रचना 08 Mar 2022
डियर काव्यांक्षी
कैसी हो ❤️मै भी अच्छी हू , एक औरत की जीवन की अनकही बाते, काव्यांक्षी अनकही बाते अनसुनी रह जाती है कोई समझ नहीं पाता काव्यांक्षी यहां कहीं बाते समझ नहीं पाते अनकही कैसे समझे जिन बातो के बारे में जानते है समझते भी फिर भी मानते नहीं
हां हां बता रही हूं , बताने ही तो आयी हूं तुम्हे हां बाबा पहेलियां नहीं बुझा रही ,मै बात कर रही हूं औरत की जिंदगी के अहम हिस्से के बारे में हां काव्यांक्षी माहवारी ये दिन औरत के लिए कष्टदायक होते है ऐसे में जब अपवित्र अशुद्ध जैसे शब्द सुनने को मिलते है तो कितनी तकलीफ होती है
पीरियड्स (मासिक धर्म) को लेकर समाज की जो संकुचित सोच थी वह धीरे-धीरे बदलने लगी है। वहीं आज भी कितनी ही जगहों पर घरों में मासिक धर्म आने पर महिला को जो समाज अपवित्र समझता है
मासिक धर्म एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है, न कि कोई बीमारी औरत की ये कही और अनकही बाते समझे और उसके दर्द को बढ़ाने के बजाय
साथ दे इस दौरान उनकी तकलीफ समझने का प्रयास करे अशुद्ध अपवित्र तो ना कहे अगर ये प्रक्रिया औरत के जीवन का हिस्सा नहीं होता तो इसे अपवित्र कहने वाले आप भी ना होते
ये तन ये सुंदर काया
इस अशुद्धता से ही तुमने पाया
ये चाहत नहीं जरूरत है तुम्हारी
ना करो इसका अपमान इसी से
तुम हो काबिल बने पाओ सम्मान
ये रक्त पाप नहीं अपवित्रता की नहीं निशानी
तुम्हारा वंश बढ़े पीढ़ी दर पीढ़ी तुम्हारे वजूद की है कहानी ,ना इसे कमजोरी बनाओ नए जीवन का ये है जरिया, ना अपवित्र कहने वाले तुम मौजूद होते
जो ना होती ये प्रक्रिया
अब चलती हू काव्यांक्षी महिला दिवस की शुभकामनाएं काव्यांक्षी
लव यू 😘😘💓💓
तुम्हारी काव्या🤗