27 सितम्बर 2015
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मै महातम मिश्रा, गोरखपुर का रहने वाला हूँ, हाल अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ |D
मै अहिवाती धरती हूँ, मुझे बेवा तो न बनाइये मेरा सुहाग है हरियाली, सूनीमांग तो न बनाइये मै ही माँ की ममता हूँ, हर जीव-जंतु की जननी हूँ श्रृंगार न मेरा रंजित हों, मुझे बंजर तो न बनाइये || मै धरती हूँ फलित कोख, मुझें बंध्या तो न बनाइये इस सत्य-सनातन नारी को, कलुषित तो न बनाइये मै ही पावन गंगा हू
मानू और छानू दोनों बचपन के मित्र हैं | लेकिन दोनों की सोंच और विचारधाराओं में जमीन-आसमान का अंतर है | मानू हर बात को गंभीरता से सकारात्मक रूप में लेता है तो छानू नकारात्मक व लापरवाह है | मानू हर कदम पर अच्छाई को देखता-परखता है वहीँ छानू हर चीज में बुराई देखता है अच्छाई उसे नजर ही नहीं आती है | जिससे
“बेजुबान घुटन” आदमी में हलकी सी मुस्कान देखीं मैंने परायों संग उभरी हुयी पहचान देखीं मैंने | अपनों से तनिक कटके महफ़िल क्या बैठी खूब गैरों की मीठी जुबान देखी मैंने || मन, मन की चाहत जाने है बेहतर हर शय हर आँगन में एक ही खबर चहलकदमी खूब है पुरानी गली में सजी-संवरी नुक्कड़ पर दुकान देखी
“धरती पुत्र” हल नित कहें किसान से, हलधर मेरे मित्र धरती को मै चिरता, अरु धरा बिखेरे इत्र || कलम कहें कविराय से, मुझे लगाओ हाथ ज्ञानपिपासु शब्द तुम, रहों श्रृष्टि के साथ || हल और कलम समान हैं, दोनों रखते धार श्रृजन हमारें अंग हैं, बस कृपा करें करतार || हम तुम दोनों दो पथिक, अलग-अलग अंजान म
खुली आँख से जग को देखा, बंद हुयी तो आई माँ सूरज की पहली किरणों में देखी तेरी परछांई माँ । रिश्ते नाते सब बदल रहें अब घर भी बदला लगता है हर मूरत बदली बिन तेरे मंदिर भी बदला लगता है । बाबू जो नाम दिया तुमने तुम बिन कोई नहीं बुलाता है सह पाना इसको दुस्कर है यही सबसे अधिक रुलाता है । हर जगह गूंज
ना जाने क्या लिख बैठा हूँ, अपने मन की है ज्वाला यारों देखों शान्त न होती, पी पी कर भी इसकी हाला हवस हंसीली नारी नठीली, पिए अमृत भरि-भरि प्याला चितवन चटकाय कलंकन बिच, नाचे नचवाये मधुशाला || उपहास करार करें पल में, नटी जाय नचाय विरह बाला मुसुकाय चलें रहिया ठिठकें, भरमाय गले पहिरें माला रूप पुकार
एक आदमी अपने रास्ते से गुजर रहा था | सड़क के दोनों किनारों पर आम के बहुत से बाग फलों से लदकर जमीन को छू रहें थे | फल के बावजूद बागों में चहल-पहल न देख उसे आश्चर्य लगा | बागों में कोई रखवार नहीं, कोई बाड़ नही, फिर यह बगिया अपने आप सुन्दर फलों को लेकर सुरक्षित कैसे है | इसी उधेड़-बुन में खोये हुए राहगी
रोज-रोज ना होय रे मुरख, तेरा मन मुझसे मनुहार मेरे अंदर भी एक आदम, खुद झिझके ना करे गुहार | बहुत मनाया नहीं पिघलता, पत्थर सा दिल है मानों दिख जाता गर बाहर होता, चीखें धांय करे धिक्कार || पटरी लेकर पढता-लड़ता, अब करता कागज का वार ना जाने क्या ले लेगा लड़, लिख लेगा अपने लिलार | महल अटारी मान मनौवल,
गर्मी का महीना था | बाग में कुछ बच्चें और बडें तिलमिलाती गर्मी से बचने के लिए पेड़ों की छाँव में दोपहरी बिता रहें थे | बच्चें अपने खेलों में मसगुल थे तो बडें-बूढें लाचारी में अपना समय काट रहें थे | उन्हीं में से दो बच्चें जो लगभग पन्द्रह से कम उम्र के थे, आपस में पैसा-पैसा और इन्शान-इन्शान का एक नय
वाह रे जिंदगी तुं भी कितनी अजीब है रहने को दूर दूर पर कहने को करीब है | पल-पल सरकती हुयी अंतिम पड़ाव तक बेबस है दुनियां, कहने को यही नशीब है || कम नही, बिन जान खड़ी हो जाती है तूं नेकी और बदी का पुलिंदा खोल जाती है तूं | गिरा जाती है माया का सजा हुआ महला छोड़ जाती है यादें, शेष बहा जाती है तूं
आज गांवों में गाँव ये वीरान सा क्यूँ है हर सड़क पर शहर परेशान सा क्यूँ है जिन गलियों में खुशियों की थी छावनी उस डगर पर मायूसी सूनसान सा क्यूँ है || हर चेहरें पर चेहरा घमासान सा क्यूँ है हर आँगन में बिखरा तूफान सा क्यूँ हैं हर लवों पे थिरकती है इमानचालीसा फिर अपने ही घरों में दुकान सा क्यूँ ह
क्यों पूछते हो मेरे गाँव का पता माफ करना गर हुयी कोई खता || अदब से रहता हूँ इसी इलाके में ऐसे विचार नहीं ठहरूं ठहाके में कहाँ आप और कहाँ यह खँडहर जमीन पे खड़ी है खुदके फिराके में || कुछ दूर जाकर सड़क से मुडती है सड़क फिर कई मोड मुड खुद सरकती है सड़क रुकिए, प्रवेष द्वार सुन्दर सा मोड है ब
बोलो सजन मंजूर है क्या तनिक बताओ कसूर है क्या छाई रहूँ कि परछाई रहूँ तेरे नैनों में मेरा गुरुर है क्या || नजरों में तेरा ही श्रृंगार करूँ पल-पल तेरा ही दीदार करूँ तुं माने कहाँ तुं जाने कहाँ तुझे सपनों में पाके गुहार करूँ || तुं रूठा रहें मै मनाती रहूँ सांसों से सांसें मिलाती रहूँ तुने
उठता हूँ गिरता हूँ चलने के खातीर पढता हूँ लिखता हूँ चलने के खातीर निगाहें लगी सिर्फ मंजिल डगर पर कहता हूँ सुनता हूँ चलने के खातीर || बताओं न दुनियां में राहें हैं कितनी चलूँ कैसे किसपर निगाहें हैं कितनी फकत पैर चलता है पगडंडियों पर घिसता हूँ राहों को चलने के खातीर || थकता हूँ रुकता हूँ अपने
हरी घास चरने गयी थी गर्मियों में कहीं गंदे गड्ढे में गिर कर आयी है नहीं सुधरेगी नासमझ भैंस कहीं की किन खेतों की हरियाली हर आयी है || गिलौरी घास का, खा पगुरी करती है थुथुना फूला, घर वालों को घूरती है गोरस की आस में, तकते लोंग तुझे रुक अवगुणी, नाहक तमाशा करती है || अब कितने मजबूत, खूंटे
पीपर की छैयां में बरगद की आस लिए ढूंढे सुहाग सुर्ख प्रीतम को पास लिए रूपवान कलश धरे मोहक शरीर पर पल में ठगाय गयी खुरपाती प्यास लिए || खूबसूरत नाजुक सी भोरी सी गोरी अल्हण उफानी में पकड़ी गयी चोरी सोलहवें बसंत में भुला गयी खुद को बाढ़ में छलक गयी नदी सी निगोरी || शिक्षासंग अंकुश निरंकुश न
कुछ तो बात खास है इस ज़माने में मुसाफिर टिकता नहीं, आशियाने में दूल्हा बन बारात, सबने किया होगा आज गंवारा नहीं रुकना शामियाने में || क्या याराना है झूठ के ठिकाने में लगन बड़ी तेज है समूचे बहाने में अजब अहसान देकर जाते हैं लोंग मिल बैठेंगे कभी, अभी हूँ निभाने में || यह नई राह किस मुकाम जा
हर घरों की जान सी होती हैं बेटियाँ कुल की कूलिनता पर सोती हैं बेटियाँ माँ की कोंख पावन करती हैं बेटियाँ आँगन में मुस्कान सी होती हैं बेटियाँ || अपनी गली सिसककर रोती हैं बेटियाँ सौदा नहीं! बाजार में बिकती हैं बेटियाँ तानों की बौछार भी सहती हैं बेटियाँ खुद कलेजा थामकर चलती हैं बेटियाँ ||
