माया महिमा साधुता, उगी ठगी चहु ओर
जातन देखि विलाशिता, भीड़ भई मतिभोर ॥
उटपटांग भाषा भविष्य, बोलत बैन बलाय
हर्ष धरे मन शूरमा, फिर पाछे पछिताय ॥
पाप पुण्य की आस में, जीवन बीता जाय
नही भक्तिना कर्म भा, दिन मह रात दिखाय ॥
भली भलाई
पारकी, मन संतोष समाय
खुद की थाली कब कहे, रख ले दूसर खाय ॥
जल जीवन का,जल बिना, प्राण धरा रहि जाय
जहर पिए नही को बचें, जल जनि जहर मिलाय ||
महातम मिश्र