गीतिका आधार छंद- शक्ति , मापनी 122 122 122 12, समांत- ओगे, पदांत- नहीं
“गीतिका”
बनाया सजाया कहोगे नहीं
गले से लगाया सुनोगे नहीं
सुना यह गली अब पराई नहीं
बुलाकर बिठाया हँसोगे नहीं॥
बनाकर बिगाड़े घरौंदे बहुत
महल यह सजाकर फिरोगे नहीं॥
बसाये न जाते शहर में शहर
नगर आज फिर से घुमोगे नहीं॥
चलो शाम आई सुहानी बहुत
उठा पाँव अपना चलोगे नहीं॥
हवा भी चली है दिशा आप की
निगाहें नजारे भरोगे नहीं॥
न गौतम कहानी सुनाना नयी
वजह बे वजह तुम खुलोगे नहीं॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी