डियर काव्यांक्षी
कैसी हो , मै अच्छी नहीं हूं, कितनी भी कोशिश कर लू, जिंदगी फिर उसी जगह लाकर खड़ा कर देती है, जहां से शुरू किया , सारी कोशिशें एक ही पल में बिखर जाती है, आखिर कब तक शुरू से शुरुआत करूं, कब जिंदगी में ठहराव आएगा, आएगा भी या नहीं, सब जैसे चाहे वैसे रहने को तैयार हूं, पर ये सवाल जवाब बहस रोज अपनी सफाई देना खुद को साबित करना नही होता और खुद को साबित भी तो नहीं कर पाती, आखिर करू तो कैसे जब सबने अपने हिसाब सब तय कर रखा है , उनकी सोच पहले से ही तय है, सवाल भी उनके जवाब भी वही चाहिए जो उनको सुनने है, तो सवाल ही क्यों, कुछ बोलना बहस करना कहलाए, खामोशी से रहो तो सवाल टालना हो जाए, ये जिंदगी ताउम्र यूं ही कशमकश में बीतेगी , क्या कभी एक नॉर्मल जीवन जीने को मिलेगा, जिसमे सिर्फ उलझने नहीं अपनापन हो अपनों का साथ हो ,या ऐसी जिंदगी ख्वाहिश बनकर मेरे साथ ही इस दुनिया से रुकसत हो जायेगी, क्या कभी बिना जरूरत के मेरे साथ होगा , कुछ पल बेमतलब के मेरे साथ बिताएंगे,
शायद मेरी ये ख्वाहिशें ज्यादा ही है मुश्किल भी शायद इसी वजह से ये जिंदगी और मेरे अपने मुझे से यू रूठे है
अब सहना मुश्किल सा हो गया , इससे अच्छा तो हो जिंदगी ही मेरा साथ छोड़ दे, जैसे अपनो ने मुंह मोड़ रखा
ये जिंदगी भी मुंह मोड़ ले तो सुकून की नींद सो जाए,
मेरे साथ सभी को चैन मिल जाए
काव्या