे पड़ते तेरे डिंपल वो लरजती सी गोरी बांहें छन छन करती तेर
भाग 17देवक और पुष्पा हाथ जोड़े इंद्रदेव के समक्ष खड़े हुए हैं , पास ही एक और कर्कोटक और केतकी अपने सहेलियों के साथ खड़ी है , उन्हे इस बात की खुशी थी की इन दोनो का मिलन नही हो प
आज लाजो जी ने ठान लिया था कि वह प्रथम और रितिका से बच्चे के बारे में बात अवश्य करेगी । अमोलक जी भी घर पर आ गये थे इसलिए उनके कंधे पर बंदूक रखकर दागी जा सकती थी । उन्होंने प्रथम और रितिका को शाम की चाय