कहीं टूटकर बिखर न जाए गजल डर है जख्मे हालात लिखता नहीं | अल्फाजों का बिकता देखा बाजार वजह इतनी, और मै बिकता नहीं || कौन पढता है ऐसी-वैसी गजल किताबां कोरे पन्ने सजता नहीं | लिखूं एक हर्फ़सरेआम हों जाऊँ अत्फ की अधेली जेब रखता नहीं || लुट ली जाती अस्मत चौराहे पर आईना कहता है हमें दिखता
प्यार होता सुहाना सफर है सुना जिंदगी ख्वाब खुशियाँ खिला जाएगी मन मना के कहे मन सुना के सुने रूह से रूह खुद आके मिल जायेगी || प्रिय मिले न मिले दिल मिल जाता है ख्वाब एक दुजे संग खिल जाता है कहती है दुनियां इसे आवारगी लव डरके साये से हिल जाता है || महातम मिश्र
रोज-रोज ना होय रे मुरख, तेरा मन मुझसे मनुहार मेरे अंदर भी एक आदम, खुद झिझके ना करे गुहार बहुत मनाया नहीं पिघलता, पत्थर सा दिल है मानों दिख जाता गर बाहर होता, चीखें धांय करे धिक्कार || पटरी लेकर पढता-लड़ता, अब करता कागज का वार ना जाने क्या ले लेगा लड़, लिख लेगा अपने लिलार महल अटारी मान मनौवल
“टूट जाते हैं लोंग” सुना है टूट जातें हैं लोंग अकड जाने के बाद दरक जाता है आइना इक चोट खाने के बाद बदल देते है लोंग अपना घर भुतहा समझकर बदल जाती हैं राहें खुदबखुद ठोकरें खाने के बाद || पर आज कुछ अलग ही आलम है जमाने का हकीकत से दूर है अंजाम दिखने-दिखाने का इसी मोहल्ले से मिले इसके जख्म तो
दृग दिगंत भूकंप भवन्ती कदली पात हिलें अवनंती बरसे बिजली बारीश ओला कापें घर नर धरा हिलंती || हाय मनुज तुम कितने लायक खुद बन बैठे सर शिर नायक तनिक उचाट धरी धरती जब हिले गगन मंह महि-महिपालक || करि कसूर पुरुषार्थ पुकारत जिय मह खोट बिनासे हारत धरी त्रिनओट रहति वैदेही तुम काहें निज लंक
अनायास हंसी आ जाती है | अतीत की बातें कभी सोचकर तो कभी सुनकर | जब हर मोड पर वयों वृद्ध,कहते रहते हैं कि अतीत को भूलना ही बेहतर है | क्या सचमुच वें लोंग भुला पाए हैं अपने अतीत को | शायद नहीं | क्या अतीत से उनकी झुझालाहट उन्हें चैन से जीने दे रही है | क्या बार-बार उनके सीने पर आकर सवार नहीं हों जाती
बयना ने उनकी हर कूबत बता दिया जिसने तेरे दर पर सेहरा सजा दिया भूल से बैठे थे उस गाँव से आकर मोहल्ले ने घेंरकर समधी बना दिया || चाहत है मौसम में बारात मिल जाय तिलक में थालीभर खैरात मिल जाय लडके तो हैं अपने गाँव कुंवारें बहुत बरदेखुवा आ जाएँ तो बात बन जाय || किसको बताएं इसके पढ़ाई
सुना, आतंक का कोई मजहब नहीं होता अर्थी और ताबूत का मातम नहीं होताजलती चिता कब्र की कतार से पूछों आग संग पानी का विवाद नहीं होता || फिर भी लोंग खूब लगाते है लकड़ी दूसरे के माथे की गिराते है पगड़ी सर सलामत तो पगडियां हजार हैं नौ हाथ बिया की एक हाथ ककड़ी ॥ महातम मिश्र
बांकेबिहारी चितवन अनुपम अदा मुरारी फिर से बुला रही है यमुना तुझे अरारी ||मुरली बजाओं मोहन राहें विकल कछारी तनमन तरस रहा है पयमाल राधाप्यारी मेघा छलक रहा है पर्वत खिसक रहें है लगता नहीं बचेंगे दुनियां के जीव धारी ||आओं दरश दिखाओ अर्जुन की बेकरारी देखों संवर रही है वही कौरव की सवारी शकुनी की चाल मोह
(1)ये मनमचला महकता गुलाब तोडें मुरझाया सा है जी व न चहके है (२)लों यह पंक्षी का घों स ला है चूं चूं क र ताउ ल झ ता हुआ दे ख ता आ का श है (3)मै मै हूँ मेरा क्या अ फ सा ना च ला जा उं गा छो ड़ बि रा ने मेंम त रख भ रो षा (4)ये उठा लाया हूँ मणिका है सितारों में से स जा उं गा इसे चित्र दिख लाऊंगा महा
“ मुक्तक” अच्छे लोंग मिलते है तो खँडहर निखार लाता हैसूरत बदले ना बदले पर आईना निहार लाता है खुदगर्जी में बसर किये जाते हैं लोंग कैसे कैसे यूँही खड़ा होता नहीं सदमा उठा बीमार लाता है ||महातम मिश्र
(1)रे मन तुमकों समझ नाआये अब भी तो समझ दार ना समझ हों गया (2)आअबलौट आ आ मत जा साथ निभा री जी वन दर्शननाराज कराये क्या (3)हूँ मै भी आदमीअनजाना चेहरा लिए दिखाऊँ किसकों वों आदमी तो मिले(4)ओ नैना कजरा कजरारी झूले सावन बर से बद रा घनघोर घटा री महातम मिश्र
सावन का श्याम झूला, डारी कदमा डारी इक बार फिर झूला दों, श्यामल रास बिहारी सखियां विवस खड़ी हैं, चितवत राह तुम्हारी देखों भी श्याम आओं, आओं तनिक मझारी ||मुरली की तान कान्हा, तरसत महल अटारी सुध बुध बिसर रही है, तक गोवर्धन गिरधारी ||महा माया मन-मन राचे, बोझिल जीवन धारी पग पग नाचे ताता थैया, नाचे घर नर
आज उजाले भी रास नहीं आते गुम जिंदगी उल्लास नहीं भाते ढूढती बहूत गहरे उतर खुद को हाथ लगते पर पकड़े नहीं जाते ||!महातम मिश्र
नहि पराग कण पाखुडी, कलियन मह नहि वास कब वसंत आयो गयो,***चित न चढें मधुमास ||१सोन चिरैया उड़ चली, ****पिंजरा रखे सजाय चुंगा दाना बिखर गया, *अब कस निकसत हाय ||२कई मंजिला घर मिला, *****मिली जगह भरपूर भूल गये स धिरे धिरे , ******जीवन जग दस्तूर ||३निर्धन मरा जुआरिया, *****धनी मरा संताप मानवता पल में मरी,
जा आइने से कह तनिक बदनाम है बस्ती मेरी लगा बोली खड़े बाजार गुमनाम है हस्ती मेरी कहां से आते हैं लोंग इसे छुप कर लगाने गले पानी बिना चलती कहाँ रेगिस्तान में कश्ती मेरी ॥थककर उठाया पाँव मैंने इस वक्तके ढलान परयूँही नहीं खड़ी है मोहिनी इस रूप की दुकान पर मन सजाया था कभी कि बरसेगा मेरा आसमान भी आ गिरी
वंश बेल ज्यो ज्यो बढ़ें त्यों त्यों बढ़ें विधान दृढ ममता समता उगे छा जाए सकल जहानशुद्ध बुद्धी धन ज्ञान रहें स्वास्थ संग कल्याण संस्कार सदा शुभाचरण कुल राचे कृपानिधान || महातम मिश्र
साथी सखा सभी गये, गयी बचपनी राह माया में महिमा गयी, बाकी बची न चाह बाकी बची न चाह, मित्र संज्ञान धर्म है भूले मत इन्शान, जिवन जग मान कर्म है समय दिलाए मान, बहुरि संचय सब थाती विनय विनीत बनाय, धनी मन जीवन साथी ॥महातम मिश्र
दिल मेरा तुमने चुराया न होतातो मै भी किनारों पेआया न होतादिखाकर मुझे अपनी सारी अदाएं दीवाना बनाकर रिझाया न होताबताकर हुनर सादगी में तुम सयानीमुझे पास अपने बुलाया न होताफिजाओं में चाहत की खुशियाँ बिछाकरदिशाओं को यूँ फुसलाया न होता जमाना कहें चाहे मुझको दीवाना इशारों ने मन बहलाया न होता दिल मेरा तुम
कलम चली कविराय की, लय ललक आह्लादमुग्ध हुए श्रोता सभी, रचना बने अगाध ।।रस छंदों की मापनी, रचना भाव बनायपहला अक्षर प्रेम का, शब्द सराहे आय ।।बोली भाषा गांव की, माटी रखे सुगंध सज्जनता अरु साधुता, बैठक में सत्संग ।।धनी रहे साहित्य वो, जाने सकल जहानशिल्प सृजन मन रहे, मिले मान सम्मान ।। ससाहित्य शब्दनगरी,
