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वक्त

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वक्त से एक टांका लगा लें तो बाद में नौ टाँके नहीं लगाने पड़ते हैं।  खेल ख़त्म तो बादशाह व प्यादे को एक ही डिब्बे में बंद करते हैं।। हाथी को कितना भी नहला दो वह अपने तन पर कीचड मल देगा।  भेड़िये क

जीवन की सच्चाई पर आधारित मेरी एक और रचना आप सबको कैसी लगी अपने कमैंट्स में जरूर बताइयेगा 🙏

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✒✒अश्विनी कुमार मिश्रा की कलम✒✒


गुज़रे हुए वक़्त को हम भी ढूंढते हैं

मगर

कैश के जाते ही ऐश बंद हो गई हैं ।टोल फ्री रोड हो गए ।अब बियर बारों की भीड़ बैंक मे चली गई।मजदूरो का पी.एफ, मालिको ने जमा करा दिया।पत्नियों ने मुश्किल वक्त मे खर्चा करने वाले पैसो को, मिया जी को पकड़ा दिया।सड़कों मे लोग कम, पैसा ज्यादा घूम रहा हैं। जुए सट्टे अब सब बंद पड़े हैं।महंगी गाडियाँ, दिल्ली की सड़

वक्त ने किससे क्या क्या न करवाया हैकभी रोते को हंसाया है तो कभी हँसते को रुलाया हैकभी ख़ुशी से दामन भर देता है तो कभीग़मों को तकदीर में शामिल कर देता हैगम और ख़ुशी पर तो वक्त की चिलमन पड़ी हैजब जिसके चिलमन को गिराया हैतो वक्त सामने आया हैवक्त ने किसी का इंतजार कब कियाहर आदमी वक्त के हांथों मजबूर हुआवक्त

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वक्त भागता रहा✒️वक्त भागता रहा, ज़िंदगी ठहर गई,एक कोशिका खिली विश्व पर फहर गई।एक अंश जीव का प्राण से रहित मगर,छा गया ज़मीन पर बन गया बड़ा कहर।आम ज़िंदगी रुकी खास लोग बंध में,बाँटता चला गया धूर्त देश अंध में।तोड़ मानदंड को मौत की लहर गई,वक्त भागता रहा, ज़िंदगी ठहर गई।चंद, बाँटते खुशी शेष बेचकर कफ़न,मानवी स्

ना वक्त को ज़रूरत तेरी है, ना ज़रूरत वक्त को मेरी है.वक्त तो चलता है चाल अपनी, ज़रूरत वक्त की हम तुम को है. वक्त के साथ जो भी चल पड़ा, वक्त उसका, ये ज़माना उसका है. वक्त की मुश्क से ना कोई बचा, ना जाने शाह कितने इसमें मिल गए. था जिन्ह

वक्त लगता है ख़ुद का वक्त बनाने में, वक्त निकल जाता है यूँही वक्त बनाने में. ना वक्त रहा मेरा ना वक्त रहा उनका, निकल गया वक्त यूँही करीब आने में. करीब आये तो वक्त यूँही गुज़र गया, दोनों ने कर दी यूँ देर करीब आने में. इश्क था और

वक्त से आज अभी मुलाकात हुई मेरी, कहने लगा, देरी से बहुत खफा हूँ तेरी.जो जब करना था तब तूने नहीं किया,सुधर जा,गलतियां हो चुकी है बहुतेरी.जाग जा आलस को कह कि भाग जा,मेहनत से किस्मत चमक जाएगी तेरी.रुकना नहीं अब झुकना भी नहीं कहीं ,तभी तो होगी मंजिल से पहचान तेरी. कुछ नय

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कहानी------------समय का मोल...!!अमितेश कुमार ओझाकड़ाके की ठंड में झोपड़ी के पास रिक्शे की खड़खड़ाहट से भोला की पत्नी और बेटा चौंक उठे। अनायास ही उन्हें कुछ  प्रतिकूलता का भान हुआ। क्योंकि भोला को और देर से घर पहुंचना था। लेकिन अपेक्षा से काफी पहले ही वह घर लौट आया था। जरूर कुछ गड़बड़ हुई.... भोला की

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