मैं तो ऐसा दीप कि जिसको , झंझावातों में जलना है |
मुझे दिया अभिशाप
किसी ने ,
जीवन भर जलते रहने
का |
हर तारा सूरज बनने
तक ,
सब सुख दुःख सहते रहने का
जीवन की अंतिम सरगम तक , तूफानों में ही पलना है |
सूरज ने भी हार
मानली ,
जिस कुटिया के
अंधियारे से |
लेकिन आज अंधेरी
कुटिया ,
जगमग मेरे उजियारे से |
दीवाली लाने को हर घर - मुझे अँधेरे से लड़ना है |
तब तक तो निश्चय
चलना है ,
जब तक शेष तेल औ’ बाती |
थक जाऊंगा , सो
जाऊंगा ,
हार नहीं मानूंगा साथी |
लेने पड़ें जन्म कितने ही , मुझे अँधेरे को दलना है |