सादर मंगल दिवस प्रिय मित्रों, एक गजल आप सभी को प्रस्तुत करता हूँ.…….
“गजल”
रे स्वार्थ तुझपर इत्मीनान हो गया
जब मेरा ही नाम मेहमान हो गया
उबलती हुई चाय नमकीन संग आई
तो यादों का सच बेजूबान हो गया॥
हिल गए हाथ जलने लगी उँगलियाँ तो
दो बूंद छलका गहरा निशान हो गया॥
रुध गया हलक स्वाद बताऊँ तो कैसे
हकीकत देखो वक्त हैवान हो गया॥
नई दीवार नई तस्वीर अदाओं में
घर से बिदाई मैं अंजान हो गया॥
अजीब सोहरत मिलती है जिंदगी में
मुकाम नया है पर मैं पुरान हो गया॥
शिनाख्त मेरी ही अब पराई हो गई
फासला चंद कदमों का बिहान हो गया॥
महातम मिश्र