एक शौचालय राशि कि चाहत रखने वाले आम आदमी कि लघु कथा।
हास्य-व्यंग्य पर आधारित लिखे मेरे प्रसंग
विचारो का द्वंद कैसे इंसान पर हावी हो जाता है । किसी को समझे बिना भला बुरा कह जाता है। उसके व्यक्तित्व के बारे में बिना सोचे अनुमान लगा लेता है । जून में गर्मी के दिन थे बहुत बेहाल सूरज ने भी रूप बनाया था विकराल तभी की बात बताता हू एक छोटा सा किस्स
भैंस की दुख भरी कहानी हास्य व्यंग
हास्य का एक रूप यह भी है कि फिल्म या प्रोग्राम की पैरोडी बने जाये, जो अपने तौर पर मूल फिल्म या प्रोग्राम से अलग मनोरंजन करे... तो प्रस्तुत किताब इसी तरह की है जिसमे सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से कई अलग तरह के प्रसंग लिए गये हैं.. कृपया इसे मनोरंजन के
देश के सभी ऐसे हुनरमंदो तहे दिल से प्रणाम जो इस गुर में माहिर है.. वे सभी डिग्रीधारी हुनर मंद लोग जो इनके आगे पीछे भी घूमने से कतराते है आदमी जितना हिंसक और जहरीले जानवर से नहीं डरता जितना इन चमचों से डरता है... तो चलिए कुछ गुर आप भी सीख लीजिए शायद क
श्रीलाल शुक्ल को लखनऊ जनपद के समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे। उन्होंने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 1949 में राज्य सिविल सेवासे नौकरी शुरू की। 1983 में भारतीय प
इस किताब में हास्य व्यंग्य से संबंधित 30 कहानियां हैं । आज के जमाने में जब आदमी चारों तरफ से परेशान हैं तब उसके होठों को एक मुस्कान देना सबसे पुण्य का काम है । विभिन्न कहानियों के द्वारा यह कार्य करने का प्रयास किया गया है । उम्मीद है कि यह किताब आपक
रोज की समस्यायों से जूझता आम आदमी और खटमल के तरह खून चूसते सरकारी बाबू...
बड़े बेरहम होते हैं ये दिल आ जाए किसी पर समझाना हो जाए मुश्किल बड़े बेरहम होते हैं ये दिल
@त्रिɓհմϖαη सुनो डियर #😘 तुम जहां कहीं भी हो चुपचाप रजाई में पड़ी रहो. बाहर बहुत ठंडी है निकलने की कौनो जरूरत ना है और ना ही तोहरे सोने से कौनो काम रुका हुआ है, समझीं..!! दो के बजाय तीन चाय पी लो लेकिन रजाई से निकलना तभी जब मौसम तनिक सा गरम हो. अगर
रामखिलावन एक सीधा साधा गांव का युवक है पर उसने बहुत ही जल्दी पोस्ट ग्रेजुएट पूरी की साथ ही बीएड भी पूरा किया और वही एक सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर भी बन गया, उसने इतिहास में PhD भी कर लिया , सब कुछ अच्छा था , पर सबसे बड़ी समस्या थी उसकी शादी ,व
जिंदगी की आपाधापी से उपजी अकुलाहट, प्रतिस्पर्धा का कहर, अपनों से बढ़ती दूरियां, संवेदनाओं की सिकुड़ती जमीन, काम के बढ़ते घंटे और महत्वाकांक्षाओं की ऊंची उड़ानों ने हमारी जिंदगी को तनाव से भर दिया है। हालांकि, कोमल भावनाओं की टूटती इन कड़ियों के बीच ख
किसी भी विषय को देखने का लेखिका का एक अलग ही नजरिया है, जिससे हास्य का जन्म तो होता है पर वह सोचने को मजबूर करता है। किसी के माथे पर चिंता की लकीर डालना आसान है, पर मुख पर मुस्कराहट की रेखा खींचना मुश्किल।। मुस्कराकर सोचने को मजबूर होने के लिए पढ़े-
आज की दुनिया में इंसान को , कोई कदर नहीं, सैतानो को आज कल वसेरा होता है ! रूप रंग भेष भूसा सब रंग अनेक है , बड़े छोटे को कद्र नहीं सब कुछ फेक है , भगवन के भी घर में सैतानो का रेक है , मत पूछो इंसान को कैसे बसेरा होता है !सैतानो ....... संभल संभल क
देश के खेवनहार तुम्हारी ऐसी - तैसी करेंगे नैया पार तुम्हारी ऐसी- तैसी !! डाकू , चोर, लुटेरे , गद्दारों के वंशज बनते इज्जतदार तुम्हारी ऐसी- तैसी !! प्रजातंत्र के मखमल में पैबंद टाट के कैसे हो सरकार तुम्हारी ऐसी- तैसी !! खून पसीने से सिंचित भारत क
🦎🐊🐦🦎🐊🌺 तेरी ओर मेरी हे जनमो जनम की प्रित तु मेरी छीपकली और मै तेरी भिंत 😀🤣🦎🐊🐦 भिंत = दीवार 😀🔮😀😂🤣🌺😁💗 🌹 तेरी और मेरी जनमो जनम की प्रित सदा रही है चाहै तू दूर रहे या पास🌛 तू मेरी छीपकली ओर मै तैरी भिंत हू मतलब जेसै छिपक
किसी फिल्म की कहानी को आगे हास्य के रूप में परोसा जाये तो वों भी कम मनोरंजक नहीं होगी.. प्रस्तुत किताब एक ऐसी ही कल्पना है, जिसमे अलग-अलग कई हास्य-व्यंग्य लिए गये हैं...