ना जाने क्या लिख बैठा हूँ, अपने मन की है ज्वाला
यारों देखों शान्त न होती, पी पी कर भी इसकी हाला
हवस हंसीली नारी नठीली, पिए अमृत भरि-भरि प्याला
चितवन चटकाय कलंकन बिच, नाचे नचवाये मधुशाला ||
उपहास करार करें पल में, नटी जाय नचाय विरह बाला
मुसुकाय चलें रहिया ठिठकें, भरमाय गले पहिरें माला
रूप पुकारत काम पियारे, मद-मस्ती छलकाएं नटशाला
जीत हार कर हार कराये, घर बिरह कराये मधुशाला ||
तन बोझिल मन चंचल है, मन विवस विरह आंसुवाला
खुद ही करार हर रोज करें, विश्वास डिगत देखत प्याला
जीभ सरक जब होठ मिले, टूटे मन अंकुश उईलाला
सबरस नीरस लागि जगत, जब ढाकि पियाये मधुशाला ||
मधुमास बसंत बयार चलें, फागुन भर फाग रहें प्याला
मदमस्ती यौवन ताकि रहें, इतराय चलें हरषित बाला
कोमल किसलय अंकुर डाली, हरषे हिरनी बने मृगछाला
बौराए ऋतु बोले पपीहा, पिया पी पी बुलाये मधुशाला ||
महातम मिश्र