माया महिमा साधुता, उगी ठगी चहु ओर जातन देखि विलाशिता, भीड़ भई मतिभोर ॥उटपटांग भाषा भविष्य, बोलत बैन बलाय हर्ष धरे मन शूरमा, फिर पाछे पछिताय ॥पाप पुण्य की आस में, जीवन बीता जाय नही भक्तिना कर्म भा, दिन मह रात दिखाय ॥भली भलाई पारकी, मन संतोष समायखुद की थाली कब कहे, रख ले दूसर खाय ॥ जल जीवन का,जल बिना
कभी देखता हूँ बुत को कभी खुद को देखता हूँ यह शहर है हमारा मै इसके कद को देखता हूँ ||<!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]-->अरमानों का गला घोंट जाती हैं रह-रह गलियां उदास मंजर में हंसी मै इसके हद को देखता हूँ ||<!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]-->कितना बाकी है सहना कोई तो बताये गिनती
अलख जगाऊँ मै सदा, सदाचार उपकारबिमुख न होये मानवा, हिय माहि संस्कार ।।सद्भावना बनी रहें, आपस में चित चाहप्रेम पवित्र रहे सदा, मनवा पनपे राह ।।महातम मिश्र
सादर शुभप्रभात प्रियवर मित्रगण, पावन नवरात्री के पुनीत पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई व मंगल शुभकामना, माँ जगत जननी आदिशक्ति आप सभी की मनोकामना पूर्ण करें व जगत कल्याण करें..... जय माता दी....."मुक्तक"ढोल नगारे खुशी धरा सप्तरंगीबादल छाया है माँ शक्ति-आदिशक्तिका पावन डोला आया है माँ की महिमा थाल आरती
फुरसत में जीवन नहीं, जीवन बहुत महान माया ममता मन धरी, जानत सकल जहानजानत सकल जहान, जन्म यह कर्म भोग हैमन में कर संकल्प, नत जीवन संयोग है महिमा माँ की मान, जग होय रही बरसात करहु पाठ नवरात, लेहु नवदिन महि फुरसत ॥महातम मिश्र
घर घर बाजे बाजना, तोर मोर परिवारमन की मन में रह गयी, कागा खाय विचारकागा खाय विचार, भले बहि जाए माटीखुन्नस की दीवार, बनाये कद अरु काठीकह गौतम कविराय, नैन भरि आये झर झरपरबस है समुदाय, विरानी छायी घर घरमहातम मिश्र "गौतम"
पावन पर्व दशहरा पर आप सभी को हार्दिक बधाई सह मंगल शुभकामना प्रिय अग्रज/अनुज स्नेहीजन, सादर प्रणाम/आशीर्वाद...............................कुछ विशेष विषयों पर मेरी नविन कुण्डलिनी छंद आप सभी से कुछ कहना चाहती है, आशीष प्रदान करें......जय माता दी, जय श्री राम ......कुण्डलिनी-1बिती रात डरावनी, खुलने लगी
नील मोती सिप प्यारी आँख से झरना बहाकब रुके नैनों की सरिता भावना बहती जहां || हंसती हुयी ऑंखें विकल होती हैं अश्रुधारसे नज़रों का गिरना देखने रुकता नहीं कोई यहां ॥जब उठी ऑंखें मुहब्बत प्यार के दहलीज पर घायल परिंदा हों गया न आस्मा जिसका रहा ॥प्रेम का परिहास निज आँख को भाता नहीं आँखें समझती है दीवानी प
<!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]-->लौटी गीता अपने घर, है कितना सुन्दर अवसरउठों आज लौटा आये, जिसका सम्मान उसीके घर ॥लौटाने की होड़ लगी, कोई बचपन भी लौटाएगा लौटा दो माँ की ममता, जो टंगी हुयी है नभपर ॥मांग रही है माटी हमसे, अपनी महक पुरानी चलों आज लौटा आयें, हरियाली उसके पथपर ॥पूछ रहे हैं गुरू
मित्रों, प्रकाश पर्व दीपावली पर आप सभी को हार्दिक बधाई सह मंगल शुभकामना,"मैया मै नहीं माखन खायो" जैसी तर्ज पर आधारित रचना...... जाऊं कहाँ मै किधर रोशनी, जाऊं प्रकाशखिलाऊं बोल सखी कित छैयां बैठू, जीवन जग जस पाऊं मेरे अंगना भी एक दीपक, मनदीप खिले तो जानू अरज करू मैया कर जोरू , श्रद्धा सुमनचढाऊं ||
सादर शुभप्रभात अग्रज-अनुज स्नेही मित्रों, सादर प्रणाम/आशीर्वाद......प्रकाश के प्रकाशित पावन पर्व दीपावली पर हमारे पुरे परिवार के तरफ से आप को एवं आप सभी के पुरे परिवार को हृदयतल से बधाई, मंगल शुभकामना और हार्दिक प्यार स्वीकार करें......इस पुनीत पर्व पर माँ लक्ष्मी, माँ दुर्गा, माँ सरस्वती सहित त्रि
सादर सुप्रभात मित्रों, जय हों छठ मैया की, आप सभी को इस पावन पुनीत पर्व पर हार्दिक बधाई, छठ मैया जगत कल्याण करें......छठ मैया के पूजन पर एक कुंडलिया छंद समर्पित है .......छठ मैया की आरती, मन शीतल करि जाय सुबह शाम का अर्घ हों, जल सूरज हर्षायजल सूरज हर्षाय, सुहागन पूजन बेला गावत महिमा माय, फलों का रेलम
1.माँमैनें माखननत खायोपछतायो तोबहियन छोटो सीको हाथ न आयो2.तूं मैयाभोरी होपतियायोइनकी बातेबाछा पिए दूध मोही लपटायो हो3.ना बोलूतोसो मैंमाँ तूं मोरीपराई लागो इनकी खातिर मोसो डांट पिलायो4.लो जाँउना अबगैया संगना राखू यारीग्वाल सखा संगचोरूं माखन भारी5.ओ लल्ला खायों ना तूं माखन ना माँ नाखायों मैंने ही माखन
मित्रों सादर शुभ दिवस, आज युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच द्वारा दिल्ली में वार्षिक सभा का आयोजन किया गया है जहाँ देश-विदेश से गणमान्य रचनाकारों के सानिध्य में मुझे भी दर्शन का अवसर मिला था पर अपने अन्य दायित्वों के निर्वहन से मै पहुँच न सका जिसका मुझे बेहद अफसोस है......उसी उपलक्ष्य में एक पोस्ट किया है
सादरसुप्रभात मित्रों, चेन्नई में बाढ़ का कहर देखकर मन द्रवित हुआ और आज उसी विषयपर युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच द्वारा रचना प्रस्तुतकरने काअवसर इस चित्र के माध्यम से प्राप्त हुआ।कलम चलती गयी और जो लिखा गया वो आप को सादर प्रस्तुत है | आपसभी का दिन शुभ हो..........<!--[if gte vml 1]><v:shapetype id="_x000
मैं कृष्ण की शंख हूँ शिव की शंखनाद हूँ विजय हुंकारती हुई महाभारत की याद हूँ समुन्द्र की तलहटी से धरा पर गूँजती मैमुझमें स्वर ॐकार मैं देवों की प्रतिसाद हूँ महातम मिश्र
सादर शुभ दिवस मित्रों, आज एक गजल आप सभी को सादर प्रस्तुत कर रहा हूँ आशीष की कामना सह........ काली घटा चढ़ाकर सावन बहक रहा है मुंडेर की ये बदरी इक भौरा मचल रहा है आहट ये मिल रही बरसात होगी जमकेदर-दूर चमके बिजुरी मौसम बदल रहा है ॥ रंभा रही है गईया मन पंछी गगन उड़ाए चाहत मिलन जगाए कागा भी गा रहा है ॥ अरम
कहीं प्यार अपना भुला तो न देना निगाहों से अपने गिरा तो न देना ॥चिंता हमारी पर है मंजिल तुम्हारीसोचती हूँ जीया में ये कैसी बीमारी पल पल जिलाकर रुला तो न देना चित सपने सजाकर मिटा तो न देना ||बहुत चाह है मेरे अरमान मन में तडफी हूँ जन्मों-जनम इस लगन मेंइस बार हमकों दगा तो न देना लगा लों गले हस जफा तो
