सादर सुप्रभात
आदरणीय मित्रों, एक और रचना आप सभी सादर निवेदित
है.......
“चेहरा”
घना
अंधेरा छाया देखों अंतर्नाद मलिन हुआ
रत्तीभर चिंगारी से हर चेहरा अब खिन्न हुआ
कहते थे ये आतंकी हैं पुरे जगत के अपराधी
मानवता की हत्या है चेहरा नकाब से भिन्न हुआ॥
महातम मिश्र