क्या भ्र्ष्टाचार किसीने बोलो रोका है
छल झूट भरे वादों कथनों को टोका है
मैली बनियान सफेदी से ढकने वालो
कितना हो छोटा , धोका तो पर धोका है
मैंने उगता छिपता सूरज देखा है
क्षितिज नहीं कुछ भी बस भृम की रेखा है
तुम शासन के प्रगति आंकड़े मत बांचो
भोग रहे जो बस वो असली लेखा है