सादर शुभ दिवस मित्रों, आज एक गजल आप सभी को सादर प्रस्तुत कर रहा हूँ आशीष की कामना सह........
काली घटा चढ़ाकर सावन बहक रहा है
मुंडेर की ये बदरी इक भौरा मचल रहा है
आहट ये मिल रही बरसात होगी जमके
दर-दूर चमके बिजुरी मौसम बदल रहा है ॥
रंभा रही है गईया मन पंछी गगन उड़ाए
चाहत मिलन जगाए कागा भी गा रहा है ॥
अरमान दिल में जागा पास आए प्रीतम
स्वाति की बूंद लाए चातक चंहक रहा है ॥
सौतन हुई है पुरवा उलझाए रहती नाहक
बादल का क्या भरोषा अब दूर जा रहा हैं ॥
चंचल चकोरी चितवन आजाद मन परिंदे
ब्याकुल हुई है हिरनी नित तूफान आ रहा है ॥
तन्हाइयों में खुद के अरमान को सजाकर
नैनों से टपका मोती सुर्ख गालों पर आ रहा है ॥
महातम मिश्र