सादर शुभप्रभात आदरणीय मित्रों, एक नई गजल आप सभी को सादर प्रस्तुत हैं आशीष की अनुकंपा सह......"गजल"हम मुलाकात करने गए, पर तुम नाराज से दिखेतुम्हारी नज़रों से पूछा, तो तुम नासाज से दिखे आखिर क्या है तुम्हारी, जिंदगी सफर का मिजाज कभी-कभी तुम अपने आप में, खुशमिजाज से दिखे ।।क्यूँ नहीं करते अपनों से, अपने
आप सभी आदरणीय मिनिषियों को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामना सह मंगल बधाई.......इस पावन पर्व पर कुछ दोहे सादर प्रस्तुत है, हैपी क्रिसमस.....युग युगों से प्रकट हुए, मानव महिमा भेष अम्बर जस छाए रहे, हर्षित धरती शेष ।।प्रभु ईशु पीड़ा सहे, ममता गले लगायदुर्जन को सन्देश दें, आपुहि दियों भुलाय ।।महातम मिश्र
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामना.............नववर्ष है नवहर्ष है नव सूरज की है लालिमा नवचेतना नवसाधना छाए न अब नवकालिमा ऊंचा हिमालय गर्व से पुलकित रहे आकाश में भारत के लाल प्रेम से बोलो नववर्ष नवसालमा॥ महातम मिश्र
सादर शुभदिवस मित्रों , आज सुमुखी सवैया छंद आप सभी को सादर प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया आशीष प्रदान करें.......“सुमुखी सवैया छंद”रहूँ तुझ आपनि जानि प्रिए, तुम बूझत नाहि बुझावत हो। असूवन काढ़ि निकारि जिया कस नैनन नेह लगावत हो॥ऊष्मावत हो बहलावत हो, नहि जीवन छांह दिखावत हो। हटो न कपोल किलोल करो, तजि लाज वफा
सादरसुप्रभात मित्रों, आज युवा उत्कर्ष साहित्य सचित्र रचनाआयोजन में एक कुंडलिया छन्द प्रस्तुत किया जो आप सभी का आशीष चाहती है …… “कुण्डलिया छंद”ठंढी गई आकाश में, तितली गई पातालचारुलता चंचल तितली, कण पराग बेहाल कण पराग बेहाल, समझत बच्चा नाही तितली का उपहार, दिखाऊँ कैसे वाही कह गौत
मंचको सादर निवेदित है एक शीर्षकमुक्तक --आक्रोश/ क्रोध “दोहा-मुक्तक” ------क्रोधी लोभी लालची,बिन मारे मरि जाय कभी न खुद शीतल रहें, औरन दुख दे जाय आक्रोश जस जस बाढे, तस बाढ़े उत्पातमहिमा मानुष कत जड़ें, कनक क्रूरतापाय ॥ महातम मिश्र
मंचको सादर निवेदित है एक शीर्षकमुक्तक --आक्रोश/ क्रोध “दोहा-मुक्तक” ------क्रोधी लोभी लालची,बिन मारे मरि जाय कभी न खुद शीतल रहें, औरन दुख दे जाय आक्रोश जस जस बाढे, तस बाढ़े उत्पातमहिमा मानुष कत जड़ें, कनक क्रूरतापाय ॥ महातम मिश्र
सादर शुभप्रभात, पावन पर्व उत्तरायन पर आप सभी को हार्दिक बधाई सह मंगल शुभकामना......... कुंडलिया छंद सूरज अब उत्तर चला, मकर राशि में आय धुंधा तिलवा पापड़ी, करो दान चित लाय करो दान चित लाय, गंग चल मकर नहावोंखिचड़ी शुभ फलदाय, सुसादर विप्र जिमावोंकह गौतम कविराय, शुभेशुभ होय न अचरजऋतु शादी की आय, दनादन बढ़
सादर शुभ दिवस, एक कुण्डलिया छंद आप सभी को सादर निवेदित है.........गंगा यमुना सरस्वती, संगम है प्रयागसूर्याभिषेक मकर में, तर्पण अहोभाग्यतर्पण अहोभाग्य, गंग ही पूर्वज तारेदुःख क्लेश नियराय, न कोई रौनक जारेकह गौतम कविराय, अनूठा पर्व विहंगाजल जीवन है भाय, स्वच्छ हो पूजित गंगा ।।महातम मिश्र
सादर सुप्रभात मित्रों, चित्र आधारित रचना, शुक्रवार, 22.01.2016 मंच के सभी सम्मानित गुणीजनों के समक्ष सादर प्रस्तुत है एक दोहा आधारित रचना............कैसी कैसी रजनीति, कैसा है संदेश कित गए मेरे नेता, ढूंढ रहा है देशले सादर श्रद्धा सुमन, अर्पण करूँ विनम्र गूंज रहा है नाद नभ, जय नेता जी ब्ो्श्॥् महातम
सादर सुप्रभात मित्रों, चित्र आधारित रचना, शुक्रवार, 22.01.2016 मंच के सभी सम्मानित गुणीजनों के समक्ष सादर प्रस्तुत है एक दोहा आधारित रचना............कैसी कैसी रजनीति, कैसा है संदेश कित गए मेरे नेता, ढूंढ रहा है देशले सादर श्रद्धा सुमन, अर्पण करूँ विनम्र गूंज रहा है नाद नभ, जय नेता जी ब्ो्श्॥् महातम
सादर शुभप्रभात प्रिय मित्रो, एक गजल आप सभी को सादर निवेदित है, जय हिन्द "गजल" दिखी जमीन अपनी, पहाड़ों पर चढ़कर जिसपर चलता रहा, रोज खूब अकड़कर आकाश नजदिक था, जो धुंआ धुंआ दिखा कुठरता सहम गई, न जाने क्योे डरकर ।।उखड़ने लगी साँस, काँपने लगे पाँवरुँध गई आवाज, सर्द हवा बिछाकर ।।सुखने लगे होष्ठ, अनजान पगडंडि
गणतंत्र दिवस के मंगलमय अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई व सादर शुभकमना, इस पावन पर्व पर सादर प्रस्तुत है दोहा मुक्तक....... जय हिन्द, जय भारत"दोहा-मुक्तक"कण कण माटी देश की, देती बहुत शकूनबीरता बलिदान अमर, गर्वित गर्व जनूनदेशभक्ति जैसी भक्ती, वतन जैसा प्यारभारत जैसी भूमि नहि, शिरोधार्य कानून ।।महातम म
सादर शुभ दिवस, एक कुण्डलिया आप सभी को सादर निवेदित है"कुण्डलिया"सरदी आखिर आ गई, लिए बरफ की छाँवकांपे चीन अमेरिका, ध्रूज रहा है पाँवध्रूज रहा है पांव, ठंढ लोगों से कहतीभर दूंगी गोदाम, बरफ झरनों में बहतीकह गौतम कविराय, न है कुदरत बेदरदीनाहक बैर लगाय, पहाड़ा पढ़े न सरदी ।।महातम मिश्र (गौतम)
सादर मंगल दिवस प्रिय मित्रों, एक गजल आप सभी को प्रस्तुत करता हूँ.…….“गजल”रे स्वार्थ तुझपर इत्मीनान हो गया जब मेरा ही नाम मेहमान हो गया उबलती हुई चाय नमकीन संग आई तो यादों का सच बेजूबान हो गया॥हिल गए हाथ जलने लगी उँगलियाँ तो दो बूंद छलका गहरा निशान हो गया॥रुध गया हलक स्वाद बताऊँ तो कैसे हकीकत देखो वक
सादर मंगल दिवस प्रिय मित्रों, एक गजल आप सभी को प्रस्तुत करता हूँ.…….“गजल”रे स्वार्थ तुझपर इत्मीनान हो गया जब मेरा ही नाम मेहमान हो गया उबलती हुई चाय नमकीन संग आई तो यादों का सच बेजूबान हो गया॥हिल गए हाथ जलने लगी उँगलियाँ तो दो बूंद छलका गहरा निशान हो गया॥रुध गया हलक स्वाद बताऊँ तो कैसे हकीकत देखो वक
सादर मंगल दिवस प्रिय मित्रों, एक गजल आप सभी को प्रस्तुत करता हूँ.…….“गजल”रे स्वार्थ तुझपर इत्मीनान हो गया जब मेरा ही नाम मेहमान हो गया उबलती हुई चाय नमकीन संग आई तो यादों का सच बेजूबान हो गया॥हिल गए हाथ जलने लगी उँगलियाँ तो दो बूंद छलका गहरा निशान हो गया॥रुध गया हलक स्वाद बताऊँ तो कैसे हकीकत देखो वक
सादर सुप्रभात मित्रों, आप सभी कास्वागत करते हुए चित्र अभिव्यक्ति आयोजन में एक कुण्डलिया सादरनिवेदित है......... “कुण्डलिया”मन में चिंता हंस करे, जल मलीन है आजउलझ गया शेवाल है, नदियां बिन अंदाज ॥ नदियां बिन अंदाज, हंस उड़ गया चिहुँककर कमल खिले कत जाय, नीर निर्मल जस तजकर कह गौतम कविराय, हंस सुंदर दिखे
सादर शुभ दिवस प्रिय मित्रों, एक कुण्डलिया छंद आप सभी को सादर निवेदित हैइस बार मौनी अमावस्या दिन सोमवार को है जिसका एक अलग ही महात्म्य है अतःइस पावन पर्व को मनन करते हुए यह रचना आप सभी को सादर प्रस्तुत है । प्रयाग संगम में आप भी हमारे साथ माँ गंगा जी में श्रद्धा की डुबकी लगाएं------------------------
