मंच के सम्मान में प्रस्तुत है कुछ दोहे......
"दोहा"
कटिया लगभग हो गई, खेत हुए वीरान
जूंझ रहा किसान है, सन्न हुआ खलिहान।।-1
नौ मन ना गेहूं हुआ, ना राधा कर नाच
कर्जे वाले आ गए, लिए लकुड़िया साच।।-2
मरता कहाँ किसान है, मरता उसका नीर
खेतों में वह लाश है, उसको कैसी पीर।।-3
पानी में सड़ता रहा, पानी उगता धान
बिन पानी गेहूं कहाँ, उत्तम खेत बिधान।।-4
भला हो उस विचार का, उगते खेत मकान
खरिददार कोई नहीं, खुलने लगी दुकान।।-5
घर घर में फंदा पड़ा, पंखा फांसी खाय
कर्जहि डूबा शयनगृह, हप्ता नहि पोसाय।।-६
किस किसकी बातें करूँ, किसपे करूँ भरोष
राजनीति चकरा गई, कितने हुए बेहोश।।-7
जंगल जंगल भटकता, बहुते चतुर सियार
नहि जंगल न चालाकी, कटा वृक्ष निराधार।।-8
शिक्षा में खेती बिकती, बाग़ बिका परिधान
डिग्री लेकर खड़ा है, साहब का दरवान।।-9
पहली दुसरी में पढ़े, बड़े पापा का बेट
नौटंकी स्कूलों की, एक लाख का टेट।।-10
सरकारी स्कूल पढ़ें, इमला नके पहाड़
निजी स्कूलों में पढ़ें, शेरा खूब दहाड़।।-11
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी