ऊपर-ऊपर सब स्वांग, कहीं कुछ नहीं सार,
केवल भाषण की लड़ी, तिरंगे का तोरण ।
कुछ से कुछ होने को तो आजादी न मिली,
वह मिली गुलामी की ही नकल बढ़ाने को।
आजादी खादी के कुरते की एक बटन,
आजादी टोपी एक नुकीली तनी हुई।
फैशनदारों के लिए नया फैशन निकला,
मोटर में बांधो तीन रंगवाला चिथड़ा
औ' गिनो कि आँखें पड़ती हैं कितनी हम पर,
हम पर यानी आजादी के पैगम्बर पर ।
है कहाँ तुम्हारी आजादी? क्या स्कूलों में,
अनुशासन लंगड़ा हुआ जहाँ बिललाता है?
हडताल, कर्ण-भेदी प्रचंड कोलाहल में
है जहाँ गर्क भावी नेताओं के समूह?
या उस इंजन पर जिसे ड्राइवर खड़ा छोड़
है चला गया बाजार कहीं सुरती लाने?
अथवा मुट्ठी भर उन नोटों के बंडल में
हो रहे देखकर जिन्हें चाँद-सूरज अधीर ?
टोपी कहती है, मैं थैली बन सकती हूं ।
कुरता कहता है, मुझे बोरिया ही कर लो।
ईमान बचाकर कहता है, आँखें सबकी,
बिकने को हूं तैयार, खुशी हो जो दे दो।
सौदा करने को चले देख सब एक लग्न ।
बहती गंगा में पद पखारने की खातिर
देखो, तट पर कैसों-कैसों की जुटी भीड़?
आजादी आई नहीं, विकट कुहराम मचा,
है मची हुई अच्छों-अच्छों में मार-पीट ।
कहते हैं, जो थे साथु-सरीखे पाक-साफ,
डुबकियां लगा वे भी अब पानी पीते हैं ।
बिक रही आग के मोल आज हर जिन्स, मगर,
अफसोस, आदमीयत की ही कीमत न रही
आ रही, शोर है, आजादी की वर्षगाँठ ।
है मुझे हुक्म, कोई उन्मादक गीत लिखो,
जी, बहुत खूब सेवा में हाजिर हुआ अभी
अंगारों की कड़ियोंबाली कविता लेकर ।
लेकिन, यह क्या? सपनों में हाथ बढ़ाने पर
आता न पकड़ में कुछ भी, है सब शून्य-शून्य ।
मुट्ठी रह जाती रिक्त, नहीं कुछ मी मिलता,
कल्पना फूंक से भरी हुई, पर, पोली है।
महंगी आजादी के जीवन का एक साल !
बापू को डाला मार; नमक का दाम दिया।
महँगी आजादी के जीवन का एक साल,
कश्मीर-हैदराबाद धधकते-जलते हैं ।
जाड़े का मौसिम, बड़े जोर की ठंडक है।
है देश ठिठुर कर ताप रहा इस ज्वाला को ।
महंगी आजादी की यह पहली साल-गिरह,
रहने दो; बापू की वर्षी है दूर नहीं।
औ' धूमधाम से नहीं मनाओगे तुम क्या
कुछ ही वर्षों में दशक चोरबाजारी का?
छल, छद्म, कपट का, राजनीति की तिकड़म का,
क्रम-क्रम से उत्सव इनका भी होना चाहिए।
लपटों से चारों और घिरी आजादी है,
हां, अभी ग्रन्थ को खोल धर्म से राय करो,
हिंसा हो जाती वैध कहां तक सहने पर?
गोलियां दगाने लगे शत्रु जब, तब उनको
गोलों से रोकें याकि सूत के पोलों से ?
लपटों से चारों ओर घिरी आजादी है;
मत हिलो-डुलो, बस, ध्यान लगायो, सुनो, गुनो,
है कौन ठीक? गांधीवादी या कम्यूनिस्ट?
या सोशलिस्ट जो कांग्रेस से अलग कूद
कुछ नये ढंग के शस्त्र बनानेवाले हैं ?
व्याख्यान सुनो, शायरी करो, सरकारों को
गालियां सुनायो, थूको भीतर का बुखार ।
सरदार-जवाहरलाल नहीं कुछ भी निकले,
हम होते तो किस्मत ही आज बदल जाती।
औ' आजादी की सालगिरह के आने पर
तोरण सजवाओ और निकालो विशेषांक।
दर्शनवेत्तायों के बेटे क्या और करें ?
हां, खूब मनाओ आजादी की वर्षगाँठ,
पर, नहीं इस खुशी में कि साल भर हुआ उसे ।
इसलिए कि वह अब तक भी तुमसे छिनी नहीं ।
(15 अगस्त, 1948 ई.