सादर शुभ दिवस मित्रों, मंच के समस्त प्रबुद्ध जनों को सादर प्रेषित है एक कुण्डलिया......."कुण्डलिया"छोड़ तुझे जाऊं कहाँ, रे साथी ऋतुराजअब तो पतझड़ आ गया, कैसे कैसे राजकैसे कैसे राज, वाग नहि देता मुर्गाभोर दोपहर होय, मनाऊँ कैसे दुर्गाकह गौतम कविराय, चिरईया दौड़े दौड़पाए नहीं सराय, कहाँ जाए तुझे छोड़ ।।महा
सादर सुप्रभातआदरणीय मित्रों, एक और रचना आप सभी सादर निवेदितहै....... “चेहरा”घनाअंधेरा छाया देखों अंतर्नाद मलिन हुआ रत्तीभर चिंगारी से हर चेहरा अब खिन्न हुआकहते थे ये आतंकी हैं पुरे जगत के अपराधी मानवता की हत्या है चेहरा नकाब से भिन्न हुआ॥ महातम मिश्र
सादर स्नेह प्रिय मित्रो, आप सभी को निवेदित है मेरी एक रचना मुक्तक........“मुक्तक”उठा लो हाथ में खंजर, बुला लो जलजला कोई न होगा बाल बांका भी, लगा लो शिलशिला कोई अमन के हम पुजारी हैं, शांति के हम फरिस्ते हैं न करते वार पीछे से, सुना लो मरहला कोई ॥ महातम मिश्र
सादर सुप्रभात आदरणीय मित्रों, एक गज़लआप सभी को अर्ज करता हूँ, आशीष प्रदान करें........ “गज़ल”दिल ही तो है, लगालूँ क्या गम के बादल, छुपा लूँ क्या। उठा दरद है, मरज़पुराना बिच दांतों के, दबालूँ क्या॥ फूल गुलाबी, खिले हुए हैं गेशू गजरा, सजा लूँ क्या ॥ लगी हुई है, हवा दीवानी दूर नहीं रब, माना लूँ क्या ॥छोड़
सादर सुप्रभात आदरणीय मित्रों, आज एक चित्रअभिव्यक्ति आप सभी को सादर निवेदित है........“दोहा मुक्तक”पारिजात का पुष्प यह, खिली कली मुसकाय देवलोक की सुंदरता, निरखि हृदय ललचायअति पवित्र अति सादगी, अति सुगंध आकार अतिशय कोमल रूप-रंग, शोभा बरनि कि जाय॥ महातम मिश्र
सादर शुभदिवस आदरणीय मित्रों, एक ग़ज़ल आप सभी को सादर निवेदित है, आभार"ग़ज़ल"चलो आज फिर से, लिख लेते पढ़केकिताबों के पन्नों में, खो जाते मिलकेकई बार लिख लिख, मिटाई इबारतअब न लिखेंगे जो, मिट जाए लिखके ।।बचपन की पटरी, न पढ़ती जवानीबहुत नाज रखती, नशा नक्श दिलके ।।कहरहा तजुरबा, वक्त की नजाकतमिलती न शोहरत, न मि
सादर शुभप्रभात प्रिय मित्रों, कुछ दिनों के पश्चात आप सभी से पुन: मिलन का सौभग्य मिला, माँ गंगा का आशीष मिला और आप सभी का स्नेह मिला, आज मंच के सम्मान में एक दोहा शीर्षक मुक्तक आप सभी को सादर निवेदित है...........शीर्षक है, अंधकार/अँधेरा/तिमिर/तीरगी“शीर्षक मुक्तक”मन में उठा विषाद है, अंधकार को दोष रे
सादर शुभप्रभातमित्रगण, आज आप सभी को सादर निवेदित है एक कुण्डलिया छंद.............. “कुण्डलिया छंद”मन जब मन की ना सुने, करे वाद प्रतिवादकुंठित हो विचरण करे, ताहि शरण अवसाद ताहि शरण अवसाद, निरंकुश बैन उचारे लपकि करे अपराध, हताहत रोष पुकारे कह गौतम कविराय, न विकृति बोली सज्जन बिन वाणी अकुलाय, विहंगम ह
सादर शुभदिवस मित्रों, आज एक क्षेत्रीय गीत “खेमटा” आप सभी को सादर निवेदित है......... “खेमटा” बताव पिया कइसन राग मल्हार सुनाव पिया काइसन राग मल्हार॥बिन बदरा सूनी बरशे बदरियाँ काली घटा घिरी आय संवरियाजब गाए ध्वनि स्वर सुर सितार.....बताव पिया कइसन राग मल्हार पूरब गइली पश्चिम न देखलीतोहरी सुरतिया हिया ल
चित्र अभिव्यक्ति मेंआप सभी का हार्दिक स्वागत है सादर सुप्रभात मित्रों........“कुंडलिया छंद”माँ बसंत मैं देख लूँ, आई तेरी कॉखदेख पतझड़आयगा, नवतरु पल्लव शौखनवतरू पल्लव शौख, मातु मैं कली बनूँगीपा तुमसा आकार, धन्य मैं बाग करूंगी कह गौतमकविराय, भ्रूण भी कहता माँ माँ हरियाली लहराय, कोंख से पुलकित है माँ॥ म
आज का छंद है मत्तगयंद/मालती सवैया 211 211 211 211 211 211 211 22"मत्तगयंद/मालती सवैया"मोहन मान बिना कब आवत नाचत मोर घना वन राचेंचातक जाचक देखत है रुक मांगत है घर पावस बांचे।।बोलति बैन न बांसुरि रैन नहीं दिन चैन कहां मन पाएहे मन मोहन आपहि राखहु मांगत हूँ कर जोर लजाए।।महातम मिश्रएक प्रयास आप सभी क
सादर शुभदिवस, मंच को सादर निवेदित है एक कहानी........“हिरनी" एक दिन एक हिरनी जंगल में अपने झुंड से अचानक बिछड़ जाती है। घबराई हुई, डरी हुई, बेतहासा दौड़ते-दौड़ते वह नन्हीं हिरनी जंगल के उस छोर पर आ खड़ी होती है जहां से मनुष्यों की बस्ती यानि की फ़सली मैदानी भाग शुरू होता है। नया दृश्य देखकर वह और भी
मेरी भतीजी की आज विदाई हुई और बोझिल मन छलक गया....... “विदाई”आज सुबह से दिल बार बार कह रहा है गुजरे हुये लम्हों पर इतबार कर रहा है बीत गया एक बचपन आँखों के सामने बेटी की डोली है आँसू विचार कर रहा है॥गत कुछ साल में बड़ी हुई नन्ही सी परीआज घूँघट में रुकसत इंतजार कर रहा है॥खिखिलाती हंसी कूंकती कोयलिया म
01 मार्च , 2016 ____मंगलवार, शीर्षक मुक्तक आयोजनप्रदत शीर्षक, मुद्रा/रुपैया /रुपया आदि“शीर्षक मुक्तक”हे यदुनंदन अब तो आओ, जग की नैया पार लगाओ विवश हुआ है जीवन जीना, एक बार तो चक्र चलाओ। रुपया पैसा जग जीवन में, हे प्रभु बहुत महान हुआ आके देखों अपनी द्वारिका, गोकुल मथुरा पार लगाओ॥महातम मिश्र
“कुंडलिया”चहक चित्त चिंता लिए, चातक चपल चकोर ढेल विवश बस मे नहीं, नाचत नर्तक मोर नाचत नर्तक मोर, विरह में आँसू सारे पंख मचाए शोर, हताशा ठुमका मारे कह गौतम कविराय, बिरह बिना कैसी अहकतोर मोर नहि जाय, तज रे मन कुंठित चहक़॥महातम मिश्र (गौतम)
सादर शुभप्रभात, सादर निवेदित है एक रचना आशीष प्रदान करें ......... “गीत-नवगीत”गीत कैसे लिखूँ नाम तेरे करूँ शब्द शृंगार पहलू समाते नहींकिताबों से मैंने भी सीखा बहुतहुश्न चेहरा पढ़ें मन सुहाते नहीं॥....... गीत कैसे लिखूँ ........ ये शोहरत ये माया की मीठी हंसीलिए पैगाम यह चुलबुली मयकसी होठ तक सुर्खुरु
आप सभी के सादर सम्मान में प्रस्तुत एक मुक्तक......."चित्र अभिव्यक्ति मुक्तक"उखाड़ों मत मुझे फेकों, अरे मैंरेल की पटरी न गुस्सा आग बरसाओ, उठाती हूँतेरी गठरी। जरा सोचो निहारो देख लो मंजिल कहाँजाती मंजिल मैं मिला देती, बिना पहचान की ठठरी॥महातम मिश्र
फागुन के उल्लास पर एक चौताल का नया सृजन, आशीष की अपेक्षा लिए हुए, आप सभी आदरणीय मित्रों को सादर निवेदित है.........."चौताल"फागुन को रंग लगाय गई, पनघट पट आई पनिहारिनरंग रसियन चाह बढ़ाय गई, गागरिया लाई पनिहारिननिहुरि घड़ा अस भरति छबीली.................................मानहु मन बसंत डोलाय गई, पनघट पट आई
