मै अहिवाती धरती हूँ, मुझे बेवा तो न बनाइये
मेरा सुहाग है हरियाली, सूनीमांग तो न बनाइये
मै ही माँ की ममता हूँ, हर जीव-जंतु की जननी हूँ
श्रृंगार न मेरा रंजित हों, मुझे बंजर तो न बनाइये ||
मै धरती हूँ फलित कोख, मुझें बंध्या तो न बनाइये
इस सत्य-सनातन नारी को, कलुषित तो न बनाइये
मै ही पावन गंगा हूँ, है खड़ा हिमालय गोंद मेरी
सीने पर मेरे कर कुठार, वृद्धाश्रम तो न बनाइये ||
मै रमणिया बगिया हूँ, मुझें निर्जन तो न बनाइये
काला कचरा मेरे आँचल, फिर कफ़न तो न बनाइये
विष फुहार मेरे विस्तर, प्लास्टिक की चादर है मैली
अंकुरित न होगा बीज-पिया, संग उसर तो न बनाइये ||
मेरा वजूद है कण-कण से, मुझे पाथर तो न बनाइये
मासूम मुलायम सी चमड़ी, इसे लोहा तो न बनाईये
मै दिन-दिवाकर शशि-निशा, हर धातु गर्भ में हैं मेरे
ना करों तात टुकड़ा मेरा, मुझें क्यारी तो न बनाइये ||
जल-जीवन उपवन बहार, गिर पतझड़ तो न बनाइये
ये वन्य जीव प्रहरी मेरे, मृगछाला तो न बनाइये
मै धरा धुरी हूँ जीवन की, है जीवों से दुनियां सारी
जीवन ही जीवन का बैरी, मुझे दुश्मन तो न बनाइये ||
महातम मिश्र