जो झंझावातों से खेले बस वह उपवन मुस्काता है ,
तिल तिल जलकर ही हर दीपक मंगल उजियारा पाता है |
मेरे पथ के शूल देख कर , मत आंसू आँखों में लाओ ,
मैंने जीवन- सिन्धु मथा है , मुझे गरल पीना आता है
17 अक्टूबर 2016
जो झंझावातों से खेले बस वह उपवन मुस्काता है ,
तिल तिल जलकर ही हर दीपक मंगल उजियारा पाता है |
मेरे पथ के शूल देख कर , मत आंसू आँखों में लाओ ,
मैंने जीवन- सिन्धु मथा है , मुझे गरल पीना आता है
86 फ़ॉलोअर्स
सेवा निवृत प्रधानाचार्य शिक्षा एम ए-( इतिहास , हिंदी ) जन्म 15अगस्त1942; बुलंदशहर | वर्तमान में बेटे के पास साहिबाबाद में | रुचियाँ - कविताएँ ,कहानियां ,व्यंग्य ,शब्दचित्र , गजल , मुक्तक आदि लिखने मैं बचपन से अभिरूचि | अनेक कवितायेँ गीत लेख कहानियां प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित | एक कविता संग्रह मन की वीथियाँ प्रकाशित व दो कहानी संग्रह लगभग प्रकाशन के लिए तैयार | D