मानव जब राह भटक जाता , -
नैतिक मूल्यों से हट जाता , -
तब मानवता अपने पावन आदर्श बता उससे कहती -
कुछ तो अतीत गुन कर देखो
मेरे पथ पर चल कर देखो
जब स्वार्थ भावना बढ़ जाती ,
सौहार्द्र न कहीं नजर आता | -
सबको बस अपने सुख दिखते ,
अपनापन प्यार बिसर जाता |
तब अश्रु , भूख ,अधनग्न बदन , कुछ आर्द्र करुण स्वर में कहते -
हमको अपना कह कर देखो |
दो पल हम से जुड़ कर देखो ||
जब तम ही तम भू पर होता ,
झंझा का संकट गहराता |
मन बेबस सा चिन्तित व्याकुल ,
पग एक न आगे बढ़ पाता | -
तब तम से सतत निडर लडती , जुगनू की लघु आभा कहती -
मेरा जीवन जी कर देखो |
तम से कुछ पल लड़ कर देखो ||
जब बहुत अकेलापन खलता , -
कैसे भी चैन नहीं मिलता |
हर ओर उदासी सी दिखती , -
मरघट जैसा सब जग लगता |
तब सीमा पर निशि दिन सन्नद्ध , प्रहरी की मौन
प्रीत कहती --
मुझ जैसा
व्रत लेकर देखो |
यह दुःख , सुख सा सह कर
देखो ||
हर पल जब घुटन भरा लगता ,
पग पग पर असफलता मिलती |
नित घ्रणा द्वेश आहत करते ,
हर ओर निराशा ही दिखती ||
तब हर मन में आशा भरती , प्राची की भोर किरन कहती -
मुझसे प्रेरित होकर देखो | -
आशावादी बनकर देखो ||