सादर निवेदित एक भोजपुरी उलारा जो रंग फ़ाग चौताल इत्यादि के बाद लटका के रूप में गाया जाता है। कल मैनें इसी के अनुरूप एक चौताल पोस्ट किया था जिसका उलारा आज आप सभी मनीषियों को सादर निवेदित है, पनिहारन वही है उसके नखरे देखें"उलारा गीत"कूई पनघट गागर ले आई, इक कमर नचावत पनिहारनछलकाती अधजल कलसा, झुकि प्या
मंच को सादर प्रस्तुत है एक शिवमय रचना, आप सभी पावन शिवरात्री पर मंगल शुभकामना, ॐ नमः शिवाय"कंहरवा तर्ज पर एक प्रयास"डम डम डमरू बजाएं, भूत प्रेत मिली गाएंचली शिव की बारात, बड़ बड़ात रहिया।नंदी नगर नगर, घुमे बसहा बयलसंपवा करे फुफकार, मन डेरात रहिया।।गलवा सोहे रुद्राक्ष, बासुकी जी माल भालसथवां मुनि ऋष
सादर शुभ प्रभात मित्रों,आज विश्व महिला दिवस पर मंच की सभी महिला मित्रों को सादर प्रणाम, महिला शक्ति को सादर नमन। मुझे लगता है कि आज हमें अपने अंतरमन से यह जरूर पुछना चाहिए कि क्या हमारे अबतक के जीवन का एक पल भी बिना किसी महिला के साथ के व्यतित हुआ है। अगर उत्तर नहीं है तो पीछे मुड़कर देखें, जन्म दिया
“कुंडलिया छंद”गर्व सखा कर देश पर, मतरख वृथा विचारमाटी सबकी एक है, क्यों खोदें पहारक्यों खोदें पहार, कांकरा इतर न जाए किसका कैसा भार, तनिक इसपर तो आएं कह गौतम कविराय, फलित नहीं दोषित पर्व विनय सदैव सुहाय, रखो नहीं झूठा गर्व॥महातम मिश्र (गौतम)
सादर शुभप्रभात आदरणीय मित्रों, आज आप सभी को सादर निवेदित है एक ग़ज़ल …………. “गजल”चाहतें चाह बन जाती, अजनवी राह बन जाती मिली ये जिंदगी कैसी, मुकद्दर छांह बन जाती पारस ढूँढने निकला, उठा बोझा पहाड़ों का बांधे पाँव की बेंड़ी, कनक री, राह बन जाती॥ मगर देखों ये भटकन, यहाँ उन्माद की राहें मंज़िले मौत टकराती
सादर निवेदित एक कुंडलिया छंद........"कुंडलिया"तुलसी आँगन में रहें, सदा करे कल्याणदूध पूत स्वस्थ रहें , रोग करे प्रयाणरोग करे प्रयाण, सुन्दर चेहरा दमकेरख विवाह की साध, महीना कातिक चमकेकह गौतम कविराय, अलौकिक महिमा तुलसीविष्णु प्रिया सुहाय, प्रभु संग पूजित तुलसी।।महातम मिश्र (गौतम)
बुरा न मानों होली है.....जोगीरा सररररर..........होली में हुड़दंग मिला है, जश्न धतूरा भाँग.....रंग गुलाबी गाल लगा है, खूब चढ़ा बेईमान.....जोगीरा सरररररझूम रहा है शहर मुहल्ला, खाय मगहिया पानगली गली में शोर मचा है, माया की मुस्कान......जोगीरा सरररररजोर-शोर से हर सेंटर पर है हल्ला इम्तहानबाप सिखाए अकल नक़ल
"गज़ल"कभी कभी तो पतझड़ भी, पुलकित करता है वन उपवनकभी कभी तो बिन बरखा, दिल झूम के गाता है सावनआज पुरानी राग ए जिय, लय मचला तो तूफान उठायौवन जीवन प्यारी छाया, मुंह मोड़ के तपता है मधुवन।।एक बार मुड़कर देखों, उन राहों में खेलता बचपन थायौवन भी था उन्माद लिए, सम्मान सजता है चाहचमन।।हर उम्र सलीके से आती, हर
"बसंत जगा रहा है"शायद वो बसंत है, जो पेड़ों को जगा रहा हैमंजरी आम्र का है, कुच महुआ सहला रहा हैबौर महक रहें हैं बेर के, सुंगंध बिखराए हुएरंभा लचक रही है, बहार कदली फुला रहा है।।किनारे पोखर के सेमर, रंग पानी दिखा रहा हैकपास होनहार रुईया को, खूब चमका रहा हैपीत वदन सरसों, कचनार फूल गुलमोहर काबिखरें हैं
शीर्षक शब्द -नदी/नदिया /दरिया /जलधारा आदि "दोहा मुक्तक"नदी सदी की वेदना, जल कीचड़ लपटायकल बल छल की चाहना, नदिया दर्द बहायजलधारा बाधित हुई, दरिया दुर्गम राहकैसे बिन पानी दई, वंश वेलि बढ़िआय।।महातम मिश्र
"मत्तगयंद/ मालती सवैयाजा मत छोड़ मकान दलान मलाल जिया मत राखहु स्वामीधीरज धारहु आपुहि मानहु जानहु मान न पावत नामी।।खोजत है मृग राखि हिया निज आपनि कोख सुधा कस्तूरीपावत नाहि कुलाच लगाय लगाय जिया जिय साध अधूरी।।शौक श्रृंगार तजौ पिय आपनि भोग विलास अधार न सांईमोह मया तजि आस भरो मन रेत दिवाल कहाँ लगि जाई।।न
“गज़ल, गुबार मेरे”जब अपना कोई होता नहीं, इर्द गिर्द यार मेरे पहुँच जाता हूँ गाँव अपने, दूर रख गुबार मेरे उठा लाता चौबारों में, छिटके हुये दीदारों कोगमों के पहाड़ उड़ा जाते, बचपनी बयार मेरे॥ टहलते हुये मिल जाते, घरघर के आदर्श जहाँ बैठी मेरी माँ मिल जाती, गुजरी हुई द्वार मेरे॥ बचपन के मीत मिलते, भूलेबिसर
शुक्रवार '' चित्र अभिव्यक्ति आयोजन ''( 18.3.2016) ♧♧"कुंडलिया छंद"देखता बादल को है, नित सोचता किसानसीढ़ी होती स्वर्ग की, करता एक विधानकरता एक विधान, दौड़ के उसपर चढ़ताकरता तुझमे छेद, खेत का पानी बढ़ताकह गौतम कविराय, हाथ से लक्ष्य भेदतातुमहि देत बतलाय, सुनहरी फसल देखता।।महातम मिश्र (गौतम)
मालिनी (सम छंद)नगण नगण मगण यगण यगण - 15 वर्णरस रंग लय मोरा फ़ाग हारा जहाँ है सुख दुःख कर मोरा प्राण प्यारा जहाँ है चल सखि चल जाऊं वाहि तारा बनूँगीअंसुवन भरि नैना नेह धारा जहाँ है।।"कुंडलिया"सखि आयो मोर बसंत, तनि गाओ रे फ़ागलगाओ उनहि तन रंग, दुलराओ रे रागदुलराओ रे राग, मोर पिय जाए न दूरलियो मोर अनुराग,
जय माँ सरस्वती जय माँ भारती"उम्मीद"उम्मीद ही उम्मीद है उम्मीद को मत तोड़िएउम्मीद से उम्मीद का हरवक्त नाता जोड़िएउम्मीद पर ही कायम है उम्मीद का संसार उम्मीद है जीवन धरा उम्मीद को मत मोड़िये।।देखिये उम्मीद पर गुमान भी न कीजियेबैठकर उम्मीद पर इत्मीनान भी न लीजिएकर्म ही उम्मीद का संचार करती है गौतमपरिवार क
“शायद वह जा रही है” शायद वह जा रही थी॥ मुड़ मुड़ कर उसका देखना ठिठक कर रुकना फिर पैरों पर चलनाकिसे दिखा रही थी शायद वह जा रही थी॥ बंद दरवाजे को खोलना उसका कुछ बोलना उसका उसको सुने बिना ही पग आगे बढ़ा रही थी शायद वह जा रही थी॥ काँटों से दूर चाहत से दूर दामन में अपने कुछ रख छुपा रही थी शायद वह जा रही
आज शहीदी दिवस पर राष्ट्र महान क्रांतिकारियों को याद कर रहा है। मंच की तरफ से उन्हे सादर श्रद्धाँजलि समर्पित, होली के पावन पर्व पर आप सभी को कोटि कोटि शुभ कामना।“कुंडलिया”होली हमने खेल ली ,सीमा पर ललकार माँ माटी को चूम ली, तेरी जय जयकार तेरी जय जयकार, मातु यह मनुज सितारा लिए तिरंगा साथ, चला यह लाल दु
सादर शुभ दिवस आदरणीय मित्र महोदय/ महोदयापावन होली के शुभ अवसर पर आप को एवं आप के समस्त परिवार को, मेरे और मेरे समस्त परिवार के तरफ से हार्दिक बधाई, शुभकामना और प्रकृति के हर अनुपम रंग प्यार........"चौताल" फ़ाग गीतपट धानी चुनर सरकाओ, लली तोहें रंग डालूंचित चंचल नैन चलाओ, लली रंग अंग डालूंनिली पिली भरि
