हर भ्रष्ट
को सजा दो शासन से कहते हो तुम
काला धन
कहाँ है संसद से पूछते हो तुम
पंक रंजित
पग कभी क्या धर्म पथ पर चलें हैं
क्यों
असंगत बात पर ज़िद इतनी करते हो तुम
28 मई 2016
हर भ्रष्ट
को सजा दो शासन से कहते हो तुम
काला धन
कहाँ है संसद से पूछते हो तुम
पंक रंजित
पग कभी क्या धर्म पथ पर चलें हैं
क्यों
असंगत बात पर ज़िद इतनी करते हो तुम
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सेवा निवृत प्रधानाचार्य शिक्षा एम ए-( इतिहास , हिंदी ) जन्म 15अगस्त1942; बुलंदशहर | वर्तमान में बेटे के पास साहिबाबाद में | रुचियाँ - कविताएँ ,कहानियां ,व्यंग्य ,शब्दचित्र , गजल , मुक्तक आदि लिखने मैं बचपन से अभिरूचि | अनेक कवितायेँ गीत लेख कहानियां प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित | एक कविता संग्रह मन की वीथियाँ प्रकाशित व दो कहानी संग्रह लगभग प्रकाशन के लिए तैयार | D