"मत्तगयंद/ मालती सवैया
जा मत छोड़ मकान दलान मलाल जिया मत राखहु स्वामी
धीरज धारहु आपुहि मानहु जानहु मान न पावत नामी।।
खोजत है मृग राखि हिया निज आपनि कोख सुधा कस्तूरी
पावत नाहि कुलाच लगाय लगाय जिया जिय साध अधूरी।।
शौक श्रृंगार तजौ पिय आपनि भोग विलास अधार न सांई
मोह मया तजि आस भरो मन रेत दिवाल कहाँ लगि जाई।।
नाहक ऊसर खेत करो मत बादल वारिधि ताप मिटाई
देखहु भूमि पुकार रही रखि बेंग बिया मन करो न ढिठाई।।
महातम मिश्र