प्रदत चित्र पर किसी भी विधा मे एक साहित्यिक रचना के तहत"ग़ज़ल, दरख़्त व छाँव"दरख्तों की छाँव तो बिताएं गिन गिनमहल बहुत मुश्किल से काटते हैं दिनकाश रुक पाता नदी लिए पेड़ों की छैयांतो झुरमुटों की छाँव बैठता एक दिन।।शुद्ध पानी दीवारों से छान पिया बहुतचुल्लूभर पीता सतही गन्दगी हटाके घिन।।दोनें में भर लाता
"भक्ति गीत"प्रभो तुमको यादो में पाने लगा हूँखुद को मै खुद ही भुलाने लगा हूँनहीं जानता मेरी मंजिल किधर हैहर गली तेरी मूरत सजाने लगा हूँ ।।न देखा तुझे न मंजिल पर ठहरान मुखड़ा दिखा मै लुभाने लगा हूँ ।।न स्वर ही सुना न शिकवा है कोईमगर राह तेरी गुनगुनाने लगा हूँ ।।पुलिंदा लिए जाऊं दर है अनेकोन उठता वजन भा
विधा - कहानी"बाँग देता नहीं मुर्ग़ा" रोज-रोज, सुबह ही सुबह, जोर-जोर से बाँग देकर पुरे गाँव को जगाने वाला मुर्ग़ा दो दिन से न दिखाई दिया नाहीं सुनाई पड़ा। वैसे भी अब सबकी सुबह अपने-अपने अनुसार हो ही जाती है मुर्गे की किसे पड़ी है। जरुरत ही सबकी यादें ताजा करती है, गांव के एक बच्चे ने अपने हमउम्र से
“कर प्रण सपथ” कर प्रण कर प्रण कर प्रण करप्रण सपथ हर बेटा माँ भारती का चलता उसके पथ वह मुंह कैसे बोलेगा जो बना हुआ है घून बंटा हुआ विचार लिए खींचता गैर का रथ॥बेचा जिसने नारोंको विचारोको त्योहारोंकोचले भंजाने मूर्ख वही माँ के जयकारों कोकहते हैं लिखा नहीं भारत के संबिधान मेंभारत माँ की जय कैसे देदूँ मै
शीर्षक मुक्तक, शीर्षक-नभ / गगन/ अम्बर/आकाश आदि पर सादर निवेदित है एक दोहा मुक्तक........“दोहा मुक्तक”आँसू सूखे नभ गगन, धरती है बेचैन कब ले आएगा पवन, मेरी रातें चैन खिलूंगी मैं पोर पोर, डाली मेरे बौरछम-छम गाऊँगी सखी, लहरी कोयल बैन॥महातम मिश्र (गौतम)
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना……… “दोहा”विक्रम संवत वर्ष पर, वर्षाभिनंदन भाय शुक्ल प्रतिपदा चैत्र से, माँ वंदन शोभाय॥ नवरात्रि श्रद्धा सुमन, कंकू चंदन छाय जय हो रामनवमी की, दशरथ नंदन राय॥महातम मिश्र (गौतम)
“चइता- गीतसखी मन साधि पुरइबे हो रामा, चइत पिया अइहेंननद जेठानी के ताना मेंहणानाहीं पिया भेद बतईबे हो रामा। चइत पिया अइहें..... अनिवन बरन जेवनार बनईबे, सोनवा की थाल जिमइबे हो रामा॥ चइत पिया अईहें...... पनवा गिलौरी लवंग इलायची बिरवा इतर लगइबे हो रामा॥ चइत पिया अईहें......सोरहों शृं
चित्र अभिव्यक्ति पर सादर प्रेषित एक कुंडलिया..............................."कुंडलिया"चला लक्ष्य नभ तीर है, अर्जुन का अंदाजसमझ गया है सारथी, देखा वीर मिजाजदेखा वीर मिजाज, दिशाएं रथ की मोड़ीलिए सत्य आवाज, द्रोपदी बेवस दौड़ीकह गौतम कविराय, काहि महाभारत भलाघर में नहि पोसाय, तीर दुश्मनी तक चला।।महातम मिश्र
मंच को समर्पित एक लघु कथा/कहानी......."झबरी और मतेल्हु"समय बीत जाता है यादें रह जाती हैं। आज उन्हीं यादों की फहरिस्त में से झबरी की याद आ गई, जो हर वक्त छोटकी काकी के आस-पास घूमा करती थी। कितना भी डाटों-मारों चिपकी रहती थी, काकी के पल्लू से। म्याऊं म्याऊं करते हुए सबकी झिड़क सहते हुए, घर की चहारदीवार
“हाइकू”नाम भकोल दुलहा बकलोल घोड़ी चढ़ा है॥-१धनी है बाप खूब सजी दुकान झूमें बाराती॥– २कन्या की शादी वारीश की मुनादी आई बारात॥ -३सुहागिन है वर बड़ भाग्य है ले सात फेरा॥ -४शहनाई है कुल से विदाई है शादी बारात॥ -५महातम मिश्र (गौतम)
शीर्षक- भाग्य/किस्मत आदि“दोहा मुक्तक”किस्मत बहुत महान है, पुलक न आए हाथ कर्म फलित होता सदा, अधिक निभाए साथ न बैठो मन भाग्य पर, कर्म करो चितलाय लिखा लिलार मिटे नहीं, दुर्गुन किसका नाथ॥ महातम मिश्र, गौतम
“कुंडलिया”मन कहता काला करूँ, काले धन की बातपर कितना काला करूँ, किससे किससे घात किससे किससे घात, कहाँ छूपाऊँ बाला हर महफिल की शान, सराहूँ कैसे हाला कह गौतम कविराय, कलंकित है काला धन जल्दी करों उपाय, नहीं तो मरता है मन॥महातम मिश्र, गौतम
गज़ल “दर्द दामन”तुम्ही ने चैन चुराना, हमें सिखाया था प्यार मैंने भी किया, तुम्हें बताया था तेरा वो वक्त जमाना दिखाया तुमने दिल से पुछो दिल किसने लगाया था॥सुबह की शाम हुई चाहतें परवान हुई धूप धधकी, छांव किसने ओढ़ाया था॥ सरक जाने लगी तिजहर ऐ नशेमन धूल गोधूली गुल किसने उड़ाया था॥बरसने लगी बरखा रात पुरवाई
विक्रम संवत नववर्ष की बधाई , चैती नवरात्र की मंगलमयी शुभकामना आदरणीय विद्वतगण ..... चित्र अभिव्यक्ति“कुंडलिया”तीन पीढ़ियाँ मिल रहीं,, नाती बेटा बाप कितना सुंदर सृजन है, नैना हरषे आप नैना हरषे आप, अंगुली पकड़ के चलना तुतली बोली थाप, ठिठक कर बाबा कहना कह गौतम कविराय, हृदय में बाजते बीन देखत मन हरषाय, मि
"दोहा" माँ की वंदना..............क्षमा करो गलती प्रभो, गौरी नन्द गणेशमोदक लड्डू पाइए, शिव सुत प्रभु महेश।।- 1जगजननी भयहारिणी, कृपा करो हे मातुसहकुल मैं वंदन करूँ, नव दिन माँ नवरातु।।-3शिव शम्भू शांत करें, माँ काली का रोषहाथ जोर विनती करूँ, पाऊँ फल आशीष।।- 3ले अच्छत दूब चंदन, धूप दीप नैवेदकरूँ आरती क
मंच को सादर निवेदित है एक कहानी.........."झगडू काका का सत्य और उनकी झगड़ैल गाय"यूँ तो एक भले आदमी थे झगडूं काका पर थोड़े जिद्दी थे ऊपर से सत्य बोलने का भूत उनके शर पर सवार था। अपने मन ही अपने आप को सत्यवादी मानते थे और हर बात पर, हर जगह पंहुचकर अपने सत्य को उगल देते थे। उमर का लिहाज कोई कबतक करेगा, न
मंच को सादर निवेदित है एक कहानी.........."झगडू काका का सत्य और उनकी झगड़ैल गाय"यूँ तो एक भले आदमी थे झगडूं काका पर थोड़े जिद्दी थे ऊपर से सत्य बोलने का भूत उनके शर पर सवार था। अपने मन ही अपने आप को सत्यवादी मानते थे और हर बात पर, हर जगह पंहुचकर अपने सत्य को उगल देते थे। उमर का लिहाज कोई कबतक करेगा, न
“हाइकू”तुक बंद है कविता पसंद है वाह रे वाह॥ -1 लिखता हूँ मैंपढ़ता कोई और आह्लाद है न॥– 2 साहित्य साथीबड़े बड़े महारथी शब्द चैन है॥– 3गुम होते हैं गुमनाम भी हैं ही कवि है कवि॥– 4 छाप छापते पन्नो पर पन्ना है खूब सजाते॥– 5 खुश हो जाते मन ही मुसुकाते कहाँ अघाते॥- 6लिख जाते हैं शब्द की चाह बढ़ा रास्त दिखाते॥
शीर्षक मुक्तक, प्रदत शीर्षक / शक्ति /बल/ताकत आदि“दोहा मुक्तक”ताकत बल भी खूब है, जब तक रहे शरीर जर जमीन और जोरू, संचित रहे जमीर बुढ़ापा बिन ताकत का, गई जवानी आय बिना शक्ती के साधू, कोई कहाँ अमीर॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी
