दो मुक्तक
१
जाने कैसा
घुटन भरा अँधेरा है ,
सकल कारवां विपदाओं ने
घेरा है |
पथ-दर्शक सब
पैदल से फरजी हुए ,
किससे पूछें कितनी दूर
सवेरा है |
२
भाग्य में अपने क्या बस काली रात है ,
नयन ने पाई आंसू की सौगात
है |
बस ऊंचे पेड़ों तक आता
उजियारा ,
गाँव में अपने उगता अजब प्रभात