लो अपना यह न्यास देवता !
बाँह गहो गुणधाम !
भक्त और क्या करे सिवा,
लेने के पावन नाम ?
स्वागत नियति-नियत क्षण मेरे,
बजा विजय की भेरी;
मुक्तिदूत ! जानें कब से थी
मुझे प्रतीक्षा तेरी ।
और कौन तुम तृषित ? अरे,
चुल्लू भर शोणित को ही,
तुम आये ले शस्त्र, व्यर्थ
बनकर समाज के द्रोही ।
मेरा शोणित शमित सके कर
अगर किसी का ताप
घर बैठे पहुँचा आऊँ मैं
उसे न क्यों चुपचाप ?
क्षमा करो देवाधिदेव !
अपराधी किसका कौन ?
इच्छा राम, प्रधान तुम्हारी,
दोष हमारे गौण ।
विदा युध्द जर्जर वसुधे !
किस तरह करूं परितोष?
भेजें राम मुझे लेकर फिर
कभी अमृत का कोष ।
फूंक जगत के कर्णकुहर में
देव ! तुम्हारा नाम,
क्षमा करो देवाधिदेव,
आया, आया हे राम !
(हे राम=बापू के मुख से निकले हुए अन्तिम शब्द)