एक नवगीत......
“कुछ कहना है”
सभी से दिल खोल के यारों, अभी बहुत कुछ कहना है
दिल में मेरे अहम प्रश्न है, सबके सन्मुख रखना है.....
कहती है यह धरा सभी से
पेड़ लगाओ जरा अभी से
मत बहलाओं मन को अपने
कलियाँ क्रंदन करें कभी से
फूलते बगिया फूल है यारों, उसपर चर्चा करना है
सभी से दिल खोल के यारों, अभी बहुत कुछ कहना है........1
मत छेड़ो कोमल पंखुड़ियाँ
हरियाली की सुंदर दुनियाँ
डाली डाली कहती है अब
बाग सुशोभित करती कलियाँ
महक खुश्बू पराग से यारों, उद्यम कुछ तो करना है
सभी से दिल खोल के यारों, अभी बहुत कुछ कहना है........2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी