मंच को सादर प्रस्तुत है एक ग़ज़ल...........
पाकिस्तान को सन्देश.....भाई मेरे........
भटके को राह मिल जाती
डूबते को थाह मिल जाती
कदम एक नहीं चला पाए
कैसे तुम्हें पनाह मिल जाती।।
तजुर्बा कहता है पूछो जरा
किसे मुफ़्त सलाह मिल जाती।।
कब गुनाह का जुदा घर होता
छुपी जिश्म गुनाह मिल जाती ।।
खुद गिरकर निचे उठोगे कैसे
नदियां धारा प्रवाह मिल जाती।।
सत्य छुपता नहीं घने अँधेरे में
कड़ी जुर्म को गवाह मिल जाती।।
साक्षी मुकर भी जाए गौतम
वकालतें नई जिराह मिल जाती।।
धोखे की टाटी में छल का खम्भा
सत्य सुलह को छांह मिल जाती।।
रे पाक पाकीजा मान भी लूँ तुझे
गर उजड़े चमन न आह मिल जाती।।
देख एक बार रब को याद करके
कैसे आतंक से निगाह मिल जाती।।
रख अपने घर मुरझाये माहौल को
यूँहीं नहीं कश्ती तबाह मिल जाती।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी