"है कौन ?", "मुसाफिर वही, कि जो कल आया था,
या कल जो था मैं, आज उसी की छाया हँ,
जाते-जाते कल छट गये कुछ स्वप्न यहीं,
खोजते रात में आज उन्हीं को आया हँ ।
"जीते हैं मेरे स्वप्न ? आपने देखा था?"
"हाँ, छोड़ गये थे यहाँ आप ही दूब हरी ?
अफसोस मगर, कल शाम आपके जाते ही
चर गई उसे जड़-मूल-सहित मेरी बकरी ।
"चन्दन भी था कुछ पड़ा हुआ घर के बाहर,
कल रात लगी थरथरी उसे तब मँगवाया;
जी भर कर तापा धर कर उसे अँगीठी में,
जब धुआँ उठा, घर भर को बड़ा मजा आया ।"
"दूर ही रहो अय चाँद ! आदमी बड़े-बड़े
आगे-पीछे भी नहीं सोचने पायेंगे,
पीयूष तुम्हारे मरने का कारण होगा,
प्याले पर धर कर तुम्हें चाट ही जायेंगे ।"
(1949)