मुक्तक
प्यार तो निर्मल बरन है चन्द्रमा का ,
एक आभूषण है पावन आत्मा का |
स्वार्थ की कुदृष्टि तुम इस पर न डालो ,
प्यार तो पर्याय है परमात्मा का |
२
हर फूल डाल
पर खिलता है बस झरने के लिए
हर दीप रात भर जलता है बस बुझने के लिए
आत्मा तो एक मुसाफिर है सराय में तन की
कुछ देर ठहरती है मंजिल पर पहुचने के लिए