मंच को सादर निवेदित है कुंडलिया छंद......."कुंडलिया"गर्मी का है बचपना, जीवन हुआ मोहालअभी जवानी देखना, बाकी है दिन लालबाकी है दिन लाल, दनादन पारा चढ़तामौसम है बेहाल, दोपहर सूरज बढ़ताकह गौतम कविराय, पेड़ पौधों में नर्मीझुके हुए कुमलाय, कपारे चढ़ती गर्मी।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
मंच को सादर निवेदित है एक गजल........ मित्रों, महाष्टमी, रामनवमी व नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना, बधाई व मंगलमयी प्यार........नववर्ष पर आप सभी लोग खूब खुश रहें, धूमधाम से विक्रम संवत का जश्न मनाये यही हमारा नववर्ष है जिसपर हमें नाज है इस पर अपने उन्नत विचारों का खूब आदान-प्रदान करें........जय भारत मा
मंच को सादर प्रस्तुत है एक ग़ज़ल...........पाकिस्तान को सन्देश.....भाई मेरे........भटके को राह मिल जाती डूबते को थाह मिल जाती कदम एक नहीं चला पाए कैसे तुम्हें पनाह मिल जाती।।तजुर्बा कहता है पूछो जराकिसे मुफ़्त सलाह मिल जाती।।कब गुनाह का जुदा घर होताछुपी जिश्म गुनाह मिल जाती ।।खुद गिरकर निचे उठोगे कैसेन
एवं मंच को सादर प्रस्तुत है एक कहानी........गोलू अपने माँ बाप का इकलौता दुलारा बेटा है। बहुत लाड़ प्यार में शरारती होना लाजमी है और बचपन का यह गुण सराहना का पात्र भी है । धीरे धीरे गोलू बढ़ने लगा उसके साथ ही साथ उसकी शरारत भी बढ़ने लगी। साथी बच्चों में वह खूब मशहूर है कारण उसके पास मंहगे खिलौनों का भंड
मंच को सादर प्रस्तुत है मुक्तक, शीर्षक- उल्हास, आनन्द, उत्सव, आदि"दोहा मुक्तक"उल्हास अतिरेक लिए, शादी में धक धाँय आनंद का विनाश है, बंदुक बरात जाय खुशी को भी मातम में, बदलते क्यों लोगकैसी शहनाई आज, बजती उत्सव आय॥महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी
मंच के सम्मान में प्रस्तुत है कुछ दोहे......"दोहा"कटिया लगभग हो गई, खेत हुए वीरानजूंझ रहा किसान है, सन्न हुआ खलिहान।।-1नौ मन ना गेहूं हुआ, ना राधा कर नाचकर्जे वाले आ गए, लिए लकुड़िया साच।।-2मरता कहाँ किसान है, मरता उसका नीरखेतों में वह लाश है, उसको कैसी पीर।।-3पानी में सड़ता रहा, पानी उगता धानबिन पानी
सम्मानित मंच के सम्मुख सादर प्रस्तुत है एक गज़ल..............“गज़ल”जिंदगी ख्वाब अपनी सजाती रहीवो इधर से उधर गुनगुनाती रही पास आती गई मयकसी रात मेंनींद जगती रही वो जागती रही॥ पास आने की जुर्रत न जेहन हुई दूर दर घर दीपावली जलाती रही॥ शीलशिला साथ रह सुर्खुरु हो गईसुर्ख लाली लबों पर लजाती रही॥ना चाहत चली
कजरी गीत....चइताधुन पुतरी खेल न हम जइबें, हो मैया ताल तलैया....... वहि ताल तलैया मैया, सारी सखियाँ सहेलिया बेर के बिरवा सजइबें, हो मैया ताल तलैया....... गोबर से गोठब मैया, तोरी सुनरी महलिया नगवा के दूध चढ़इबें, हो मैया ताल तलैया...... कदमा की डाली मैया, डारब रेशमी डोरिया नेहिया के खूब झुलइबें, हो
देसज कजरी लोकगीत...... मोहन बाँके छैल बिहारी, सखियाकीन्ह लाचारी ना ले गयो चीर कदम की डारी, हम सखी रहीउघारी नामोहन हम तो शरम की मारी, रखि लो लाजहमारी ना....मोहन बाँके छैल बिहारी, सखियाकीन्ह लाचारी ना अब ना कबहुँ उघर पग डारब, भूल भई जलभारी नामोहन हम तो विरह की मारी, रखि लो लाजहमारी ना.....मोहन बाँके
उगे दिनों में तारे धूप, रातों को दिखाए सपना इश्तहारीचौराहे पर, देख लटक चेहरा अपना इतनेनादां भी नहीं हम, छिछले राज न समझ पाएं गफलतमें भटके हुए हैं, उतार ले मोहरा अपना।।चिढ़ रही हैं लचरती सड़क, मौन बेहयाई देखकर उछलतेकीचड़ के छीटें, तक दामन दरवेश अपना।।कहीं ऐसा कुंहराम न तक, मचाएं फूदकती गलियां सलामतहाथों
वज़्न - 212---212---212 अर्कान - फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन बहर - बहरे-मुतदारिक मुसद्दस सालिम सांकेतिक गाना- आज जाने की ज़िद ना करोप्यार पाने की रट ना करोजीतजाने का जिद ना करोदेखलो हार दिल आपनादिललगाने की हद ना करो।।येविलाशक अजब चीज है पासआने का पद ना करो।।होगयी गर किसी को कभीदूरजाने का नद ना करो।।आजमाले इस
लघुकथा, पैसा और इंसानगर्मी का महीना था | बागमें कुछ बच्चें और बडें तिलमिलाती गर्मी से बचने के लिए पेड़ों की छाँव में दोपहरीबिता रहें थे | बच्चेंअपने खेलों में मसगुल थे तो बडें-बूढें लाचारी में अपना समय काट रहें थे | उन्हींमें से दो बच्चें जो लगभग पन्द्रह से कम उम्र के थे, आपस में पैसा-पैसा औरइन्शान-इ
“हाइकू”कहते हैं ये बरसाती तरु हैं भरा है पानी॥-1 सूख न जाएँ उपवन झरने पिलाते पानी॥-2 बैठना छांव शीतल हवा है तपता पानी॥-3 संग चल तो हरी भरी धरती ओढ़ती पानी॥-4 गिरता पानीसड़क ये वीरानी लुटाएँ पानी॥-5महातम मिश्र, गौतमगोरखपुरी
कुछ दोहे..........छद्म रूप तेरा दिखा, कैसा रे इंसानबसरौदा रौदी सड़क, खेतोंमें शैतान॥- 1माँ बेटी के रूप को, जबह किया हैवान आतीघिन है देखकर, धरतीलहू लुहान॥- 2गिरेगी कत मानवता, के होगी पहचाननपायी लंका ऐसी, जबगए बीर हनुमान॥- 3सेना कैसे पल रही, किसका कहाँ मकानजरजमीनजोरू विकल, चहरोंपर मुस्कान॥- 4हर घर की ब
दोहा मुक्तक........ पाप पाप होता सदा, कोई भी होबाप डंश जाता है आबरू, दूजे के सहआपदुष्कर्म ही नींव रखे, उपजे अनीतिधामपीड़ा दे जाते दुसह, पाल नबिच्छू सांप॥ महातम मिश्र, गौतमगोरखपुरी
सादर सुप्रभात मित्रों कल नेट समस्या के वजह से मन की बात न कह पाया, अत, पावन नागपंचमी की बधाई आज स्वीकारें......"नागपंचमी की याद"कल की बात है गाँव फोन किया तो पता चला आज दिन में नागपंचमी है और शाम को नेवान। मैंने कहाँ मना लेना भाई, साल का त्यौहार है। हम तो ठहरे परदेशी कहाँ नागपंचमी और कहाँ नेवान। बास
1-ये खेत उगाते हरियाली करो न रंगाई बीज खूं न भरोउगी है बेहयाई॥2- है यही सड़कजो जाती तुम्हारे घर निहारती खेतदेखते हुए नेत॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
चित्र अभिव्यक्ति आयोजन“कुंडलिया” सतरंज के विसात पर, मोहरे तो अनेकचलन लगी है चातुरी, निंदा नियत न नेक निंदा नियत न नेक, वजीर घिर गया राजागफलत का है खेल , बजाए जनता बाजा गौतम घोड़ा साध, खेल में खेल न रंज राजा को दे मात, अढ़ैया पढ़ें सतरंज॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
(मात्रा-भार, 17)दरपन को झरोखा बनने दो हर झील में पुष्प सँवरने दो मत देख रे भौंरें की सूरत अन्तर्मना चाह पनपने दो॥.....दरपन को झरोखा बनने दोसूरतों के दाग उभरने दोहर छिद्र से बूंद बरसने दो यौवन उन्मादी दगा दरपनकलई को तनिक उतरने दो॥.....दरपन को झरोखा बनने दोजो कहती हैं आँखें कहने दो दागों का दौरा पसरन