*शिल्प~ मगण,भगण,सगण* (222, 211, 112), 9 वर्ण, 4 चरण, 2-2 समतुकांत
"पवित्रा छंद"
गोरी जागे सपन लिए
नैना खोले नमन लिए।
भोली भाली सुमन सखी
चाहें तेरी चमन सखी।।-1
कोरे कोरे नयन तिरे
सीधे साधे पवन झिरे।
कैसी है तू तरल सखी
प्यासे नैना सजल सखी।।-2
बोलो बैठो अनुज कभी
भैया भाभी महल सभी।
आओ प्यारे पहल करो
मीठी मीठी चुहल भरो।।-3
देखो रैना सरक रही
द्वारे मैना फरक रही।
साथी सारे मचल रहे
मौका मुग्धा मलक रहे।।-4
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी